लंबे समय तक भारत की विकास गाथा महाराष्ट्र की विकास गाथा रही है। लेकिन आज जिस तरह से भारत गाथा यानी इंडिया स्टोरी दिशाहीन दिख रही है वैसे ही महाराष्ट्र की भी दिख रही है। फर्क यह है कि जहां तक भारत गाथा के दिशाहीन होने का सवाल है तो वह गलत नीतियों और नासमझी से है लेकिन महाराष्ट्र के दिशाहीन होने के पीछे एक सुविचारित योजना दिख रही है। ऐसा लग रहा है कि योजनाबद्ध तरीके से महाराष्ट्र की राजनीति, समाज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने का प्रयास हो रहा है। पिछले एक दशक से कुछ ज्यादा समय में महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ है या हो रहा है उसकी लाभार्थी भाजपा है और पड़ोसी राज्य गुजरात है। आने वाले दिनों में भी अगर महाराष्ट्र में अस्थिरता और तनाव बना रहता है तो उसका लाभ गुजरात को ही मिलेगा।
महाराष्ट्र को किस तरह से दिशाहीन और अस्थिर किया गया है इसकी कई मिसालें हैं। शुरुआत मौजूदा सांप्रदायिक विवाद से कर सकते हैं। यह अनायास नहीं हुआ है कि समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब का मुद्दा छेड़ दिया। जिस समय उन्होंने औरंगजेब को दयालु और अच्छा शासक बताया उस समय महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र चल रहा था। सरकार बीड के एक लोकप्रिय सरपंच संतोष देशमुख की हत्या के मामले में घिरी थी। उस मामले में राज्य सरकार के तत्कालीन मंत्री धनंजय मुंडे के करीबी सहयोगियों के शामिल होने की खबरें सामने आ चुकी थीं। उस घटना के भयावह वीडियो और तस्वीरें भी सामने आईं, जिनकी वजह से मुंडे को इस्तीफा देना पड़ा।
तब कहा गया कि विधानसभा में बीड की हत्या और मुंडे के मसले पर ज्यादा विवाद न हो इसलिए औरंगजेब का मुद्दा उठवा दिया गया। औरंगजेब का मुद्दा उठने के बाद दो दिन तक सदन में उसकी चर्चा होती रही। फिर अबू आजमी पर मुकदमा हुआ और उनकी माफी हुई। इसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि औररंगजेब की कब्र हटा देनी चाहिए लेकिन अफसोस की बात है कि कांग्रेस ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई के जरिए उसे संरक्षित कर दिया है। मुख्यमंत्री के यह कहने के बाद औरंगजेब की कब्र के खिलाफ मुहिम छिड़ गई। उनके अपने चुनाव क्षेत्र नागपुर में भारी सांप्रदायिक दंगे हुए। सो महाराष्ट्र में स्थायी तनाव और उबाल बन गया है, जिससे निवेश का माहौल प्रभावित होगा। अब महाराष्ट्र निवेशकों की पसंदीदा जगह नहीं है। उन्हें महाराष्ट्र से बेहतर गुजरात में मिल रहा है, जिसके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन को कहा कि 2002 से पहले गुजरात में ढाई सौ दंगे हुए थे लेकिन उसके बाद से स्थायी शांति है। उस स्थायी शांति की वजह से निवेशक गुजरात की ओर जाएंगे।
वैसे भी पहले से ही महाराष्ट्र की बड़ी परियोजनाएं गुजरात जा रही हैं। 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले एक के बाद एक कई परियोजनाएं महाराष्ट्र से हटा कर गुजरात ले जाई गई, जिसमें एक सेमीकंडकर की परियोजना भी है। करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए के निवेश वाली सेमीकंडक्टर की परियोजना पहले गुजरात में लगने वाली थी, जिसे गुजरात शिफ्ट कर दिया गया। ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन के साथ वेदांता समूह की यह परियोजना है। इसी तरह टाटा और एयरबस की विमान बनाने की परियोजना को भी गुजरात ले जाया गया। यह भी कोई 60 हजार करोड़ रुपए की परियोजना है। पहले सरकारी स्तर पर प्रयास करके महाराष्ट्र की परियोजनाएं गुजरात ले जाई गईं और अब स्वाभाविक रूप से महाराष्ट्र में ऐसा माहौल बना है कि कारोबारी वहां की बजाय दूसरे राज्य का रुख करेंगे।
इसके लिए पहले राजनीतिक अस्थिरता कायम की गई। महाराष्ट्र में भाजपा और शिव सेना का परफेक्ट सद्भाव था। लेकिन शिव सेना ब्रांड के हिंदुत्व की राजनीति को खत्म करने के लिए उसे तोड़ने या कमजोर करने का प्रयास पहले दिन से शुरू हो गया। भाजपा इस सोच में काम कर रही थी कि उसके अलावा हिंदुत्व की राजनीति करने वाली कोई पार्टी या कोई ताकत न रहे। उसको पता था कि बाल ठाकरे की विरासत लेकर राजनीति करने वाली शिव सेना हमेशा उसके लिए चुनौती है। इसलिए पहले शिव सेना में विभाजन कराया गया। फिर शरद पवार की पार्टी एनसीपी में टूट कराई गई। यानी हिंदुत्व की राजनीति करने वाली ताकत और मराठा राजनीति की ताकत दोनों को कमजोर किया गया। इससे राजनीतिक अस्थिरता बनी। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जो राजनीतिक अस्थिरता बनी उसमें उद्धव ठाकरे की सरकार भी ढाई साल ठीक तरीके से काम नहीं कर सकी थी। उसके बाद शिव सेना को तोड़ कर भाजपा ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में जो सरकार बनवाई वह भी समय काटने वाली सरकार थी। उसी सरकार के कार्यकाल में फॉक्सकॉन और वेदांता की सेमीकंडक्टर की परियोजना महाराष्ट्र से हट कर गुजरात गई। इसमें करीब एक लाख लोगों को रोजगार मिलने की बात थी। शिव सेना और एनसीपी के टूटे हुए धड़े के साथ भाजपा ने अपनी सरकार तो बना ली है लेकिन सरकार का फोकस पूरी तरह से बदला हुआ है।
अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ऐसे प्रयोग कर रहे हैं, जिससे सत्ता स्थायी बने। राज्य में धार्मिक और सामाजिक विभाजन बना रहे। ध्यान रहे पिछले साल हुए चुनावों से पहले पूरे पांच साल राज्य में मराठा आरक्षण का आंदोलन चलता रहा और फिर उसकी काट में ओबीसी आरक्षण का आंदोलन होता रहा। यानी धार्मिक विभाजन के प्रयास होते रहे, राजनीतिक अस्थिरता बनाई गई और सामाजिक विद्वेष के प्रयास होते रहे। मुंबई सहित सभी बड़े शहरों में नगर निकाय चुनाव रोक कर रखे गए हैं। क्यों रोक कर रखा गया यह किसी को समझ में नहीं आ रहा है।
देश की वित्तीय राजधानी होने के साथ मुंबई की एक पहचान उसके फिल्म उद्योग से है। पिछले पांच साल से फिल्म उद्योग को तहस नहस करने के व्यवस्थित प्रयास हैं। पांच साल पहले कोरोना महामारी के समय एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के बहाने फिल्म उद्योग को बदनाम करने की मुहिम शुरू हुई, जो शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान की नशे के झूठे मामले में गिरफ्तारी से और आगे बढ़ी। सभी फिल्मी सितारों या फिल्म से जुड़े लोगों को नशेड़ी, जुआरी, बदचलन आदि साबित करने का व्यवस्थित अभियान चला। सरकार के समर्थन में दिन भर गला फाड़ने वाले चैनलों पर महीनों तक लगातार फिल्म उद्योग को बदनाम करने वाली बहसें चलती रहीं। इस प्रयास का नतीजा यह हुआ कि हिंदी फिल्में लगातार पिटने लगीं और उसके मुकाबले दक्षिण की फिल्में सुपर कारोबार करने लगीं। ऐसा नहीं है कि अब हिंदी फिल्म उद्योग को बदनाम करने और उसे तहस नहस करने का प्रयास बंद हो गया है।
एक बार फिर सुशांत सिंह राजपूत केस को उठाया गया है। उनकी मैनेजर रही दिशा सालियान की खुदकुशी के मामले में सालियान के पिता हाई कोर्ट पहुंचे हैं और पांच साल बाद उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी एक बलात्कार का गवाह बन गई थी इसलिए उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और फिर हत्या कर दी गई। उन्होंने इस मामले में उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्य आरोपी बनाने और गिरफ्तार करने की मांग की है। सुशांत सिंह राजपूत के पिता इसमें उनका समर्थन कर रहे हैं। हकीकत यह है कि इससे पहले सालियान के पिता खुद ही कई बार कह चुके हैं कि उनकी बेटी ने खुदकुशी की है। इसमें कोई राजनेता या फिल्म स्टार शामिल नहीं था। लेकिन पांच साल के बाद अचानक उनकी राय बदल गई। इस मामले में एसआईटी और सीबीआई सबकी जांच हो चुकी है और किसी ने खुदकुशी के अलावा किसी और बात के सबूत नहीं पाए हैं। फिर भी हाई कोर्ट में मामला पहुंचा है और भाजपा के लोग उद्धव व आदित्य ठाकरे के साथ साथ फिल्म उद्योग के एक खास समूह को निशाना बनाने में जुटे हुए हैं।