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भाजपा के कैसे कैसे चुनाव प्रभारी

लोकसभा चुनावों में भाजपा

दो चार नामों को छोड़ दें तो भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अलग अलग राज्यों में जो चुनाव प्रभारी बनाए हैं वे सब अपने अपने राज्य में दूसरी या तीसरी कतार के नेता हैं। ज्यादातर नेताओं की तो राष्ट्रीय स्तर पर कोई कतार भी नहीं है। तभी भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 23 राज्यों में जो चुनाव प्रभारी नियुक्त किए हैं उनको लेकर चौतरफा हैरानी है। आमतौर पर भाजपा केंद्रीय मंत्रियों, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिवों और बड़े नेताओं को चुनाव प्रभारी बनाती थी। बड़े हाई प्रोफाइल नेता चुनाव लड़वाते रहे हैं। लेकिन इस बार अपवाद के लिए ही ऐसे किसी नेता को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। तभी सवाल है कि यह भाजपा का अति आत्मविश्वास है या कुछ और रणनीति है?

मिसाल के तौर पर दो साल पहले उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव था तो राज्य के प्रभारी राधामोहन सिंह थे लेकिन चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान को बनाया गया था, जो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संपर्क में थे और उनकी रणनीति को अंजाम दे रहे थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने भी उनका कद छोटा नहीं था क्योंकि वे केंद्रीय शिक्षा मंत्री थे। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के लिए बीजू जनता दल से भाजपा में आए बैजयंत पांडा को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। अभी तक वे दिल्ली जैसे छोटे से राज्य के प्रभारी थे। मध्य प्रदेश जैसे 29 सीटों वाले राज्य में उत्तर प्रदेश के एमएलसी महेंद्र सिंह चुनाव प्रभारी बने हैं और उनके साथ दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष रहे सतीश उपाध्याय को सह प्रभारी बनाया गया है।

इसी तरह कर्नाटक जैसे अहम राज्य में उत्तर प्रदेश के सांसद राधामोहन दास अग्रवाल को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। इससे पहले किसी राज्य में प्रभारी, सह प्रभारी या चुनाव प्रभारी के तौर पर उन्होंने काम किया है, इसकी जानकारी नहीं है। कई राज्यों में तो भाजपा ने ऐसा कामचलाऊ फैसला किया है कि राज्यों के प्रभारियों को ही चुनाव प्रभारी बना दिया है। जैसे बिहार में विनोद तावड़े प्रभारी हैं और चुनाव प्रभारी भी उन्हीं को बना दिया गया है। हरियाणा के प्रभारी बिप्लब देब और पंजाब के प्रभारी विजय रूपाणी को ही इन राज्यों का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। झारखंड के प्रभारी लक्ष्मीकांत बाजपेयी ही वहां के चुनाव प्रभारी होंगे।

प्रकाश जावडेकर, अरविंद मेनन, तरुण चुघ जैसे कुछ नामों को छोड़ दें तो ज्यादातर नेता दूसरी कतार के हैं और जिनके बारे में कहा जा सकता है कि प्रदेश नेतृत्व के सामने उनका काम ज्यादा नहीं रहेगा। इससे ऐसा भी लग रहा है कि भाजपा प्रदेश नेतृत्व के ऊपर ज्यादा भरोसा कर रही है। उसको लग रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और विकसित भारत संकल्प यात्रा के जरिए चुनाव का एजेंडा खुद केंद्रीय नेतृत्व ने तय कर दिया है और ऊपर से नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना है इसलिए ज्यादा बड़े नेताओं को चुनाव प्रभारी बनाने की जरुरत नहीं है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि हो सकता है कि तमाम बड़े नेता खुद चुनाव लड़ें इसलिए उनको चुनाव प्रभारी नहीं बनाया गया है।

By NI Political Desk

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