एक बार फिर समान नागरिक संहिता की चर्चा थम गई है। पिछले महीने ऐसी खबर आई थी कि उत्तराखंड सरकार की ओर से बनाई गई जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई कमेटी की रिपोर्ट बस आने ही वाली है और राज्य सरकार उसके बाद इसे कानून का रूप दे देगी। यहां तक बताया गया था कि दिसंबर के अंत में या जनवरी के पहले हफ्ते में जस्टिस देसाई की रिपोर्ट आ जाएगी और उसके तुरंत बाद राज्य सरकार विधानसभा का एक विशेष सत्र बुला कर उसमें इस रिपोर्ट को बिल के तौर पर पेश करेगी। इसके साथ ही उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा, जहां समान नागरिक कानून लागू होगा। लगभग सभी अखबारों में छपी रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्तराखंड सरकार के कानून को ही आधार बना कर भारत सरकार भी समान नागरिक कानून लागू करेगी और इसके साथ ही अयोध्या, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता पर तीनों पर दशकों पहले किया गया वादा पूरा हो जाएगा।
इससे पहले जून में ऐसी ही चर्चा हुई थी, जब जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने कहा था कि उनकी कमेटी की रिपोर्ट तैयार है और वे जल्दी ही इसे राज्य सरकार को सौंपेगी। उसी के आसपास विधि आयोग ने भी इसकी पहल शुरू की थी और लोगों से राय आमंत्रित की थी। उसे एक करोड़ लोगों की राय मिली है। विधि आयोग के सदस्यों की मुलाकात जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई कमेटी के सदस्यों से हुई थी। अब स्थिति यह है कि न तो विधि आयोग की सिफारिशों का पता है और न जस्टिस देसाई कमेटी की रिपोर्ट का पता है। रिपोर्ट नहीं आई है तो विशेष सत्र भी नहीं हुआ और यथास्थिति कायम है। सवाल है कि क्यों हर छह महीने पर यह मुद्दा उठाया जाता है और फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है? ऐसा लग रहा है कि भाजपा इस मुद्दे को किसी और समय के लिए बचा रही है। वह अभी नहीं चाहती है कि अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बड़े आयोजन से ध्यान भटके।