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28-06-2025 Vol 19

भारत के भयाकुल आईने में निर्भयी इजराइल, ईरान

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इंदिरा गांधी ने कोई 17 वर्ष असुरक्षा और भयाकुल मनोदशा में शासन किया। वैसे ही जैसे नरेंद्र मोदी पिछले 11 वर्षों से कर रहे हैं। इंदिरा गांधी की सियासी बुनावट उनके अकेलेपन, ऐकला चलो, नेहरू की छाया की हीनग्रंथियों में बुनी हुई थी। तभी अपने को पार्टी-सत्ता में सर्वोच्च-महान बनाने (प्रोपेगेंडा) की लगातार राजनीति की। वे हमेशा अपने को दुश्मनों से घिरा समझती थीं। हर चुनाव पूरी ताकत से लड़ती थीं। इसलिए बिजली कड़का कर, भय बना अपने प्रति भक्ति बनाने में उन्होंने भी कमी नहीं रखी। मगर एक फर्क था। उन्होंने अपने को अजैविक अवतार नहीं बताया।

उस नाते वे सामान्य नेत्री थीं। आपातकाल ने भयाकुल हिंदुओं को और भयाकुल बनाया। मगर आपातकाल में भी सिस्टम में कुछ जान थी। इसलिए मानेकशॉ, रामनाथ काव जैसे काबिल-बहादुर लोगों के पास कमान थी। तभी बांग्लादेश के निर्माण का कमाल हुआ। पाकिस्तान की भयावह हार हुई।

सोचें, गौर करें अब 11 वर्षों के नरेंद्र मोदी के शासन पर। वे भी इंदिरा गांधी जैसे चौबीसों घंटे अपनी कुर्सी की चिंता में रहते हैं। उन्होंने पूरे विपक्ष को भयाकुल बनाने के लिए ईडी, सीबीआई याकि कोतवालों-कारिंदों व अदालत के अंग्रेजों के नुस्खों से सत्ता-संस्था और राजनीति को अपनी जेब में डाल रखा है। वाजपेयी, नेहरू, इंदिरा आदि सबसे अपने को महान करार देने के लिए मोदी की धुन हर तरफ अपने ताबेदार बैठाने की है। क्वालिटी नहीं क्वांटिटी। उन्होंने बीस सूत्री कार्यक्रमों, गरीबी हटाओ से भी बड़े-विशाल जुमलों से चौबीसों घंटे के प्रोपेगेंडा में भारत को भक्तिमय बुद्धिहीन बना डाला है। आपातकाल के खिलाफ जो उत्सव मनाया है वह हिंदुओं में इस बहकावे के लिए है कि इंदिरा बुरी थीं, तानाशाह थीं जबकि वे भले-अच्छे और लोकतांत्रिक हैं।

पर समय की लीला देखें जो उनकी कमान में भारत अब खुद दुनिया के आगे भयाकुलता का आईना लिए हुए है। मोदीजी के साथ हम हिंदू, भारत के भीतर, अपनी गली में अपने आपको कितना ही बहादुर, छाती फुलाते हुए, गली का शेर कहें लेकिन दक्षिण एशिया के देशों से लेकर, क्षेत्रीय ताकतों, क्षेत्रीय संगठनों, महाशक्तियों में हमसे अब कोई डरता हुआ नहीं है। हमारी कोई अब चिंता करता हुआ नहीं है!

ऐसा ट्रंप द्वारा बार-बार भारत को अपमानित करने से ही जाहिर नहीं है, बल्कि भारत के ‘22 मिनट के ऑपरेशन’ तथा बारह दिनों के इजराइल बनाम ईरान के युद्ध के परिप्रेक्ष्य से भी भयावह तौर पर उद्घाटित है। भारत ने 22 मिनट के ऑपरेशन में अपने लड़ाकू विमान गंवाए तो वह सन्न 24 घंटे सोचता हुआ था! फिर हम भारतीयों ने अचानक अपने आकाश में पाकिस्तान से ड्रोन-मिसाइल की बारिश होती देखी। हिसाब से हमारा खून खौलना था, इजराइल की तरह टूट पड़ना था या ईरान की तरह इस्लामाबाद, लाहौर में ड्रोन, मिसाइलों का तूफान बना देना था लेकिन उससे पहले ही भारत ने डोनाल्ड ट्रंप के यहां फोन खड़खड़ा दिया। भयाकुल कौम गिड़गिड़ाते हुए कहने लगी, हुकूम बचाओ! इसके बाद ट्रंप ने सीजफायर की घोषणा की तो भारत ने लपक कर सीजफायर मानने की प्रेस कॉन्फ्रेंस की।

पर क्या भयाकुल कौम को शर्म है, विवेक-बुद्धि है?

सोचें, ग्यारह वर्षों में उरी, पुलवामा से पहलगाम तक भारत में पाकिस्तान प्रेरित कितनी घटनाएं हुई हैं? कितने लोग मरे हैं? प्रधानमंत्री मोदी को इजराइल की तरह ट्रंप को आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में साझेदार बनाना था या उन्हें सीजफायर के लिए पंच बनाना था? और मान लें हमने नहीं बनाया तो पाकिस्तान की क्या वैसे ही धुनाई नहीं करनी थी जैसी इजराइल ने ईरान की, की है या ईरान की तरह (सीजफायर के ऐलान के बाद आखिरी क्षण तक इजराइल पर मिसाइलें दागीं) पूरी निर्भयता और हिम्मत से इजराइल के भीतर मिसाइलों की बाढ़ बना कर उसे कम ही सही पर नुकसान पहुंचाया? ऐसा ही उदाहरण यूक्रेन और रूस का भी है। और दुनिया ने, अल जजीरा तथा वैश्विक चैनलों पर बाकयदा देखा कि तेहरान और यरूशेलम में हमलों के विनाश की लड़ाई को रिपोर्टर लाइव या रिपोर्टिंग में बतलाते हुए थे। नेतन्याहू या ईरान के सत्तावानों ने (कीव में जेलेंस्की भी) ने अपने मार खाने, अपने नुकसान को बतलाने में छलकपट नहीं किया। जबकि मोदी राज का यह प्रोपेगेंडा, झूठ अभी भी कायम है कि हमे कोई नुकसान नहीं हुआ है। यदि ऐसा था तो भारत ने पाकिस्तान को पूरी तरह से धुना क्यों नहीं या पीओके को क्यों नहीं ले लिया?

मगर ऊपर से नीचे तक भारत का हिंदू केवल सत्ता का भूखा, सत्ता की चिंता व भय-भक्ति के उस वायरस का आज शिकार है, जिससे लगातार ग्यारह वर्षों से देश की बहादुरी, विवेक, बुद्धि, आत्मविश्वास, निर्भयता सब कुछ समाप्त है। राष्ट्र प्रलाप झूठमेव जयते हो गया है। एक दिन पहले चीन में फिर, एससीओ की बैठक में देखने को मिला कि भारत ने पहलगाम (बिना पाकिस्तान का जिक्र किए) घटना के हवाले आतंकवाद का जिक्र चाहा था तो किसी देश ने (वहां भी पाकिस्तान का ही बोलबाला) उसे नहीं माना। और भारत इसी में खुश है कि देखो हमने जिद्द की तो बैठक का प्रस्ताव नहीं बना! यह हमारी जीत है!

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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