उदयपुर/बांसवाडा। आज मतदान है। और निश्चित ही मेवाड़ में मुकाबलाकांटे का है। उदयपुर, चित्तोडगढ, भीलवाडा व बांसवाड़ा के मेवाड-वाघड़ इलाके में मतदान वैसा नहीं होता लगता है जैसा 2018 या उससे पहले के चुनावों में था। भाजपा बिखरी हुई है। कांग्रेस रामभरोसें है और दोनों पार्टियों के बागियों की पौ-बारह है!तभी पूरे राजस्थान को लेकरमोटा मोटी लगता है कि राजस्थान आज जब वोट डालेगा तो वह पहले के चुनावों से हटकर होगा। पहले के चुनावों में ज्यादातर लोग बदलाव के पक्ष में होते थे, क्योंकि वे या तो राजे की भाजपा से तंग आ चुके होते थे और अशोक गहलोत की कांग्रेस को मौका देना चाहते थे – या इसका उल्टा होता था। इस बार ऐसा कोई मूड स्पष्ट नजर नहीं आता।
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इस तरह का अहसासमेवाड़ में प्रवेश करते ही होता है। मेवाड़-वागड़क्षेत्र में विधानसभा की 28 सीटें हैं। इस इलाके के बारे में यह माना जाता है कि यहां जो जीतता है राज्य में उसी की सरकार बनती है। हालांकि सन् 2018 में यह भ्रम टूटा था- कांग्रेस और भाजपा दोनों ने यहाँ से 13-13 सीटें जीतीं (बची हुई दो सीटें आदिवासी पार्टी बीटीपी को मिली)। शायद इसी वजह से स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं बनी। गहलोत के पांच साल उतार-चढ़ाव भरे रहे। इस बार भी यहाँ चुनावी गणित गड़बड़ा रहा है और इसकी बड़ी वजह है बागियों का चुनावी मैदान में होना। ऐसी 13 सीटें हैं जिनपर बागी उम्मीदवार उलटफेर कर सकते हैं। और भीलवाड़ा, चित्तोडगढ़जिले इनमें प्रमुख है। बागी भी भाजपा-संघ के बडे नेता। राजे सरकार के स्पीकर रहे वरिष्ठत भाजपा नेता, 90 वर्षीय कैलाश मेघवाल शाहपुरा में बतौर निर्दलीय, भीलवाडा में संघ के खांटी स्वंयसेवक अशोक कोठारी भाजपा उम्मीदवार को चुनौती देते हुए बागी तो चित्तोड़गढ शहर में चंद्रभान सिंह आक्या भी भाजपा के नरपतसिंह राजवी की कैमेस्ट्री-गणित दोनों बिगाडे हुए है।