nayaindia Loksabha election 2024 BJP भाजपा गढ़ सुरक्षित, सैंध मुश्किल

भाजपा गढ़ सुरक्षित, सैंध मुश्किल

विपक्षी नेताओं

गुरूवार को भोपाल में भाजपा की चुनाव तैयारियों की बड़ी बैठक हुई। शनिवार को जयपुर में बैठक है। इनमें मंदिर को लेकर माहौल और माहौल को दो-ढ़ाई महिने बनाए रखने के रोडमैप पर विचार होता है तो लोकसभा चुनाव की ठोस रणनीति भी बनती हुई है। मतलब यह कि प्रदेश में विधानसभा चुनावों की थकान, सरकार-मंत्रिमंडल के गठन, विधायकों-मंत्रियों से स्वागत दौरे जैसे काम पूरे हुए नहीं उससे पहले ही प्रदेशों में भाजपा ने अपने आपको लोकसभा चुनाव की तैयारियों में झोंक दिया है।

जबकि ठिक विपरित छतीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान में कांग्रेस इस वक्त पूरी तरह हताश, लावारिश, बिखरी और बिना नेतृत्व के है। और उत्तर भारत में यह हर तरफ है। तय माने ऐसा अयोध्या में मंदिर कार्यक्रम, गणतंत्र दिवस और राहुल गांधी की यात्रा की भूमिका बनने (मतलब उत्तरपूर्व व बंगाल तक की उनकी यात्रा) तक रहेगा। कांग्रेस किसी स्तर पर भाजपा के गढ (यूपी, गुजरात, एमपी, राजस्थान, छतीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, हिमाचल, जम्मू, चंडीगढ)  की 207 लोकसभा सीटों में जमीनी चुनावी तैयारियां करते हुए, कमर कसते नहीं दिख रही है। यह बात इंडिया एलायंस के अखिलेश यादव व जयंत चौधरी पर लागू है तो अरविंद केजरीवाल पर भी लागू है।

लग रहा है भाजपा भाजपा उम्मीदवारों की सूचियां जनवरी आखिर से आनी शुरू हो जाएगी। इससे पहले संगठन नेता, संघ-भाजपा मशीनरी राम मंदिर के आयोजन के प्रचार में घर-घर हवा बनाते हुए है तो उम्मीदवारों की छंटनी, संगठनात्मक बंदोबस्त करते हुए भी है तो कांग्रेस में तोड़फोड की संभावनाएं भी टटोली जा रही है।

इसलिए क्या न माना जाएं कि राम मंदिर की हवा में उत्तर भारत की 207 सीटों में कांग्रेस और इंडिया एलायंस रामभरोसे ही रहेगा। यों विपक्ष में सीटों के बंटवारे पर विचार-विमर्श है लेकिन पार्टियों में जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की एकुजटता बने, आर-पार की लड़ाई का जुनून बने, ऐसा कुछ होता हुआ नहीं है। वजह यह भी है कि नरेंद्र मोदी इसका मौका ही नहीं बनने दे रहे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक के बाद एक, हर दिन के कलेंडर में घटनाओं की भरमार और उन पर मीडिया में नैरेटिव का सिलसिला ऐसा भारी है कि विपक्षी नेता करे तो क्या करें? कैसे तो नेता-संगठन सक्रिय हो, भीड़ जुटे और कवरेज मिले। इसलिए उत्तर भारत की इन 207 सीटों पर दमदारी से चुनाव लडने की हवा बनाना भी आसान नहीं है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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