अपनी पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए या पुराना गठबंधन तोड़ कर एनडीए से जुड़े नेताओं का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। बिहार में एक समय सत्तारूढ़ दल जनता दल यू में नीतीश कुमार के बाद सबसे महत्वपूर्ण नेता रहे आरसीपी सिंह आज कहां है, किसी को पता नहीं है। वे जदयू कोटे से केंद्र में मंत्री बने थे और उनके दम पर भाजपा ने यह गलतफहमी पाली थी कि वे नीतीश की पार्टी तोड़ देंगे। लेकिन जब उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ तो जदयू ने उन्हें टिकट नहीं दी और उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटना पड़ा था। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए। लेकिन अभी तक उनकी कोई भूमिका नहीं बनी है। वे नालंदा के अपने गांव में रह रहे हैं। बिहार में इस बार राज्यसभा की छह सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें भाजपा की सिर्फ एक सीट है, जबकि उसे दो सीटें मिलेंगी। आरसीपी उम्मीद कर रहे हैं कि उनको एक सीट मिल सकती है। लेकिन इसकी संभावना नहीं है। उनको ज्यादा से ज्यादा लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है।
इसी तरह बीजू जनता दल छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए बैजयंत जय पांडा किसी तरह से संगठन में काम करके अपनी भूमिका बनाए हुए हैं लेकिन पांच साल से ज्यादा हो जाने के बावजूद उनको संसद की कुर्सी नसीब नहीं हुई है। वे इस बार भी राज्यसभा की उम्मीद लगाए हुए हैं लेकिन उनको भी ज्यादा से ज्यादा लोकसभा की टिकट मिल सकती है। गठबंधन सहयोगियों की बात करें तो ओमप्रकाश राजभर बड़ी घोषणा के साथ भाजपा गठबंधन में लौटे थे कि वे राज्य सरकार में मंत्री बनेंगे लेकिन छह महीने से ज्यादा हो जाने के बावजूद उनको मंत्री नहीं बनाया गया है। इसी तरह दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी छोड़ कर भाजपा में लौटे थे। उनको भी मंत्री बनाए जाने का पूरा भरोसा था। लेकिन छह महीने से ज्यादा हो जाने के बाद अभी तक वे भी इंतजार कर रहे हैं। पिछले हफ्ते वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले लेकिन कोई वादा नहीं मिला है।