महिला आरक्षण को लेकर देश की लगभग सारी पार्टियां पाखंड कर रही हैं। सबसे बड़ा पाखंड भाजपा का है, जिसने नारी शक्ति वंदन नाम से महिला आरक्षण बिल पास कराया है लेकिन न तो पार्टी के संगठन में महिलाओं को कोई खास जिम्मेदारी देती है और न चुनाव में 10-15 फीसदी से ज्यादा टिकट महिलाओं को देती है। कांग्रेस भी दशकों से यह पाखंड कर रही है कि वह महिला आरक्षण के पक्ष में है। सोनिया गांधी के 20 साल तक अध्यक्ष रहने के बावजूद कांग्रेस न तो संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा सकी और न राज्यों की विधानसभाओं में कांग्रेस की महिला विधायकों की संख्या बढ़ी। इस देश में दो ही पार्टियां हैं, जिन्होंने बिना महिला आरक्षण के महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। एक नवीन पटनायक की बीजू जनता दल है और दूसरी पार्टी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस है।
ममता बनर्जी ने नवीन पटनायक से भी आगे बढ़ कर संसद के दोनों सदनों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि संसद के दोनों सदनों में तृणमूल के सांसदों की संख्या 40 फीसदी हो। ध्यान रहे महिला आरक्षण विधेयक में 33 फीसदी प्रतिनिधित्व की बात कही गई है। ममता बनर्जी ने इस साल राज्यसभा के दोवार्षिक चुनावों के लिए राज्यसभा के चार उम्मीदवारों की घोषणा की है, जिनमें तीन महिलाएं हैं। ममता बनर्जी ने इस बार सुष्मिता देब, सागरिक घोष और ममता बाला ठाकुर को टिकट दिया है। इसक बाद राज्यसभा में तृणमूल की महिला सांसदों की संख्या पांच हो जाएगी। उच्च सदन में उसके 13 में पांच महिला सांसद होंगी। इसी तरह लोकसभा में भी पिछले चुनाव में ममता बनर्जी ने 40 फीसदी से ज्यादा टिकट महिलाओं को दी थी और तभी नतीजा बहुत अच्छा नहीं होने के बावजूद लोकसभा में तृणमूल की 23 सांसदों में महिलाओं की संख्या 41 फीसदी है।