nayaindia Lok Sabha election 2024 भाजपा की नई जमीन कहां है?

भाजपा की नई जमीन कहां है?

Lok Sabha election 2024
Lok Sabha election 2024

भारतीय जनता पार्टी क्या मान रही है कि वह अपने कोर इलाकों में कमजोर हो रही है या जिन इलाकों में वह पीक पर है वहां उसे नुकसान हो सकता है? अगर भाजपा ऐसा मानती है तो मानने में कुछ भी गलती नहीं है क्योंकि लगातार दो बार भाजपा कई राज्यों में सभी सीटें या लगभग सभी सीटें जीत चुकी हैं। Lok Sabha election 2024

यह भी पढ़ें: मोदी की सुनामी या कांटे का मुकाबला?

उन राज्यों में तीसरी बार भी प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होगा। चाहे जैसे भी हालात हों लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों में पिछला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं है। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन राज्यों में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए नए इलाकों में मेहनत शुरू की है। भाजपा के लिए जो ब्राइट स्पॉट वो बिल्कुल ऐसे गैर पारंपरिक इलाके हैं, जहां भाजपा पहले बहुत मजबूत नहीं रही है। Lok Sabha election 2024

ऐसे राज्यों में भाजपा को दक्षिण के राज्यों में उम्मीद दिख रही है और साथ ही पूरब के राज्यों में भी वह संभावना देख रही है। अगर पूर्वी राज्यों की बात करें तो उसकी नजर में ओडिशा और पश्चिम बंगाल दोनों राज्य हैं। अगर पिछली बार के मुकाबले थोड़ा भी ज्यादा हिंदू ध्रुवीकरण होता है तो भाजपा पहले से ज्यादा सीट जीत जाएगी।

यह भी पढ़ें: ममता, माया बुरी तरह हारेंगी!

पिछली बार भाजपा के पक्ष में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण लगभग 60 फीसदी था और तब वह 42 में से 18 सीटों पर जीती थी। इस बार अगर पांच फीसदी का इजाफा होता है तो वह 25 से 30 सीट जीत सकती है। ऐसे ही छप्पर फाड़ सीटें भाजपा को ओडिशा में मिली थीं। उसने 21 में से आठ सीटों पर जीती थी। इस बार वह अपनी आठ सीट बचाने की बजाय इसकी संख्या बढ़ाने का ताना-बाना बुन रही है। इसके लिए वह 15 साल पहले साथ छोड़ चुके नवीन पटनायक के साथ तालमेल कर रही है।

भाजपा तालमेल में बीजू जनता दल के लिए विधानसभा की ज्यादा सीटें छोड़ कर लोकसभा की 14 सीटों पर लड़ना चाहती है। अगर ऐसा गठबंधन होता है तो वह ओडिशा में पांच से छह सीट बढ़ा सकती है। यह बड़ा लाभ होगा।

दक्षिण भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत मेहनत कर रहे हैं। वे लगातार पांच दिन दक्षिण में रहे। इस साल के तीन महीने में वे हर दक्षिणी राज्य में कई कई बार जा चुके हैं। दक्षिण में भाजपा के लिए सबसे ब्राइट स्पॉट तमिलनाडु है। सीटों की संख्या के लिहाज से अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन भाजपा अभी जीरो पर है। अगर उसका खाता खुलता है तो वह भी लाभ है। लेकिन पार्टी उससे बेहतर कर सकती है। कहां तो भाजपा बिल्कुल हाशिए की पार्टी थी लेकिन वह इस बार तीसरा मोर्चा बना कर केंद्रीय पार्टी के तौर पर चुनाव लड़ रही है। उसने पीएमके, टीएमसी, एएमएमके आदि के साथ तालमेल किया है। Lok Sabha election 2024

पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम के भी भाजपा के साथ जुड़ने की चर्चा है। इस बीच पार्टी ने नौ उम्मीदवार उतारे हैं। तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सौंदर्यराजन को इस्तीफा करा कर चेन्नई साउथ सीट से टिकट दी गई है। प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी के अन्नमलाई को कोयम्बटूर सीट से और केंद्रीय मंत्री एल मुरुगन को नीलगिरी से लड़ाया गया है।

यह भी पढ़ें: भाजपा की नई जमीन कहां है?

अन्नामलाई ने पिछले कुछ समय राज्य के पारंपरिक राजनीति और वैचारिक विमर्श को बदला है। दूसरी ओर जाने अनजाने में डीएमके ने भाजपा के तय किए एजेंडे पर राजनीति शुरू कर दी है। सनातन का समर्थन बनाम सनातन के विरोध का राजनीतिक एजेंडा तय हो गया है, जिसमें एक पक्ष भाजपा है। तभी राजनीतिक रूप से तमिलनाडु भाजपा के लिए उर्वर जमीन शायद हो। इस बार भाजपा के वोट में उछाल आने की पूरी संभावना दिख रही है।

भाजपा के लिए दूसरी उर्वर जमीन आंध्र प्रदेश में बनती दिख रही है। पिछले चुनाव में वह अकेले लड़ी थी और उसे एक फीसदी से कम वोट आया था। लेकिन उसने अब 40 फीसदी वोट वाली पार्टी टीडीपी से तालमेल कर लिया है। टीडीपी के साथ तेलुगू फिल्म स्टार पवन कल्याण की जन सेना पार्टी भी भाजपा गठबंधन में है। इस गठबंधन में भाजपा छह लोकसभ सीटों पर  लड़ रही है। मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला कांग्रेस की अध्यक्ष हैं और उन्होंने लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाया है।

ऐसे में टीडीपी, जन सेना और भाजपा का गठबंधन अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। तीसरा राज्य तेलंगाना है, जहां भाजपा को पिछली बार चार सीटें मिली थीं। वहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के सहारे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति व कांग्रेस के बीच मुकाबले में भाजपा त्रिकोणात्मक लड़ाई की स्थिति बना रही है। दक्षिण में भाजपा वैसे तो केरल में भी बहुत मेहनत कर रही है केरल की जमीन अभी भाजपा की फसल के लिए तैयार नहीं दिख रही है। Lok Sabha election 2024

हालांकि तिरुवनंतपुरम सीट पर शशि थरूर के खिलाफ केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को उतार कर भाजपा ने बड़ा दांव चला है। फिर भी तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से उलट केरल में ज्यादा संभावना नहीं दिख रही है। कुल मिला कर अगर भाजपा को दक्षिण में कुछ फायदा होता है तो वह तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में होगा। पूरब में ओडिशा और पश्चिम बंगाल और दक्षिण में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश भाजपा के लिए ब्राइट स्पॉट हैं।

अगर उत्तर भारत की बात करें तो उत्तर प्रदेश में भाजपा 2014 का प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद कर रही है। 2014 में इसे 71 सीटें मिली थीं और उसकी सहयोगी अपना दल को दो सीट मिली थी। यानी एनडीए ने 80 में से 73 सीट जीती थी, जो 2019 में सपा और बसपा के तालमेल की वजह से कम होकर 64 हो गई। यानी नौ सीटों का नुकसान हुआ।

इस बार मायावती पूरी तरह से निष्क्रिय हैं। उनकी निष्क्रियता का फायदा भाजपा को मिल सकता है। अगर 2014 की तरह मायावती जीरो पर रहती हैं तो भाजपा के नुकसान की भरपाई संभव है। उत्तर भारत का दूसरा राज्य पंजाब है, जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच घमासान लड़ाई हो रही है। दूसरी ओर भाजपा और अकाली दल का गठबंधन होने वाला है। आप और कांग्रेस के वोट बंटवारे में भाजपा और अकाली दल गठबंधन को फायदा हो सकता है। पिछली बार दोनों पार्टियों को दो दो सीटें मिली थीं। पंजाब में कुल 13 सीटें हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें