हरियाणा में भाजपा की नायब सिंह सैनी सरकार अल्पमत में आ गई है। पहले दुष्यंत चौटाला की 10 विधायकों वाली जननायक जनता पार्टी सरकार से अलग हुई और अब तीन निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। इस तरह 88 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा के पास 43 विधायकों का समर्थन है, जिसमें से 40 उसके अपने विधायक हैं और तीन अन्य हैं। बहुमत का आंकड़ा 45 का है। दूसरी ओर विपक्ष के पास 45 विधायक हैं। लेकिन इसमें कांग्रेस के अपने 30 ही विधायक हैं। 10 विधायक दुष्यंत चौटाला के हैं, जिनके साथ जाने की जोखिम कांग्रेस किसी हाल में नहीं ले सकती है। अगर कांग्रेस ने उनका साथ लिया तो हरियाणा के जाट वोटों पर एकाधिकार वाली कांग्रेस की राजनीति समाप्त हो जाएगी। सो, कांग्रेस की मजबूरी है कि वह दुष्यंत चौटाला या ओमप्रकाश चौटाला से दूरी रखे।
इसके अलावा भी एक समस्या यह है कि जननायक जनता पार्टी के कम से कम दो विधायक सीधे तौर पर भाजपा के संपर्क में हैं और इसी साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। सो, अगर विश्वास मत हासिल करने की नौबत आई तो ये दोनों भाजपा का साथ दे सकते हैं। इनके गैरहाजिर हो जाने से बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा। वैसे भी विश्वास मत की नौबत चार जून के बाद ही आएगी, तब तक नायब सिंह सैनी भी विधानसभा का चुनाव जीत कर सदन में आ जाएंगे और भाजपा के सदस्यों की संख्या 44 हो जाएगी। कांग्रेस की तीसरी समस्या यह है कि अत्यंत पिछड़ी जाति से आने वाले नायब सिंह सैनी की सरकार गिराने की कोशिश उसको भारी पड़ सकती है। पिछड़ी जातियों की ज्यादा बड़ी गोलबंदी भाजपा के पक्ष में हो सकती है। इसलिए कांग्रेस आवाज उठाती रहेगी, इस्तीफे की मांग करती रहगी, राष्ट्रपति शासन लगाने की भी मांग करेगी लेकिन विश्वास मत की मांग नहीं करेगी। वैसे सितंबर या अक्टूबर में आचार संहिता लगने वाली है।