केंद्र सरकार राज्यों के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों को हटाने का जो बिल लेकर आई है उसकी असली चिंता किसको है? वैसे बिल में प्रधानमंत्री को भी शामिल किया गया है लेकिन सबको पता है कि इसका कोई मतलब नहीं है। कायदे से बिल से किसी को चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे ज्यादा हल्ला लोकपाल का मचा था। अन्ना हजारे ने कई दिन तक आंदोलन किया। देश के नौजवान सड़कों पर उतरे। संसद में कई दिन तक चर्चा हुई थी तब जाकर बिल बना था, जिसमें मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को शामिल किया गया। मनमोहन सिंह की सरकार ने यह बिल बनाया था और पिछले एक युग यानी 12 साल में किसी भी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के खिलाफ लोकपाल कानून के तहत कार्रवाई नहीं हुई है। इसलिए नए कानून को लेकर भी ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। जब यह कानून नहीं था तब भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी गिरफ्तार हुए और अरविंद केजरीवाल भी गिरफ्तार हुए। अलग अलग राज्यों के एक दर्जन मंत्री भी गिरफ्तार हुए और सबकी कुर्सी भी गई।
सो, कायदे से नेताओं को चिंता नहीं करनी चाहिए। यह मान कर चलना चाहिए कि अगर गिरफ्तार होना है तो हो जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। नेता चिंता में हैं। सबसे ज्यादा चिंता में कांग्रेस के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और मंत्री हैं। इसके बाद ज्यादा चिंता प्रादेशिक पार्टियों के मंत्रियों की है और उसके बाद चिंता ऐसी प्रादेशिक पार्टियों के बड़े नेताओं की है, जिन्होंने वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बनाई है। जिन्होंने वैकल्पिक व्यवस्था बना ली है उनको ज्यादा चिंता नहीं है। मिसाल के तौर पर झारखंड में हेमंत सोरेन को चिंता नहीं है। अगर वे गिरफ्तार होते हैं तो उनकी पत्नी कल्पना सोरेन मुख्यमंत्री बनेंगे। राज्य में उनकी सरकार है तो जेल अपनी है इसलिए भी उनको चिंता नहीं है। ऐसे ही अगर किसी तरह से अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बन जाते हैं और उनके हटाने के लिए किसी मामले में गिरफ्तारी होती है तो उनकी पत्नी डिंपल यादव मुख्यमंत्री बनेंगी। उनकी भी जेल अपनी होगी तो वहां भी ज्यादा चिंता की जरुरत नहीं होगी। ऐसी व्यवस्था कई नेताओं ने बना रखी है। पकड़े गए तो बेटा, पत्नी या भतीजा गद्दी संभाल लेगा।
लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का क्या होगा? वे देश के उन 40 फीसदी मुख्यमंत्रियों में से हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। अगर वे पकड़े जाते हैं तो कांग्रेस को कई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन उनकी राजनीति खत्म हो जाएगी। वे जेल चले जाएंगे, पद से हटा दिए जाएंगे, कोई और मुख्यमंत्री बन जाएगा और जेल से लौट कर आएंगे तो अपनी जगह फिर से हासिल करना लगभग नामुमकिन होगा। ऐसी ही स्थिति सिद्धारमैया या डीके शिवकुमार या सुखविंदर सिंह सुक्खू की भी हो सकती है। यही स्थिति पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की है। अगर वे किसी मामले में गिरफ्तार हुए और हटाए गए तो राजनीति चौपट होगी, आम आदमी पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। प्रादेशिक पार्टियों में जिनकी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है उनको चिंता है। जैसे बिहार में अगर किसी तरह से तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन जाएं और किसी मुकदमे में फंस कर जेल जाएं तो उनके लिए अपनी पत्नी को सीएम बनाना मुश्किल होगा। वहां फिर भाई और बहनों का झगड़ा शुरू हो जाएगा। तेलंगाना में बीआरएस के अंदर भी ऐसा झगड़ा हो सकता है।