महाराष्ट्र में ऐसा लग रहा है कि महायुति यानी शिव सेना, भाजपा और एनसीपी की सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि मराठा आरक्षण के आंदोलन को कैसे हैंडल करें। इसलिए वह अंधेरे में तीर चला रही है। याद करें मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल के आंदोलन के समय राज्य सरकार ने क्या किया था? मनोज जरांगे का आंदोलनकारी जत्था नवी मुंबई तक पहुंच गया था और मुंबई में प्रवेश करने वाला था तब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एक अध्यादेश की कॉपी लेकर उनके पास गए थे, जिसमें ओबीसी में मराठों को शामिल करके उनको आरक्षण देने का प्रावधान था। लेकिन उसके एक महीने बाद ही सरकार ने जो बिल पेश किया वह उस अध्यादेश से बिल्कुल अलग है।
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अध्यादेश में मराठाओं को ओबीसी में शामिल करने का प्रावधान था, जिसके विरोध में राज्य सरकार के मंत्री छगन भुजबल और दूसरे अनेक ओबीसी संगठन उतर गए थे। उन्होंने भी आंदोलन का ऐलान कर दिया था। भुजबल ने सरकार से इस्तीफा देकर सड़क पर ओबीसी अधिकार की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया। इसके बाद हड़बड़ी में सरकार ने पूरा बिल बदल दिया। विधानसभा में जो कानून पास किया गया वह अलग से 10 फीसदी आरक्षण देने का है, जिससे आरक्षण की सीमा बढ़ कर 62 फीसदी हो जाएगी। पहले भी कांग्रेस की सरकार ने 16 फीसदी आरक्षण दिया था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था। इसलिए मराठा नेताओं को लग रहा है कि यह कानून भी खारिज हो जाएगा। लेकिन भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को लग रहा है कि जब तक ऐसा होगा, तब तक लोकसभा का चुनाव हो चुका होगा। लेकिन मनोज जरांगे पाटिल ने इसके पीछे के खेल को समझ लिया और जल्दी ही फिर आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है।