बिहार की सारण लोकसभा सीट से सांसद राजीव प्रताप रूड़ी अब राजपूतों के संभवतः सबसे बड़े नेता हो गए हैं और उनका असर पूरे देश में फैल गया है। वे खुल कर राजपूतों और सवर्णों की बात कर रहे हैं। बिहार में तो उन्होंने बहुत स्पष्ट शब्दों में 10 फीसदी अगड़ों की राजनीति करने का ऐलान किया। तभी यह चर्चा सोशल मीडिया में शुरू हो गई है एक रणनीति के तहत कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में रूड़ी के खिलाफ भाजपा के एक पूर्व सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को उतारा गया और रूड़ी को इतना बड़ा बनाया गया। अब जबकि उनका कद बहुत बड़ा हो गया है तो वे भाजपा के ज्यादा काम आएंगे। अब उनको कहीं अच्छी जगह देकर भाजपा राजपूतों की नाराजगी दूर कर सकती है।
हालांकि, यह भी हो सकता है कि यह थ्योरी इसलिए प्रचारित कराई जा रही हो ताकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व खास कर अमित शाह के कांस्टीट्यूशन क्लब चुनाव में रूड़ी के हाथों हार जाने का मैसेज समाप्त किया जा सके। यह मैसेज बनवाया जाए कि जो हुआ वह भाजपा नेतृत्व की मर्जी और उसकी रणनीति से हुआ। बहरहाल, जो हो अभी स्थिति यह है कि रूड़ी राजपूत गर्व का प्रतीक बने हैं। वे जहां जा रहे हैं वहां बड़ी संख्या में राजपूत समाज के नौजवान इकट्ठा हो रहे हैं और ‘जय सांगा’ के नारे लगा रहे हैं। अगर भाजपा ठीक से हैंडल करे तो रूड़ी की इस नई पहचान का फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकती है। बिहार चुनाव में भी उनका इस्तेमाल हो सकता है।