nayaindia Lok Sabha Elections इतना लंबा चुनावी कार्यक्रम क्यों?

इतना लंबा चुनावी कार्यक्रम क्यों?

Lok Sabha Elections
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यह एक बड़ा सस्पेंस है कि आखिर इतना लंबा और इतनी अजीबोगरीब चुनाव शिड्यूल कैसे और क्यों बना? पहले चरण में शुक्रवार को तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर मतदान हो गया लेकिन बिहार की सिर्फ चार और पश्चिम बंगाल की तीन सीट पर मतदान हुआ। ऐसा क्यों? बिहार में क्या सभी सीटों पर एक साथ मतदान नहीं हो सकता था? मध्य प्रदेश की छह और छत्तीसगढ़ की सिर्फ एक सीट पर मतदान हुआ है। Lok Sabha Elections

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पूर्वोत्तर के राज्यों में त्रिपुरा में दो सीटें हैं लेकिन पहले चरण में सिर्फ एक सीट पर चुनाव हुआ। महाराष्ट्र की 48 में से सिर्फ पांच सीट पर वोट डाले गए। पश्चिम बंगाल में पिछले चुनाव तक में हिंसा की घटनाएं हुई हैं इसलिए वहां या उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हैं तो वहां कई चरण के चुनाव की बात समझ में आती है लेकिन बिहार और महाराष्ट्र में भी सात चरण में चुनाव हो रहे हैं। Lok Sabha Elections

तभी चुनाव शिड्यूल सस्पेंस पैदा कर रहा है। अगर बारीकी से देखें तो जिन राज्यों में भी भाजपा के लिए मुश्किल लड़ाई होने की बात पिछले कुछ दिनों से चल रही थी उन सभी राज्यों में कई चरण में चुनाव हो रहे हैं। बिहार उनमें से एक है, जहां की 40 सीटों पर सात चरण में मतदान होगा। पहले चरण में सिर्फ चार सीटों पर मतदान हुआ और उसमें से तीन सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली करने गए। सोचें, नवादा, जमुई और गया में मोदी की रैली हुई और चौथी सीट औरंगाबाद में योगी आदित्यनाथ ने रैली की।

जाहिर है भाजपा को बिहार की चिंता सता रही है। उसे अपने से ज्यादा अपने सहयोगियों की चिंता है। तभी प्रधानमंत्री मोदी जहां रैली करने गए उन तीन में से दो सीटें सहयोगी पार्टियों की थीं। गया और जमुई में भाजपा की सहयोगी पार्टियां लड़ रही थी। नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन से तोड़ कर लाने के बाद भी भाजपा को यकीन नहीं है कि वह पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी। और इस बीच दो चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने भी बताया हैकि बिहार में एनडीए को सात से नौ सीट का नुकसान होने जा रहा है। तभी बिहार पर फोकस है और हर चरण के मतदान वाले क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी की कम से कम दो सभाएं होनी हैं। कुल 16 सभाओं का कार्यक्रम बना हुआ है और अमित शाह की 23 सभाएं बिहार में होंगी।

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इसी तरह का सस्पेंस महाराष्ट्र को लेकर है। वहां उसी तरह शांति से मतदान होता है जैसे तमिलनाडु में होता है फिर भी तमिलनाडु की तरह महाराष्ट्र में एक बार या दो बार में चुनाव नहीं हो रहा है, बल्कि सात बार में चुनाव होगा। ध्यान रहे महाराष्ट्र में भाजपा और शिव सेना गठबंधन को दो बार से रिकॉर्ड जीत मिल रही थी। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के बाद दोनों का गठबंधन टूट गया। बाद में भाजपा की मदद से शिव सेना में टूट हुई और एनसीपी भी टूटी। Lok Sabha Elections

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दोनों टूटे हुए दलों को असली दल की मान्यता दिलाई गई फिर भी उनके वोट को लेकर भाजपा आश्वस्त नहीं है। वहां कांग्रेस के साथ उद्धव ठाकरे की शिव सेना और शरद पवार की एनसीपी का तालमेल है, जो भाजपा गठबंधन से ज्यादा मजबूत दिख रहा है। सर्वेक्षणों में भी उसे बढ़त बताई जा रही है। इसलिए भाजपा को ज्यादा मेहनत करने की जरुरत है।

यही स्थिति पश्चिम बंगाल की है। वहां भाजपा को उम्मीद है कि वह हिंदू ध्रुवीकरण के सहारे पहले से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। इसलिए राज्य में पूरे ढाई महीने चुनाव चलेगा और प्रचार चलेगा। याद करें कैसे कोरोना की सबसे घातक दूसरी लहर में अप्रैल-मई 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए। लोगों के आग्रह के बावजूद न चुनाव टला और न उसे कम चरणों में कराया गया। कारण यह था कि भाजपा को लग रहा था कि वह जीत रही है।

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हालांकि वह 77 सीटों पर ही रह गई थी। इस बार फिर वह जोर लगा रही है। इसके उलट जिन राज्यों में उसे ज्यादा मुकाबला नहीं दिख रहा है या लड़ाई आसान दिख रही है वहां फटाफट चुनाव हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश इसका अपवाद है। वहां भाजपा जीत के भरोसे में है लेकिन चुनाव सात चरण में होंगे। सबसे आखिर में पूर्वी उत्तर प्रदेश के चुनाव होंगे, जहां प्रधानमंत्री मोदी को लड़ना है। पूरे देश का चुनाव निपटा कर वे अपना चुनाव लड़ने जाएंगे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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