नई दिल्ली। विवाहेत्तर संबंध को अपराध के दायरे से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के पांच साल बाद संसद की स्थायी समिति ने एक बार फिर इसे अपराध की श्रेणी में लाने की सिफारिश की है। इतना ही नहीं समिति ने समलैंगिक संबंध को भी अपराध के दायरे में लाने की सिफारिश की है। गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने एडल्टरी यानी विवाहेत्तर संबंध को भारतीय न्याय संहिता के दायरे में लाने की सिफारिश की है। गौरतलब है कि समिति ने तीन नए कानूनों पर विचार करके अपनी सिफारश सरकार को भेजी है।
संसदीय स्थायी समिति ने केंद्र को भेजे प्रस्ताव में कहा है- विवाहेत्तर संबंध को फिर से अपराध बनाया जाना चाहिए क्योंकि शादी एक पवित्र संस्था है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। संसदीय स्थायी समिति ने मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भारतीय न्याय संहिता विधेयक पर अपनी रिपोर्ट में ये सिफारिश की। गौरतलब है कि गृह मंत्री ने सितंबर में भारतीय न्याय संहिता विधेयक पेश किया था। उन्होंने तीन विधेयक संसद में पेश किए थे, जो कानून के रूप में आईपीसी, सीआरपीएस और इविडेंस एक्ट की जगह लेंगे।
बहरहाल, संसदीय समिति ने विवाहेत्तर संबंधों के साथ ही समलैंगिकता को भी अपराध के दायरे में लाने की सिफारिश की है। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी तर्क दिया गया है कि संशोधित व्यभिचार कानून को जेंडर न्यूट्रल अपराध माना जाना चाहिए। इसका मतलब है कि दोनों पक्षों यानी पुरुष और महिला को समान रूप से इसके लिए जवाबदेब ठहराया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सितंबर में अपराध न्याय प्रणाली को मजबूत करने के लिए लोकसभा में तीन बिल पेश किए थे। इनमें से आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और साक्ष्य कानून की जगह भारतीय साक्ष्य कानून बनेगा। गृह मंत्री ने दावा किया कि इन कानूनों को लागू करने का मुख्य उद्देश्य न्याय प्रक्रिया को तेज करना है।
भारतीय न्याय संहिता तीन पर विचार के बाद गृह मामलों की स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश सरकार को भेजी है। भाजपा सांसद बृज लाल इसके अध्यक्ष हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबम ने इस सिफारिश पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा- राज्य को किसी जोड़े की निजी जिंदगी में झांकने का कोई अधिकार नहीं है। गौरतलब है कि 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने विवाहेत्तर संबंध पर ऐतिहासिक फैसला दिया था। अदालत ने कहा कि यह कोई अपराध नहीं हो सकता और नहीं होना चाहिए।