कांग्रेस नेता राहुल गांधी की छवि एक सभ्य और सुसंस्कृत नेता की है। भाजपा नेताओं के अहंकारी और कम पढ़े-लिखे होने की जो छवि बनाई गई है उसके कंट्रास्ट में राहुल की एक छवि गढ़ी है, जो धीरे धीरे स्वीकार होने लगी है। लेकिन हर जब उनको गंभीरता से लिया जाने लगा है तो कोई न कोई ऐसा काम कर देते हैं, जिससे सवाल खड़े होने लगते हैं। जैसे संसद के बाहर उनको वीडियो बनाने की जरुरत नहीं थी। तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ की नकल उतार रहे थे तो राहुल को वहां नहीं होना चाहिए था। लेकिन वे न सिर्फ वहां थे, बल्कि वीडियो बना रहे थे। उसके बाद विपक्षी नेता इधर उधर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वीडियो लाकर बनर्जी की मिमिक्री को जस्टिफाई करने लगे। उन्हें सीधे शब्दों में माफी मांग कर मामला खत्म करना चाहिए था। या मिमिक्री को लेकर कही गई यह कहावत सुनानी थी कि ‘मिमिक्री इज द बेस्ट फॉर्म ऑफ फ्लैटरी’ यानी चापलूसी का सबसे अच्छा तरीका नकल उतारना होता है।
बहरहाल, इसके बाद विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने सांसदों के निलंबन के खिलाफ जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया तो राहुल गांधी ने अपने भाषण में एक नई बात कही। उन्होंने भाजपा के सांसदों का मजाक उड़ाते हुए कहा दो युवा संसद में कूदे और धुआं उड़ाया तो उन सबकी हवा निकल गई, जो अपने को देशभक्त कहते थे। सोचें, इस एक लाइन के बयान में तीन गलत बातें हैं। इससे ऐसा लग रहा है जैसे युवाओं का संसद में कूदना कोई बड़ी बात नहीं है। दूसरा, ‘हवा निकल गई’, क्या भाषा है? और तीसरा देशभक्ति का क्या पैमाना सेट किया राहुल ने? इस लिहाज से तो औजल और बेनिवाल सबसे बड़े देशभक्त हैं या जिन सांसदों ने युवाओं को पीटा उनकी देशभक्ति अपने आप प्रमाणित हो गई? भाजपा पहले ही आरोप लगा रही है कि संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने वालों का विपक्ष सपोर्ट कर रहा है। उनकी बात से इन आरोपों को और बल मिलेगा।