मुगल शासक औरंगजेब की कब्र को लेकर महाराष्ट्र में विवाद छिड़ा तो सांप्रदायिक दंगा नागपुर में हुआ। महाराष्ट्र में नागपुर सबसे शांत शहरों में गिना जाता है, जहां बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा टूटने के बाद भी दंगे नहीं हुए थे। (nagpur violence)
उसके मुकाबले कई दूसरे क्षेत्र बहुत संवेदनशील है। सबसे ज्यादा संवेदनशील तो संभाजीनगर ही है, जिसका पुराना नाम औरंगाबाद था। उसी संभाजीनगर के खुल्दाबाद में औरंगजेब की कब्र है। इसके बारे में इतिहासकार बताते हैं खुद औरंगजेब ने इच्छा जताई थी कि उसकी कब्र वहां बने।
औरंगजेब ने टोपी बुन कर की गई कमाई का करीब 14 रुपया अपने अंतिम संस्कार और कब्र बनाने के लिए छोड़ा था। तभी औरंगजेब की कब्र बाकी मुगल शासकों के मुकाबले बहुत साधारण बनाई गई थी। (nagpur violence)
इतिहासकार यह भी बताते हैं कि औरंगजेब के मरने के बाद उसकी जेल से छूट कर संभाजी महाराज के बेटे साहूजी उसकी कब्र पर गए थे। मराठा शासकों ने बाद में उसकी कब्र के आसपास कुछ निर्माण भी कराए।
बहरहाल, कब्र के विवाद में संभाजीनगर में दंगा नहीं हुआ। सांप्रदायिक तनाव के लिए विख्यात मुंबई में भी दंगा नहीं हुआ। दंगा हुआ नागपुर में।
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दंगा नागपुर में क्यों प्रायोजित था? (nagpur violence)
मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और उनके मंत्री नीतेश राणे और अन्य नेताओं ने कहा है कि नागपुर का दंगा पहले से प्रायोजित था। तभी यह सवाल है कि दंगा नागपुर में क्यों प्रायोजित था? (nagpur violence)
एक दक्षिणपंथी सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर का कहना है कि यह संयोग नहीं है कि जिस दिन यह खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 मार्च को नागपुर जाएंगे, जहां वे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े एक कार्यक्रम में शामिल होंगे और उसके संघ के मुख्यालय में भी जाएंगे उसी दिन नागपुर में दंगे हुए।
दूसरे, नागपुर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का मुख्यालय है और इस साल अक्टूबर के पहले हफ्ते में विजयादशमी के मौके पर संघ की स्थापना को सौ साल पूरे होने का भी उत्सव मनाया जाएगा। इस आधार पर यह माना जा रहा है कि एक प्रयोग के तहत नागपुर को अस्थिर और अशांत करने के लिए चुना गया।
अगर ऐसा है तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राज्य की देवेंद्र फड़नवीस सरकार को पहले से अंदाजा नहीं था कि नागपुर उनका अपना चुनाव क्षेत्र है, कई कारणों से शहर संवेदनशील हो गया है, प्रधानमंत्री जाने वाले हैं (nagpur violence)
संघ की स्थापना की शताब्दी पूरी होने वाली है तो इसके लिए अतिरिक्त बंदोबस्त किया जाए या खुफिया एजेंसियों को अलर्ट पर रखा जा, जो किसी साजिश के बारे में पहले सूचना दे सकें? ऐसा लग रहा है कि राज्य सरकार ने औरंगजेब की कब्र की सुरक्षा बढ़ाने के अलावा कहीं कुछ भी नहीं किया।
अब सवाल है कि सरकार गफलत में रही या उसने जान बूझकर कुछ नहीं किया क्योंकि उसको पता है कि अगर कुछ होता है तो उससे ध्रुवीकरण कराने में आसानी होगी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि पहले दिन से यह आरोप लग रहे हैं कि सरकार के इशारे पर समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ की।
निश्चित रूप से सरकार को इसके असर का अंदाजा रहा होगा। दूसरे, मुख्यमंत्री खुद मान रहे हैं कि संभाजी महाराज के जीवन पर बनी ‘छावा’ फिल्म से लोगों की भावनाएं भड़कीं। फिर भी सरकार अलर्ट नहीं थी तो क्या कहा जा सकता है! (nagpur violence)