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13-05-2025 Vol 19

क्यों प्रादेशिक क्षत्रपों से टकराव?

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अगले साल पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं। उससे पहले कम से कम तीन राज्यों के प्रादेशिक क्षत्रपों के साथ टकराव बना कर सरकार राजनीति को उबाल रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा खुला है तो तमिलनाडु में एमके स्टालिन के खिलाफ और केरल में सीपीएम के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के खिलाफ। ईडी ने पिनरायी विजयन की बेटी टी वीना के खिलाफ जांच की तैयारी की है। कहा जा रहा है कि जल्दी ही उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा। दूसरी ओर सीपीएम ने भी कमर कसी है कि जो होगा, देखा जाएगा। पहले तो विजयन के खिलाफ ही कई मामले शुरू होते दिख रहे थे और सोने की तस्करी से उनका और उनके कार्यालय का नाम जोड़ा जा रहा था।

केरल में भाजपा ने राजीव चंद्रशेखर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जो पिछले लोकसभा चुनाव में महज 16 हजार वोट से तिरूवंनतपुरम सीट पर शशि थरूर से हारे थे। वहां लोकसभा चुनाव में भाजपा का खाता खुल गया है। त्रिशूर सीट पर उसके सुरेश गोपी जीते हैं।

तमिलनाडु में भाजपा ने एक साथ कई मोर्चे खोले हैं। केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नाम पर, त्रिभाषा फॉर्मूले के नाम पर, केंद्रीय एजेंसियों की जांच के जरिए या किसी और तरीके से स्टालिन के साथ टकराव बनाए हुए है। यह भी समझ में नहीं आने वाली बात है कि जिस  राज्य में भाजपा का बड़ा आधार नहीं है और उसे एक दूसरी प्रादेशिक पार्टी के कंधे पर सवार होकर राजनीति करनी है वहां उसने क्यों इतने मुद्दों पर टकराव बनाया है? सोचें, प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु गए तो मुख्यमंत्री स्टालिन न तो उनके रिसीव करने गए और न उनके साथ सरकारी कार्यक्रम में मंच साझा किया।

तब एक जनसभा में प्रधानमंत्री ने स्टालिन को चिढ़ाते हुए कहा कि तमिल नेताओं की चिट्ठी मिलती रहती है लेकिन वे तमिल में दस्तखत नहीं करते हैं। मोदी ने कहा कि उन्हें तमिल में दस्तखत करना चाहिए ताकि भाषा का गौरव बढ़े। उन्होंने मुख्यमंत्री को चिढ़ाते हुए यह भी कहा कि मेडिकल की पढ़ाई तमिल में करानी चाहिए। ध्यान रहे स्टालिन मेडिकल में दाखिले के लिए होने वाली नीट की परीक्षा का विरोध कर रहे हैं।

तमिलनाडु और बंगाल में संघीय ढांचे पर सियासी टकराव

इस टकराव में पहली बाजी स्टालिन ने मारी है। उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के बिल रोकने को अवैध करार दिया और ऐसा आदेश दिया कि राज्य सरकार के 10 लंबित बिल बिना राज्यपाल के दस्तखत के ही कानून बन गए। यह आजाद भारत के इतिहास में पहली बार हुआ। स्टालिन सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया है उससे पूरी भाजपा और उसके इकोसिस्टम के लोग बिलबिला रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में आदेश देकर राज्यों के विधेयक पर राष्ट्रपति के अधिकारों की सीमा भी तय कर दी। अगले साल चुनाव से पहले तक राज्य की राजनीति गरमाई रहेगी।

सनातन, हिंदी भाषा, शिक्षा नीति, वित्तीय हिस्सेदारी आदि के मुद्दे पर टकराव जारी रहेगा। यह टकराव स्टालिन को भी सूट कर रहा है तो वे भी इसे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस कुरियन जोसेफ की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय कमेटी बना दी है, जो राज्य के अधिकार बढ़ाने के बारे में सुझाव देगी।

उधर पश्चिम बंगाल में स्थायी टकराव है। ममता बनर्जी के साथ शुरुआती सद्भाव दिखाने के बाद से पिछले लगभग 10 साल से नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने आरपार की लड़ाई बना रखी है। हालांकि पता नहीं किस कारण से वहां भी ध्यान रखा गया है कि ममता बनर्जी या उनके परिवार के किसी सदस्य की गिरफ्तारी न हो। ममता सरकार के अनेक मंत्री अलग-अलग मामलों में गिरफ्तार हो चुके हैं।

कुछ लोग चिट फंड घोटाले में पकड़े गए तो कुछ शिक्षक भर्ती घोटाले में पकड़े गए तो कुछ सीमा पार मवेशी तस्करी में गिरफ्तार हुए। लेकिन तमाम आरोप लगने के बावजूद ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रूजिरा की गिरफ्तारी नहीं हुई। सीबीआई और ईडी ने अभिषेक के अलावा उनकी पत्नी और ससुराल पक्ष के अनेक लोगों से कई बार पूछताछ की है लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई है।

केंद्रीय एजेंसियों की जांच के अलावा भी पश्चिम बंगाल में राजनीतिक टकराव बहुत भारी है। अभी वक्फ कानून के मसले पर मुर्शिदाबाद, दक्षिण 24 परगना, मालदा आदि जिलों में जम कर हिंसा हुई है। तीन लोगों की मौत हुई है तो अनेक पुलिसकर्मियों सहित सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। लोगों का पलायन भी हुआ है। मुख्यमंत्री का आरोप है कि केंद्र सरकार के अर्धसैनिक बलों ने हिंसा भड़काई। ममता इतना नाराज हुईं कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि वे अपने गृह मंत्री अमित शाह को संभाल लें। केंद्र और राज्य सरकार में चल रहे टकराव के बीच राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने हिंसा प्रभावित मुर्शिदाबाद का दौरा करने का फैसला लिया।

पहले भी बंगाल के राज्यपाल ममता बनर्जी सरकार को लेकर कानून व्यवस्था के मसले पर टिप्पणी करते रहे थे। इससे पहले संदेशखाली का मसला आया था, जहां शाहजंहा शेख की गिरफ्तारी हुई। उसे भी जम कर हिंदू-मुस्लिम का रूप दिया गया था। बंगाल में अगले साल मई में चुनाव होने वाले हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में तमाम दावों के बावजूद भाजपा 294 सदस्यों की विधानसभा में 77 सीट ही जीत पाई थी। अब तक उससे अनेक विधायक पाला बदल कर तृणमूल कांग्रेस में जा चुके हैं। अब उसके पास 65 विधायक बचे हैं। कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी भाजपा सांसदों को भी तोड़ने की कोशिश कर रही हैं। अगर ऐसा कुछ होता है तो टकराव और बढ़ेगा।

Pic Credit: ANI

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हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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