जिस तरह से नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया और राहुल गांधी से सिर्फ पूछताछ हुई उसी तरह सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से भी कथित जमीन घोटाले में सिर्फ पूछताछ हुई है। इस हफ्ते ईडी ने वाड्रा से तीन दिन तक पूछताछ की। मंगलवार से गुरुवार तक तीन दिन में उनसे करीब 16 घंटे से ज्यादा पूछताछ हुई है। ईडी की पूछताछ खत्म नहीं हुई है। उनको फिर बुलाया जा सकता है। सोचें, वाड्रा का जमीन सौदा 2008 का है। 16 साल पहले हुए जमीन सौदे की जांच और पूछताछ अभी तक चल रही है, जबकि 2014 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ा था और दावा किया था कि सरकार बनते ही भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाएंगे।
उस समय तक रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ जमीन घोटाले में मुकदमा नहीं हुआ था। लेकिन प्रधानमंत्री के दावेदार के तौर पर नरेंद्र मोदी ने सभाओं में ‘दामादजी’ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर खूब तालियां बटोरीं। उनकी नजर में भ्रष्टाचार से ज्यादा बड़ा पाप कुछ नहीं था और हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा सबसे बड़े भ्रष्टाचारियों में से एक हैं। लेकिन मोदी की सरकार बने 11 साल हो गए हैं और इनमें से किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
वाड्रा-डीएलएफ ज़मीन सौदा: जांच, राजनीति और भ्रम की क्रोनोलॉजी
मोदी की सरकार बनने के चार साल बाद सितंबर 2018 में रॉबर्ट वाड्रा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, डीएलएफ गुरुग्राम और स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। इस कथित घोटाले की क्रोनोलॉजी ऐसी है कि फरवरी 2008 में गुरुग्राम सेक्टर 83 के शिकोहपुर गांव में साढ़े तीन एकड़ जमीन वाड्रा की कंपनी ने खरीदी। इसके बदले में करीब साढ़े सात करोड़ रुपए का भुगतान ओंकारेश्वर प्रोपर्टीज को किया गया।
कहा जा रहा है कि कंपनी ने चेक को बैंक में भुगतान के लिए नहीं डाला। यह भी आरोप है कि 45 लाख रुपए की जो स्टांप ड्यूटी लगी वह भी ओंकारेश्वर प्रोपर्टीज ने ही चुकाई। उस समय वाड्रा की कंपनी में सिर्फ एक लाख रुपए ही थे।
इसके 18 दिन के अंदर जमीन का लैंड यूज बदल गया। उसे कृषि भूमि से रेजिडेंशियल भूमि में बदल दिया गया और जून 2008 में यानी खरीदे जाने के चार महीने के भीतर साढ़े तीन एकड़ में से 2.7 एकड़ जमीन 58 करोड़ रुपए में डीएलएफ को बेची गई। यानी बिना कोई पैसा लगाए वाड्रा की कंपनी को चार महीने में 50 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ। उधर नवंबर 2008 में डीएलएफ ने कॉमर्शियल कॉलोनी विकसित करने का लाइसेंस मांगा और दिसंबर में उसे लाइसेंस दे दिया गया। ईडी को इसमें मनी लॉन्ड्रिंग दिख रही है और भाजपा के नेता ओपन एंड शट केस बता रहे हैं।
यानी उनका मानना है कि यह सीधे तौर पर भ्रष्टाचार, घोटाले और धन शोधन का केस है। तब भी 2018 में एफआईआर दर्ज होने के बावजूद वाड्रा के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
उलटे मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने 2023 में रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ समूह को क्लीन चिट दे दी थी। हरियाणा की मनोहर खट्टर सरकार ने हाई कोर्ट के सामने एक हलफनामा पेश किया था, जिसमें सरकार ने कहा है कि मेसर्स स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने साढ़े तीन एकड़ जमीन डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड को 18 सितंबर 2012 को बेची थी। इस सौदे के दौरान इन दोनों पार्टियों ने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है। इस सौदे में वित्तीय ट्रांजेक्शन की जांच की जा रही है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि जो सौदा 2008 में हुआ था खट्टर सरकार उसी का जिक्र कर रही थी या किसी और सौदे का।
लेकिन उनकी सरकार के हलफनामे का जिक्र करके वाड्रा ने कहा है कि भाजपा की सरकार ही उनको क्लीन चिट दे चुकी है फिर भी राजनीतिक बदले के लिए पूछताछ की जा रही है। गौरतलब है कि वाड्रा को कम से कम 15 बार पूछताछ के लिए बुलाया गया है और कई बार तो 10-10 घंटे पूछताछ हुई है। उनसे एक सौ घंटे से ज्यादा पूछताछ हो चुकी है। फिर भी अभी पूछताछ ही चल रही है। कहा जा रहा है कि अब ईडी बड़ी कार्रवाई यह करने जा रही है कि वह आरोपपत्र दाखिल करेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि सोनिया और राहुल की तरह बिना गिरफ्तारी के ही आरोपपत्र दाखिल होता है या उससे पहले गिरफ्तारी होती है।
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