Tuesday

13-05-2025 Vol 19

भोपालः ‘इलेक्शन टाईट’और कंफ्यूजन!

629 Views

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी पहुँचते ही जो पहली बात सुनाई पड़ती है वह है ‘इलेक्शन टाईट है’।उस नाते मध्यप्रदेश में भी चुनावी माहौल छत्तीसगढ़ जैसा ही है। दोनों ही राज्यों में कुछ महीने पहले तक कांग्रेस की आसान जीत होती दिख रही थी, जो पिछले कुछ हफ्तों में ‘कड़ी टक्कर’में बदल गई है।क्या इसे भाजपा के लिए उपलब्धि माने? परवह भाजपा, जिसका भोपाल गढ़ माना जाता रहा है! कांग्रेस अति-आत्मविश्वास में डूबीहुई है जबकि लोगों की बातों में कांग्रेस ‘टाईट इलेक्शन’ में फंसी हुई है।

विधानसभा चुनाव-2023 मध्यप्रदेशः ग्राउंड रिपोर्ट

प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर का हल्ला है। बावजूद इसके भोपाल शहर में विपरीत माहौल के बावजूद भाजपा माहौल को अपने पक्ष में करने में कामयाब दिख रही है। और इस ‘अनुकूल स्थिति’का अधिकतर श्रेय – लोग और स्थानीय पत्रकार दोनों – शिवराज सिंह चौहान की ‘लाड़ली बहना’योजना को देते हैं। शिवराज सिंह चौहान, जिन्हें ‘मामा’भी कहा जाता है, के 18 साल सत्ता में रहने के बाद भी जनता में उनके प्रति गुस्सा नहीं है।जाहिर है चुनाव शिवराज के चेहरे पर न होते हुए भी उनके चेहरे पर ही हो रहा है।

भोपाल के नरेला में पान की दुकान चलाने वाले राजेन्द्र जैन साफ कहते हैं,‘‘टक्कर है प्रदेश में भी और नरेला में भी”। उनका दावा है कि उन्होंने पिछले 45 सालों में कभी ऐसी टक्कर नहीं देखी।कुछ मीटर दूर राहुल गांधी एक सभा को संबोधित कर रहे थे।लोगों की भीड़ उन्हें देखने-सुनने के लिए जमा हो रही थी। पास ही खड़े सतवीर सिंह ने भी कहा कि उन्होंने पहले कभी इतना कड़ा मुकाबला नहीं देखा।

नरेला मध्यप्रदेश का एक महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र है, जो भोपाल जिले के उत्तरी हिस्से में है, जहां भाजपा के विश्वास सारंग और कांग्रेस के मनोज शुक्ला के बीच कांटे की टक्कर है। परिसीमन के बाद नरेला विधानसभा सीट सन् 2008 में अस्तित्व में आई थी। पहले यह भोपाल दक्षिण विधानसभा सीट का हिस्सा थी। वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग ने सन् 2008 में पहली बार यहां से चुनाव लड़ा और उसके बाद से वे लगातार यहाँ से जीतते आ रहे हैं। अब उन्हें नरेला का एक बाहुबली नेता माना जाता है। सन् 2018 के चुनाव में विश्वास सारंग ने यह सीट 23,151 वोटों के बड़े अंतर से जीती थी। सन् 2008 और 2013 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के दबंग नेता सुनील सूद को हराया था। सारंग सन् 2013 से 2018 तक और फिर 2020 से अभी तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री रहे हैं।

नरेला में चुनाव का नतीजा काफी हद तक मुस्लिम और ब्राम्हण मतदाता तय करते हैं। यहां सारंग की मजबूत पकड़ है लेकिन कांग्रेस के शुक्ला उम्मीदवार के तौर पर नए तो हैं, लेकिन वे पिछले तीन सालों से मैदान में काम कर रहे हैं।उनके जनता से जीवंत संबंध हैं। उन्होंने सभी धर्मों के मतदाताओं में योजनाबद्ध ढंग से कार्य करते हुए अपनी पैठ बनाई है। यहां तक कि नरेला के नुक्कड़ों-चौराहों पर चर्चा है कि ब्राम्हण, जो परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देते रहे हैं, और अबतक सारंग का समर्थन करते आए हैं, धीरे-धीरे शुक्ला के पक्ष में जा रहे हैं, मुख्यतः उनके ब्राम्हण होने के कारण।

बताया जाता है कि इसका मुकाबला करने और ब्राम्हणों को दुबारा अपने पक्ष में करने के लिए सारंग ने पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री और प्रदीप मिश्रा की कथाओं का आयोजन करवाया। इस बीच चुनावी मौसम शुरू होने के पहले शुक्ला ने भी साफ्ट हिन्दुत्व का सहारा लेते हुए अपने विधानसभा क्षेत्र की महिलाओं के लिए निःशुल्क गिरिराज परिक्रमा-ब्रज दर्शन की व्यवस्था करवाई। इससे उन्हें हिंदू मतदाताओं का दिल जीतने और उनके बीच अपने पक्ष में माहौल बनाने में काफी मदद मिली।

इस तरह सारंग और शुक्ला दोनों हिन्दुत्व के एजेंडे का ही सहारा ले रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सारंग के और राहुल गांधी शुक्ला के चुनाव प्रचार के लिए आए लेकिन इसका जनता पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। नरेला एक ऐसी सीट है जहां चुनाव स्थानीय नेताओं के चेहरों पर लड़ा जा रहा है। यह चुनाव सारंग और शुक्ला के बीच है ना कि मोदी-चौहान बनाम कमलनाथ-राहुल गांधी।

और किसी पार्टी, किसी नेता, किसी चेहरे को बढ़त हासिल नहीं है, कोई बेहतर स्थिति में नहीं है। क्योंकि गांव से लेकर शहर तक टाईट है मामला!

यह काफी आश्चर्यजनक है। हिसाब से इस सीट पर मुकाबला नहीं होना चाहिए लेकिन भोपाल में भी मुकाबला कड़ा है तो प्रदेश के बाकि अंचलों में क्या होगा? इस पर राजधानी के वरिष्ठ पत्रकारो की राय का लबोलुआबभाजपा का पक्ष भारी दिखेगी। तभी एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना कि भोपाल में पत्रकार अर्से से एकतरफा हुए पड़े है। और ऐसा 2018 में भी था। तब शिवराज सिंह चौहान और उनके मंत्रियों के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल नजर आया था। भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा था और जनता बदलाव के लिए बेताब थी। बावजूद इसके तब भी अधिकांश पत्रकार भाजपा का जीतता बता रहे थे। इस बार भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं है लेकिन अंदर ही अंदर एक हवा बहुत हुआ शिवराज का राज की है। क्या लोग थक गए है? इसे लेकर कंफ्यूजन है। कांग्रेस को लेकर यह सवाल है कि नरेंद्र मोदी के सघन प्रचार के बीच कांग्रेस क्याबूथ स्तर पर अपने वोट पडवा सकेगी? जानकारों के मन में शंका है, कंफ्यूजन है वही जनता के मन में परस्पर विरोधी विचार और विचारों का द्वन्द है।(कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *