nayaindia udayanidhi mamannan उदयनिधि की अंतिम फ़िल्म

उदयनिधि की अंतिम फ़िल्म

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि अब फिल्मों में काम नहीं करेंगे। ग्यारह साल पहले परदे पर उनकी शुरूआत हुई थी औऱ अब तक उन्होंने लगभग डेढ़ दर्जन फिल्में की हैं। ‘मामन्नन’ उनकी अंतिम फिल्म है और बॉक्स आफ़िस के हिसाब से शायद उनकी सफलतम फिल्म भी है। हालांकि थेवर समुदाय के लोग सामाजिक न्याय के मुद्दे पर बनी और पॉलिटिकल थ्रिलर कही जा रही इस फिल्म के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन तमिलनाडु की फिल्मों से ओतप्रोत राजनीति में यह सब चलता रहता है। उदयनिधि के साथ इस फिल्म में वाडिवेलु, कीर्ति सुरेश और मलयाली स्टार फ़हाद फ़ासिल भी हैं जबकि एआर रहमान ने संगीत दिया है। इसकी कहानी एक दलित विधायक और उसके बेटे के गिर्द घूमती है। मारी सेल्वराज के निर्देशन वाली इस फिल्म का निर्माण खुद उदयनिधि के प्रोडक्शन हाउस रेड जायंट मूवीज़ ने किया है। हो सकता है कि उदयनिधि अभिनय तो छोड़ दें, लेकिन फिल्में बनाने का काम जारी रखें।

वैसे भी करुणानिधि के परिवार को फिल्मों से अलग करके देख पाना मुश्किल है। खुद करुणानिधि बहुत अच्छे लेखक थे। उपन्यास, कहानियों और नाटकों के अलावा उन्होंने 1947 से फिल्में लिखना शुरू किया और मृत्युपर्यंत लिखते रहे। अप्रैल 2011 में उनका निधन हुआ और उससे एक महीने पहले ही उनकी लिखी ‘पोन्नार शंकर’ रिलीज़ हुई थी। उनकी लिखी शुरूआती कई फिल्मों मे एमजी रामचंद्रन हीरो थे जो बाद में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बने। फिल्मों में करुणानिधि ने गीत भी लिखे और तीन टीवी सीरियल भी। उन्हें लगता था कि फिल्में उनकी राजनीति में सहायक हैं। इसीलिए एमके स्टालिन को भी फिल्मों में आना पड़ा। पहले वे फिल्म निर्माण में आए। फिर दो सीरियलों में और ‘मक्कल आनै इत्तल’ और ‘ओरे रथम’ नाम की दो फिल्मों में अभिनय किया। 1987 और 1988 की ये दोनों फिल्में उनके पिता के करुणानिधि ने लिखी थीं। इनमें से एक में तो स्टालिन डीएमके का झंडा उठाए नज़र आए। फिर उन्हें लगा कि वे फिल्मों के लिए नहीं बने हैं इसलिए पूरी तरह राजनीति में आ गए। वैसे ही अब उदयनिधि के फिल्में छोड़ने का वक्त आ गया है। वे पहले ही अपने पिता के मंत्रिमंडल में शामिल हैं। लेकिन स्टालिन सत्तर बरस के हो चुके हैं, इसलिए उदयनिधि को राजनीति पर ज्यादा ध्यान देना होगा।

By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें