विपक्षी पार्टियों खास कर तृणमूल कांग्रेस की ओर से उठाया गया डुप्लीकेट वोटर आईडी कार्ड का मसला चुनाव आयोग ने सुलझा दिया है। उसने देश के सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अपने यहां डाटाबेस चेक करें और डुप्लीकेट वोटर आईकार्ड की पहचान करें।
गौरतलब है कि देश में कुल साढ़े 10 लाख के करीब बूथ हैं, जिनमें से औसतन चार बूथ पर एक डुप्लीकेट वोटर आईडी बरामद हुई। इस आधार पर चुनाव आयोग ने दो लाख 70 हजार लोगों को नया पहचान पत्र जारी कर दिया है। अब आयोग का दावा है कि कोई भी डुप्लीकेट वोटर आईडी कार्ड नहीं है। हालांकि साथ ही आयोग ने यह भी कहा कि जो भी डुप्लीकेट आईडी थी, वह भी वास्तविक मतदाताओं के पास ही थी और वे अपने क्षेत्र के बाहर जाकर वोट नहीं डाल सकते थे।
डुप्लीकेट वोटर आईडी पर आयोग की कार्रवाई
बहरहाल, अब इसके आगे क्या? क्या विपक्षी पार्टियों की ओर से उठाए गए दूसरे जो मुद्दे हैं उनको सुलझाने के लिए इसी तरह की कार्रवाई चुनाव आयोग करेगा? असल में विपक्षी पार्टियां खुद ही अपने उठाए मुद्दों को लेकर गंभीर नहीं हैं। वे चुनाव हारने के बाद एक मुद्दा उठाते हैं और दूसरा मुद्दा आते ही उसे भूल जाते हैं। तृणमूल कांग्रेस ने सबूत के साथ शिकायत की तो आयोग को सुनवाई करनी पड़ी।
इसी तरह कांग्रेस के पास अगर सबूत है कि महाराष्ट्र में बालिग आबादी के मुकाबले मतदाताओं की संख्या ज्यादा है या विधानसभा चुनाव में पांच महीने में औसत से बहुत ज्यादा मतदाता जुड़े या आखिरी दो घंटे में औसत से बहुत ज्यादा मतदान हुआ तो उन्हें भी सबूत के साथ चुनाव आयोग पर दबाव डालना चाहिए ताकि उसे ठीक किया जा सके। मतदाता सूची में नाम जोड़ने और हटाने की शिकायत पर भी कार्रवाई के लिए दबाव डालना चाहिए।
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