मणिपुर में क्या होगा किसी को समझ में नहीं आ रहा है। राष्ट्रपति शासन लगे हुए छह महीने से ज्यादा हो गए हैं। मोटे तौर पर शांति बहाल हो गई है। प्रधानमंत्री की यात्रा भी हुई, जिसके बाद छिटपुट हिंसा को छोड़ कर कोई बड़ी वारदात नहीं हुई है। फिर भी सरकार नहीं बन पा रही है। कहा जा रहा था कि जल्दी ही सरकार बन जाएगी और उसके बाद मणिपुर के राज्यपाल, पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला वापस लौटेंगे और दिल्ली के उप राज्यपाल बनेंगे। लेकिन मणिपुर में सरकार नहीं बनी। कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को किनारे करने की कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है। मैती समुदाय के विधाय़क उनके साथ हैं।
पिछले दिनों मणिपुर विधानसभा के स्पीकर टी सत्यब्रत सिंह दिल्ली आए। भाजपा के कुछ और विधायक भी उसी समय दिल्ली पहुंचे थे। सब चाहते हैं कि सरकार बने। क्योंकि अगले चुनाव में अब डेढ़ साल का समय बचा है। अगर लोकप्रिय सरकार बनानी है तो उसे काम करने के लिए कुछ समय भी देना होगा। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को लग रहा है नया मुख्यमंत्री मैती समुदाय से बाहर के किसी व्यक्ति को बना नहीं सकते हैं और मैती मुख्यमंत्री बनने के बाद हिंसा फिर से भड़क सकती है। तभी यह सुझाव भी दिया जा रहा है कि विधानसभा को भंग कर दिया जाए और अगले साल अप्रैल में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव के साथ मणिपुर का भी चुनाव करा लिया जाए। अगले साल अप्रैल में असम का भी चुनाव है। भाजपा के कई नेता मान रहे हैं कि चुनाव नतीजों के बाद मैती मुख्यमंत्री बनाने में कोई समस्या नहीं होगी। लेकिन भाजपा को इसमें यह चिंता दिख रही है कि जिस तरह से लोकसभा चुनाव में वह दोनों सीट हार गई वैसे ही विधानसभा का चुनाव न हार जाएं। इसलिए यथास्थिति बनाए रखा गया है।