बिहार में कांग्रेस पार्टी की मुश्किल यह है कि उसके पास लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के साथ मोलभाव करने वाला कोई नेता नहीं है। कांग्रेस ने राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। लेकिन वे लालू और तेजस्वी पर दबाव बना कर या तिकड़म करके न तो मनलायक सीटें ले सकते हैं और न ज्यादा सीटों की मांग कर सकते हैं।
इसका कारण यह है कि वे दूसरी बार के विधायक हैं लेकिन अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर उन्होंने राजनीति नहीं की है। दूसरी ओर कांग्रेस ने राहुल गांधी के करीबी कर्नाटक के रहने वाले कृष्णा अलावरू को प्रभारी बना कर पटना भेजा है। उनको भी जमीनी राजनीति का अनुभव नहीं है और बिहार के बारे में तो खैर कोई जानकार भी नहीं है।
बिहार कांग्रेस का नेतृत्व संकट और संघर्ष
ऊपर से कृष्णा अलावरू प्रभारी से ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष की तरह काम कर रहे हैं। वे पार्टी की बैठकों का नेतृत्व करते हैं और महागठबंधन की बैठक में भी प्रदेश अध्यक्ष को किनारे करके खुद ही बीच में बैठते हैं। मुकेश सहनी के यहां हुई महागठबंधन की तीसरी बैठक में वे तेजस्वी की बगल में बैठे।
पूरी बैठक में और बाद में भी कांग्रेस के चेहरे के तौर पर उन्हीं को दिखाया गया। सोचें, उनके नाम पर बिहार में कहां वोट मिलने वाला है? दलित नेता राजेश राम सेंटर में होंगे तो उनके नाम पर कुछ दलित वोट गठबंधन को मिलेगा। लेकिन अलावरू ने उनको किनारे कर दिया है।
इससे पहले अखिलेश प्रसाद सिंह कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे पहले राजद में रहे थे। उनको बिहार की सीटों की जानकारी है, जाति समीकरण की जानकारी है और लालू प्रसाद से कैसे सीटें निकालनी है इसका भी तरीका वे जानते हैं। लेकिन अध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी ने उनको पूरी तरह से किनारे कर दिया है।
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