झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लेकर दिल्ली और प्रदेश की मीडिया में 36 घंटे से ज्यादा समय तक यह नैरेटिव चलता रहा कि वे लापता हो गए हैं। भाजपा के नेताओं ने ऐसा हंगामा मचाया जैसे, देश की सारी एजेंसियां उनको खोज रही हों और वे नहीं मिल रहे हों। रातों रात झारखंड में सीएम लापता के पोस्टर लग गए और खोज कर लाने वाले के लिए 11 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया। भाजपा के नेता टेलीविजन पर आकर कहने लगे कि उनको शर्म आ रही है कि राज्य का सीएम लापता है। राज्यपाल तक का बयान आ गया। सोचें, केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की एक टीम दिल्ली के शांति निकेतन स्थित उनके आवास पर गई, जहां वे नहीं मिले तो इसका क्या यह मतलब होगा कि सीएम लापता हो गए? क्या एजेंसी ने मीडिया को फीड किया कि सीएम लापता हैं या मीडिया ने खुद ज्यादा स्वामीभक्ति दिखाने के लिए यह प्रचार शुरू किया?
मुख्यमंत्री के खिलाफ अगर वारंट नहीं है और उनके आधिकारिक आवास पर कोई एजेंसी नहीं पहुंची है तो दिल्ली के आवास पर उनके नहीं होने से कैसे उनको लापता माना जा सकता है? यह भी बड़ा सवाल है कि ईडी ने दिल्ली के उनके आवास पर जो किया क्या वह छापा मारना था? बताया जा रहा है कि ईडी ने वहां से एक गाड़ी जब्त की है और यह भी खबर आई है कि 36 लाख रुपए मिले हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा रहा है कि एजेंसी ने छापा मारा। अगर एजेंसी ने छापा मारा तो सिर्फ दिल्ली के आवास पर क्यों मारा गया? यह भी बड़ा सवाल है कि जब खुद ईडी ने सीएम से कहा था कि वे 29 से 31 जनवरी के बीच का कोई समय पूछताछ के लिए बताएं और सीएम की ओर से ईमेल के जरिए ईडी को बता दिया गया कि वे 31 जनवरी को एक बजे दिन में पूछताछ के लिए उपलब्ध रहेंगे तो इस तरह से कार्रवाई का क्या मतलब था? मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शनिवार की रात को दिल्ली आए थे। लेकिन उसके बाद जरूरी नहीं है कि वे शांति निकेतन आवास पर रहें। वे कहीं भी हो सकते थे। बाद में पता चला कि वे रांची चले गए थे। लेकिन इस बीच भाजपा ने तरह तरह के प्रचार कर दिए। भाजपा की ओर से यह काम किया गया था उनकी छवि बिगाड़ने के लिए उलटे हो सकता है कि उनको इसका फायदा हो जाए। क्योंकि उनके समर्थक उनको शिबू सोरेन की तरह पुलिस और एजेंसियों को चकमा देने वाले गुरिल्ला नेता के तौर पर देखने लगे हैं।