वैसे तो यह विशुद्ध रूप से बदतमीजी और बड़बोलापन है लेकिन विदेश मंत्री के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है! विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पड़ोसी देशों के लिए कहा है कि हमारे साथ रहोगे तो फायदा होगा वरना खामियाजा भुगतना होगा। सोचें, क्या यह कूटनीतिक भाषा हो सकती है? याद करें कैसे अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान के खिलाफ हमले की तैयारी की तो कैसे राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कहा था कि दुनिया के जो देश अमेरिका के साथ नहीं हैं वे आतंकवादियों के साथ हैं। उन्होंने दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया था। वैसे समय में भी उनके इस बयान की आलोचना हुई थी।
लेकिन अब ऐसा कोई समय नहीं है लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि जो पड़ोसी देश भारत से मिल कर रहेंगे उनको फायदा होगा और जो नहीं मिल कर रहेंगे उनको इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। माननीय विदेश मंत्री के हिसाब से सिर्फ एक पाकिस्तान है, जो भारत के साथ नहीं है क्योंकि वहां शासन सेना के हाथ में है। पता नहीं किस हिसाब से विदेश मंत्री बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, मालदीव, अफगानिस्तान आदि देशों को भारत के साथ मान रहे हैं? ये सारे देश चीन के असर में हैं और कम या ज्यादा भारत विरोधी रुख अख्तियार कर चुके हैं। ईमानदारी के साथ कोई भी पड़ोसी देश भारत के साथ नहीं है। ध्यान रहे विदेश मंत्री ने इसी किस्म का बयान यूरोपीय देशों के लिए भी दिया था, जब पहलगाम कांड के बाद उन्होंने कहा था कि भारत को साझीदार चाहिए उपदेशक नहीं। यह अलग बात है कि दुनिया में कहीं भी युद्ध हो तो भारत भी सिर्फ उपदेश ही देता है, जैसे अभी प्रधानमंत्री ने ईरान के राष्ट्रपति से बातचीत में शांति और वार्ता का उपदेश दिया।