केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में एक विधेयक पेश करने वाली है, जिसमें जम्मू कश्मीर की विधानसभा में प्रवासी कश्मीरियों, पाक कब्जे वाले कश्मीर से आए शरणार्थियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। इस बिल के जरिए राज्य में विधानसभा की सीटों की संख्या 107 से बढ़ा कर 114 किया जाएगा। ध्यान रहे जम्मू कश्मीर विधानसभा में पहले 87 सीटें थीं। इनमें से चार सीटें लद्दाख की थीं, जो अलग हो गईं। परिसीमन के बाद बची हुई 83 सीटों को बढ़ा कर 107 कर दिया गया है। अब इसमें सात सीटें और जोड़ी जा रही हैं, जिसमें कुछ मनोनयन वाली सीटें होंगी। इस विधेयक को चार दिसंबर से शुरू होने जा रहे शीतकालीन सत्र के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
सवाल है कि क्या इससे यह माना जाए कि जम्मू कश्मीर में बहुत जल्दी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं? अगर चुनाव नहीं होते हैं तो इस बिल का क्या मतलब है? ध्यान रहे राज्य में 2018 से ही विधानसभा भंग है। जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा भले अगस्त 2019 में खत्म किया गया लेकिन उससे पहले नवंबर 2018 में ही विधानसभा भंग कर दी गई थी। उस समय राष्ट्रपति शासन लागू था और कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी ने मिल कर सरकार बनाने का प्रस्ताव तब के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को भेजा था। लेकिन बताया गया कि राजभवन की फैक्स मशीन खराब हो गई थी इसलिए उनको प्रस्ताव नहीं मिला और उन्होंने विधानसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी। बहरहाल, तब से राज्य में विधानसभा भंग है। इस बीच परिसीमन, आरक्षण, मनोनयन सब हो रहा है, सरकार के हिसाब से विकास भी खूब हो रहा है और शांति भी बहाल हो गई है, सिर्फ विधानसभा का चुनाव नहीं हो रहा है।