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चम्पई का दांव कितना कारगर

हेमंत सोरेन ने मजबूरी में ही सही लेकिन पार्टी के सबसे पुराने नेताओं में से एक चम्पई सोरेन को विधायक दल का नेता चुनवाया और उनको मुख्यमंत्री बनाने का दांव चला। हेमंत ने पहले अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनवाने का प्रयास किय था। उनकी पत्नी भी संथाल आदिवासी हैं और ओडिशा की रहने वाली हैं। लेकिन परिवार के सदस्यों के विरोध और किसी गैर विधायक को सीएम पद की शपथ दिलाने को लेकर बनी संशय की स्थिति को देखते हुए हेमंत ने चम्पई सोरेन का दांव चला। गौरतलब है कि 2009 में जब शिबू सोरेन मुख्यमंत्री रहते विधानसभा का उपचुनाव हार गए थे तब भी पार्टी की ओर से चम्पई सोरेन के नाम की चर्चा हुई थी और शिबू सोरेन ने कहा था कि ‘चम्पई नहीं तो चुनाव’। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और वह शिबू सोरेन की साझेदार भी थी लेकिन उसने न चम्पई को स्वीकार किया और न चुनाव मंजूर किया। उसने राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

इस बार चम्पई झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक दल के नेता बन गए हैं। उनसे पार्टी को बड़े चुनावी लाभ की संभावना है। गौरतलब है कि हेमंत सोरेन संथाल आदिवासी हैं और उनकी पार्टी का पारंपरिक असर संथालपरगना में रहा है। पारंपरिक रूप से उनकी पार्टी कोल्हान और छोटानागपुर इलाके में कमजोर रही है। लेकिन पिछले कुछ समय से कोल्हान इलाके में जेएमएम का असर बढ़ा है। चम्पई सोरेन इसी इलाके के नेता हैं। उनको ‘कोल्हान टाइगर’ कहा जाता है। वे छठी बार के विधायक हैं और पिछले 34 साल में सिर्फ एक चुनाव हारे हैं। कोल्हान इलाके में खूंटी, जमशेदपुर और चाईबासा की तीन लोकसभा सीटें और विधानसभा की करीब डेढ़ दर्जन सीटें आती हैं। चम्पई सोरेन की वजह से इन सीटों पर जेएमएम को फायदा होगा और उधर संथालपरगना के पारंपरिक गढ़ में भी पार्टी मजबूत होगी।

By NI Political Desk

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