राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

बंगाल पर संवैधानिक संस्थाओं की बेचैनी

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में कथित हिंसा और महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले में भारत की संवैधानिक संस्थाओं ने जैसी फुरती और जैसी बेचैनी दिखाई है वह अद्भुत है। कम से कम दो संस्थाओं ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देने की सिफारिश कर दी तो एक संस्था ने राज्य के सभी बड़े पदाधिकारियों को हाजिर होने का नोटिस जारी कर दिया। भाजपा शासित किसी राज्य में ऐसी या इससे भी बड़ी घटना हो जाए तो इन संवैधानिक या वैधानिक संस्थाओं के कान पर जूं नहीं रेंगती है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने महिलाओं पर अत्याचार का मामला बताते हुए बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की है। लेकिन देश की महिला पहलवानों के मामले में महिला आयोग ने कोई पहल नहीं की थी।

इसी तरह राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष अरुण हलदर बंगाल के दौरे पर गए और अपने संक्षिप्त दौरे के बाद राष्ट्रपति से सिफारिश कर दी कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए। ऐसे ही भाजपा के सांसदों ने संदेशखाली जाने का प्रयास किया और पुलिस ने उनको रोका तो झड़प हो गई। इसे लेकर लोकसभा की विशेषाधिकार समिति ने राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, जिले के कलेक्टर, एसपी, थानाध्यक्ष सबको हाजिर होने का नोटिस जारी कर दिया। वह तो समय रहते राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची तब सर्वोच्च अदालत ने इस कार्रवाई पर रोक लगाई। सोचें, भाजपा के सांसद विपक्षी शासन वाले किसी राज्य में राजनीतिक कार्यक्रम करेंगे और अगर पुलिस या प्रशासन से झड़प हो तो क्या यह संसद के विशेषाधिकार का मामला बन जाता है!

Tags :

By NI Political Desk

Get insights from the Nayaindia Political Desk, offering in-depth analysis, updates, and breaking news on Indian politics. From government policies to election coverage, we keep you informed on key political developments shaping the nation.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *