कांग्रेस पार्टी को अचानक सीताराम केसरी याद आ गए हैं। शुक्रवार, 24 अक्टूबर को सीताराम केसरी की 25वीं पुण्यतिथि थी। इस मौके पर कांग्रेस के पुराने कार्यालय 24, अकबर रोड में एक श्रद्धांजलि सभा का कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें राहुल गांधी ने जाकर केसरी को श्रद्धांजलि दी। उधर शुक्रवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में थे, जहां उन्होंने चुनावी सभा में कांग्रेस पर हमला किया और कहा कि कांग्रेस ने सीताराम केसरी को अपमानित किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने केसरी से अध्यक्ष पद छीन लिया था। वैश्य समाज से आने वाले सीताराम केसरी के बहाने मोदी ने कांग्रेस को पिछड़ा विरोधी भी बताया।
सोचें, सीताराम केसरी को गुजरे 25 साल हो गए हैं और इन 25 सालों में कभी भी कांग्रेस या भाजपा को उनकी याद नहीं आई। लेकिन इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में सबको केसरी याद आ रहे हैं वैसे ही जैसे सबको कर्पूरी ठाकुर याद आ रहे हैं। असल में इस बार का बिहार चुनाव जाति गणना के बाद का पहला चुनाव है, जिसमें हर छोटी बड़ी जाति बहुत अहम हो गई है। छोटी बड़ी सारी जातियां अपनी आबादी के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा लड़ाई अति पिछड़ी जातियों को लेकर है, जिन पर भाजपा का सबसे पहला दावा रहता है। इस बार कांग्रेस भी इस खेल में है। राहुल गांधी ने अति पिछड़ी जातियों के लिए अलग से घोषणापत्र जारी किया है। बहरहाल, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीताराम केसरी का कार्यकाल बहुत उथलपुथल वाला रहा। प्रधानमंत्री पद पाने की हड़बड़ी में उन्होंने जनता दल की सरकार गिरवाई और अंत में अध्यक्ष पद भी गंवाया। उन्होंने सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के रास्ते में बाधा डाली, जिसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ा था।


