nayaindia Lok Sabha election 2024 ममता, माया बुरी तरह हारेंगी!

ममता, माया बुरी तरह हारेंगी!

Lok Sabha election 2024
Lok Sabha election 2024

हां, दीवाल पर लिखा दिख रहा है। जैसे छतीसगढ़ में रत्ती भर हिंदू-मुस्लिम न होते हुए भी एक मुसलमान मेयर और दो-तीन घटनाओं के हवाले हिंदू-मुस्लिम करा के भाजपा की अप्रत्याशित जीत हुई वैसा ही लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में होगा। प्रदेश में अपने संपर्क-संबंधों वाले जो सियासीदां लोग हैं उनकी बताई जमीनी हकीकत से साफ लगा रहा है कि कोलकत्ता व ईर्द-गिर्द इलाके को छोड़ कर उत्तर, दक्षिण बंगाल में हिंदू बुरी तरह भाजपा के लिए गोलबंद हैं। Lok Sabha election 2024

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बांग्ला भद्र मानस भी तृणमूल कांग्रेस विरोधी हो गया है। मेरा मानना था कि बंगाल के देहात के गरीब, महिला वोट दीदी की कट्टर समर्थक हैं लेकिन रोजगार की कमी (मनरेगा आदि) और प्रायोजित मुस्लिम नैरेटिव ने बंगाल में बहुत कुछ बदला है। ऊपर से कांग्रेस व लेफ्ट के उम्मीदवारों को थोक में मुस्लिम वोट मिलने हैं।

मुस्लिम आबादी में घर-घर यह बात फैल गई है कि तृणमूल पार्टी भाजपा की पिट्ठू है। राजभवन में नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी की मुलाकात तथा एबी उर्फ अभिषेक बनर्जी को ईडी केस में भी जमानत मिलने जैसी चर्चाओं से विपक्षी वोटों में ममता बनर्जी की वही इमेज है जो उत्तर प्रदेश में मायावती की बन गई है।

मानना होगा मोदी-शाह को, दोनों महिला नेत्रियों को निपटाने का चाक चौबंद ताना-बाना बुना। दिल्ली और कोलकाता दोनों जगह भाजपा ने ममता, मायावती के भेदियों, खबरचियों, उनके विश्वासपात्रों से उनको कॉर्नर किया। सोचें, देश की दलित राजनीति  की आईकॉन मायावती और उनका भतीजा आनंद चुनाव के ऐन वक्त भी बिल में छुपे हुए हैं। जो मायावती कभी बहुत एडवांस में उम्मीदवार खड़े करती थी वह मानों भाजपा से बसपा की लिस्ट आने का इंतजार कर रही हो। Lok Sabha election 2024

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ममता और मायावती दोनों ने अपने भतीजों को बचाने, ईडी-सीबीआई-आईटी के छापों, गिरफ्तारी की चिंता में भाजपा से ऐसा मौन समझौता किया है जैसे मगरमच्छ के बाड़े में कोई शिकार फंसता है। जैसा वह चाहे वह कर देगा पर फिलहाल मुझे बख्शो। भरा पेट मगरमच्छ मौन पड़ा रहेगा। शिकार फंसा रहेगा। और भूख जागी तो खटाक शिकार को निगल लेगा। इसका एक उदाहरण मायावती हैं तो महाराष्ट्र में शिवसेना भी है। ज्योंहि भूख हुई भाजपा ने शिवसेना निगला, बाले ठाकरे की विरासत को खा लिया। कमी रही तो शरद पवार की पार्टी भी निगल ली।

तभी नोट करके रखें ममता इस चुनाव में 8-10 सीटें जीत जाएं तो बड़ी बात होगी। उसके बाद अभिषेक बनर्जी, और तृणमूल पार्टी में भाजपा ऐसी भगदड़ बनवाएगी कि विधानसभा चुनाव से पहले विधायक पाला बदलेंगे। वही अभिषेक को ईडी जेल में डालेगी। नतीजतन 2026 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत। सोचें, बंगाल की शेरनी को खत्म करने का कैसा लाजवाब रोडमैप है! मगर ममता बनर्जी इस आत्मविश्वास में हैं कि वे लोकसभा चुनाव में 20-25 सीटें जीतेंगी और सांसदों की गरज में भाजपा उन्हें दुबारा जीतने देगी। यह सब वैसे ही बिना जमीनी रियलिटी के है जैसे तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की दुर्दशा हुई। Lok Sabha election 2024

चुनाव से पहले वे भाजपा से मौन सहमति में व फिर बेटी की चिंता में मोदी-शाह को खुश रखने की राजनीति करते हुए थे। महाराष्ट्र में जा कर कांग्रेस और शरद पवार, शिवसेना को कमजोर करने के लिए रैलियां की। टीआरएस का नाम बदलने की केसीआर की हवाबाजी के दौरान विनीत नारायण के सौजन्य से मेरी उनसे दिल्ली में बातचीत हुई।

वे तेलंगाना में वापिस जीतने और पार्टी का नाम बीआरएस करके उसे राष्ट्रीय दल बनाने के जोश में थे। तेलंगाना में वापिस जीत से वे देश के नेता होंगे। उन्हें सुन मैंने इतना ही कहा, अच्छा होगा नरेंद्र मोदी और भाजपा को कम न मानें? और यह सत्य है कि केसीआर की इस राजनीति ने उनके पुराने कांग्रेसी वोटों, मुस्लिम मतदादाओं का मोहभंग किया और भाजपा ने उन्हें क्या दिया? उनकी बेटी कविता को जेल भेजा ताकि लोकसभा चुनाव में वे वैसे ही उम्मीदवार खड़े करें जैसे मायावती को करने हैं। चुपचाप भाजपा को सीटें दिलवानी है।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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