यह लाख टके का सवाल है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में क्यों गई थीं? जब बजट आने के बाद 23 जुलाई की शाम तक यह स्पष्ट हो गया कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की पार्टियां इस बैठक का बहिष्कार करेंगी तो ममता ने क्यों उसमें शामिल होने का फैसला किया? इस बात का कोई मतलब नहीं है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक की ओर से किसी ने उनसे बात नहीं की। यह फालतू की दलील ममता ने खुद दी थी। लेकिन जब सब कुछ मीडिया में था और एक एक करके अलग अलग पार्टियों के नेता बहिष्कार की घोषणा कर रहे थे तो ममता को अलग से कोई एप्रोच करे और उन्हें इसकी जानकारी दे यह जरूरी नहीं था। एमके स्टालिन या भगवंत मान या पिनरायी विजयन से भी किसी ने कोऑर्डिनेट नहीं किया था। कांग्रेस ने अपनी घोषणा की और फिर बाकी पार्टियों ने अपनी ओर से ऐलान कर दिया।
जानकार सूत्रों का कहना है कि ममता बनर्जी के इस बैठक में जाने के दो मकसद थे। पहला मकसद तो यह दिखाना था कि वे कांग्रेस से अलग हैं और कांग्रेस के कहने के हिसाब से काम नहीं करती हैं। अगर वे बैठक में नहीं जातीं तो यह माना जाता कि उन्होंने कांग्रेस के निर्देश का पालन किया है। यह मैसेज वे नहीं बनने देना चाहती हैं कि वे कांग्रेस के साथ है। इसका कारण यह है कि वे पश्चिम बंगाल में अब भी कांग्रेस की वापसी की संभावना देखती हैं और उससे घबराती हैं। बंगाल में अब लेफ्ट के लिए स्कोप नहीं है लेकिन कांग्रेस की वापसी हो सकती है। इसलिए उनको कांग्रेस विरोध जारी रखना है। दूसरा मकसद बैठक में जाकर अपना कई बार किया जा चुका नाटक करना था। कोरोना के समय से लगभग हर बार यह देखने को मिला है कि वे प्रधानमंत्री की बैठक में शामिल होती हैं तो इसी तरह से आरोप लगाती हैं कि उनको बोलने दिया गया, उनको समय कम दिया गया या उनका माइक बंद कर दिया गया। इस बार भी बिल्कुल यही कहानी उन्होंने दोहराई है।