बिहार में विधानसभा का चुनाव होने वाला है और उससे पहले केंद्रीय एजेंसियों यानी सीबीआई और ईडी की एंट्री हुई है। यह बड़ी हैरानी की बात है कि राज्य में एनडीए की सरकार है। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और उनकी सरकार में भाजपा भी शामिल है। आमतौर पर भाजपा या एनडीए शासित राज्यों में केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई नहीं होती है।
ईडी ने पिछले दिनों कई जगह छापे मारे, जिसमें करीब 12 करोड़ रुपए की नकदी जब्त की गई। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि एजेंसियों की जो भी कार्रवाई हो रही है उसमें निशाने पर उस मंत्रालय के अधिकारी और ठेकेदार हैं, जिनकी कमान जनता दल यू के हाथ में है। तभी इसके पीछे राजनीति देखी जा रही है।
ईडी की कार्रवाई के पीछे जेडीयू की अंदरूनी खींचतान?
इसके पीछे जनता दल यू के अंदर की खींचतान को भी एक कारण बताया जा रहा है। जानकार सूत्रों का कहना है कि आईएएस अधिकारी संजीव हंस के यहां ईडी की कार्रवाई से पहले मुख्यमंत्री कार्यालय से सलाह ली गई थी और सीएमओ की मंजूरी के बाद ही कार्रवाई हुई।
कहा जा रहा है कि सीएमओ में अब नीतीश कुमार खुद फैसले नहीं कर पा रहे हैं। उनके आसपास के लोगों ने अपनी सुविधा से ऐसे अधिकारी को टारगेट कराया, जिनसे उनके संबंध ठीक नहीं थे।
अब भी उन्हीं अधिकारी के आसपास के लोगों को निशाना बनाया गया है। जानकार सूत्रों का कहना है कि इससे जनता दल यू पर दबाव होगा। केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से नीतीश सरकार में बहुत भ्रष्टाचार होने की धारणा मजबूत हो रही है। हो सकता है कि इससे मोलभाव करने की भाजपा की क्षमता बढ़ जाए लेकिन सरकार के बारे में धारणा बिगड़ेगी तो उसका नुकसान भाजपा को भी हो सकता है।
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