विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल पार्टियां ज्यादा सीट लेने के लिए राजस्थान के नतीजों की मिसाल देंगे। ध्यान रहे पांच राज्यों में सबसे नजदीकी मुकाबला राजस्थान में ही रहा। वहां कांग्रेस सिर्फ दो फीसदी वोट से भाजपा से पीछे रही। राजस्थान में भले भाजपा को 115 और कांग्रेस व उसकी सहयोगी रालोद को 70 सीटें मिली हैं लेकिन वोट प्रतिशत में ज्यादा फर्क नहीं है। भाजपा को 41.69 फीसदी और कांग्रेस को 39.53 फीसदी वोट मिले हैं। दोनों के वोट में 2.16 फीसदी का फर्क है। विपक्षी गठबंधन में शामिल पार्टियों के वोट जोड़ दें तो यह अंतर लगभग खत्म हो जाएगा। सीपीआई, सीपीएम, सीपीआईएमएल और आम आदमी पार्टी को मिला कर करीब 1.40 फीसदी वोट मिले हैं। ये सब कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल हैं। हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को 2.39 फीसदी वोट मिले हैं।
बेनीवाल पहले भाजपा के साथ थे और भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में उनको एक सीट दी थी, जिस पर वे जीते थे। उनकी पार्टी भाजपा से अलग हो गई तो कांग्रेस उससे तालमेल कर सकती थी लेकिन कांग्रेस ने ध्यान ही नहीं दिया। अगर सिर्फ उनकी पार्टी का वोट जोड़ दें तो कांग्रेस का वोट भाजपा से ज्यादा हो जाता है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी को 1.82 फीसदी वोट मिला है। सबसे दिलचस्प आंकड़ा यह है कि राजस्थान में जिन 199 सीटों पर चुनाव हुआ था उनमें से 44 सीटें ऐसी हैं, जहां किसी तीसरी पार्टी या निर्दलीय को जीत-हार के अंतर से ज्यादा वोट मिले हैं। इन सभी सीटों पर भाजपा जीती है और कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही है। अगर राजस्थान की किसी क्षेत्रीय पार्टी से कांग्रेस का तालमेल रहता तो वह इन 44 में से 30 सीटें जीत सकती थी। यानी वह एक सौ सीट तक पहुंच सकती थी। अब कांग्रेस के नेताओं को इसका अफसोस हो रहा होगा। तभी कहा जा रहा है कि विपक्षी पार्टियां इस बात को हाईलाइट करेंगी और कांग्रेस को मजबूर करेंगी कि वह लोकसभा चुनाव के लिए सभी छोटी पार्टियों से तालमेल करे।