nayaindia Bihar politics बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने का खेल

बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने का खेल

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बिहार में ऐसा लग रहा है कि राजनीति फिर करवट बदलेगी। वह समय कब आएगा यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन भारतीय जनता पार्टी जिस तरह की राजनीति कर रही है उसे देखते हुए लग रहा है कि जल्दी ही नया खेल हो सकता है। इस खेल की शुरुआत भाजपा को विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी बनाने से हुई है। Bihar politics

गौरतलब है कि बिहार विधानसभा में भाजपा और राजद के सीटों में सिर्फ एक सीट का अंतर था। लेकिन राज्य में नई सरकार बनने के बाद राजद के चार विधायक पाला बदल चुके हैं। हालांकि अभी तक राजद ने इन चारों की सदस्यता खत्म करने का अनुरोध स्पीकर से नहीं किया है लेकिन अब ये चार विधायक सत्तापक्ष की ओर भाजपा के साथ बैठ कर रहे हैं। इससे राजद के विधायकों की संख्या 79 से घट कर 75 रह गई है, जबकि 78 विधायकों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।

असल में बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने का खेल 2020 के विधानसभा चुनाव के थोड़े दिन बाद से ही चल रहा है। चुनाव के बाद 75 सीट के साथ राजद सबसे बड़ी पार्टी थी और 74 सीट के साथ भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन बाद में भाजपा ने अपनी  सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी के तीन विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया और सबसे बड़ी पार्टी बन गई।

जब नीतीश कुमार 2022 में पाला बदल कर राजद के साथ चले गए तो उनको आशंका थी कि किसी समय अगर कुछ विधायक जदयू या राजद छोड़ते हैं तो भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के नाते सरकार बनाने का दावा कर सकती है और राज्यपाल उसे मौक भी दे सकते हैं। तब नीतीश कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री पहल करके अदुद्दीन ओवैसी की पार्टी में टूट कराई और उसके पांच में से चार विधायक राजद में चले गए। इससे राजद 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई। Bihar politics

अब फिर नीतीश कुमार वापस एनडीए में लौट गए हैं तो फिर से भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाने का खेल हो गया। नीतीश सरकार के विश्वास मत के दिन राजद के तीन विधायक- नीलम देवी, चेतन आनंद और प्रहलाद यादव सत्तापक्ष की ओर चले गए। Bihar politics

पिछले दिनों राजद की विधायक संगीता कुमारी और कांग्रेस के दो विधायक सिद्धार्थ और मुरारी गौतम भी भाजपा का पटका गले में डाल कर विधानसभा में पहुंचे और सत्तापक्ष के साथ बैठ गए। इस तरह राजद के चार विधायक अलग हो गए हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि विधानसभा में उसकी संख्या घट कर 75 हो गई है। सोचें, पिछले तीन साल में बिहार विधानसभ में सबसे बड़ी पार्टी का स्टैटस चार बार बदल चुका है।

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