भारत में पिछले 10 साल में एक ऐसा वर्ग खड़ा हुआ है, जो नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी के हर फैसले और हर बयान को मास्टरस्ट्रोक कहता है। प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा की तो सब इतने बड़े जीव विज्ञानी बन गए कि 21 दिन में कोरोना का साइकिल टूट जाने के सिद्धांत का आविष्कार कर दिया। प्रधानमंत्री ने ताली, थाली बजाने को कहें तो सब खगोल विज्ञानी बन गए और उसमें वैज्ञानिक कारण खोज कर बताया कैसे ताली और थाली बजाना कॉस्मॉस को प्रभावित करता है, जिससे कोरोना भाग जाएगा। अजित पवार को जेल भेजने की बात कहना भी उसके लिए मास्टरस्ट्रोक है और फिर अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बना देना भी मास्टरस्ट्रोक है। उस वर्ग ने कहना शुरू कर दिया है कि अमेरिका द्वारा एच 1बी वीजा की फीस बढ़ाया जाना भारत के लिए कितना फायदेमंद साबित होगा।
इससे पहले जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के ऊपर 25 फीसदी जैसे को तैसा टैरिफ लगाया तो 2014 को मिली आजादी के बाद उभरे इस वर्ग ने इसकी तुलना बांग्लादेश से करते हुए कहा कि उस पर ज्यादा टैरिफ है तो अब बांग्लादेश का पूरा बाजार भारत को मिल जाएगा। लेकिन इसके बाद ट्रंप ने रूस से कारोबार करने के नाम पर भारत के ऊपर 25 फीसदी का अतिरिक्त टैरिफ लगाया तो इस वर्ग ने कहना शुरू किया कि यह भारत के लिए अत्यंत फायदे की बात है। उनका तर्क था कि इससे भारत में उद्योग लगाने की संभावना बढ़ जाएगी। भारत में छोटे उद्यमी पैदा होंगे और भारत के बाजार के लिए उत्पाद बनाएंगे। भारत में फिर से विनिर्माण की गाड़ी चल निकलेगी और उसी बहाने प्रधानमंत्री ने भारत के हर मर्ज की दवा आत्मनिर्भरता को बताना शुरू कर दिया है। फिर जब ट्रंप ने प्रधानमंत्री को जन्मदिन की बधाई दी और अमेरिकी व्यापार टीम की वार्ता हुई तो इस वर्ग ने कहा कि सब ठीक हो गया और अब फिर अमेरिका से कारोबार पटरी पर आ जाएगा।
इसी बीच राष्ट्रपति ट्रंप ने सबसे बड़ा झटका दिया। उन्होंने टैरिफ के बाद वीजा वॉर छेड़ दिया। ट्रंप ने एच 1बी वीजा पर लगने वाले शुल्क में भारी बढ़ोतरी कर दी। जिस वीजा का सालाना शुल्क पहले एक से छह लाख रुपए तक था उसे बढ़ा कर 88 लाख रुपए कर दिया। इसका सबसे ज्यादा नुकसान भारत के पेशेवरों को होगा। भारत के करीब सात लाख पेशेवर इससे प्रभावित होंगे। उनमें से ज्यादातर की नौकरियां चली जाएंगी क्योंकि मिड लेवल में या एंट्री लेवल पर काम करते हैं। वे बहुत ज्यादा तकनीकी दक्षता वाले पेशेवर नहीं हैं कि कंपनियां उनको रखने के लिए इतनी महंगी वीजा फीस भरेंगी। थोड़े से ऐसे पेशेवर, जो बहुत उच्च दक्षता वाले हैं और कंपनियों में शीर्ष स्तर पर काम करते हैं और जिनका वेतन एक मिलियन डॉलर यानी 8.8 करोड़ रुपए तक हो उनके लिए कंपनियां 10 फीसदी यानी 88 लाख वीजा शुल्क भर सकती हैं।
ध्यान रहे अभी एच 1बी वीजा वाले पेशेवरों का औसत वेतन 66 लाख रुपए है तो उनके लिए कंपनियां अधिकतम छह लाख रुपए तक वीजा फीस भरती हैँ। तभी भारत के पेशेवरों को बड़ा झटका लगा है और भारत को भी वहां से आने वाले पैसे का नुकसान होगा। लेकिन 2014 में आजाद हुए वर्ग ने कहना शुरू कर दिया है कि इससे भारत के पेशेवर अमेरिका की नौकरी छोड़ कर लौटेंगे, जिससे अमेरिका बरबाद हो जाएगा और ये सारे पेशेवर मिल कर भारत को अमेरिका बना देंगे।