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दिल्ली विधानसभा के ऊपर खतरा!

दिल्ली विधानसभा के ऊपर खतरा मंडरा रहा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिस तरह से दिल्ली की विधानसभा का इस्तेमाल कर रहे हैं वैसा किसी ने सोचा भी नहीं होगा। उनको जब भी प्रधानमंत्री के ऊपर हमला करना होता है या कोई ऐसी बात कहनी होती है, जिसके लिए मानहानि आदि का मुकदमा हो सकता है तो वे विधानसभा का विशेष सत्र बुला लेते हैं। फिर विधानसभा के अंदर विशेषाधिकार के दायरे में वे प्रधानमंत्री के ऊपर हमला करते हैं। उनके बारे में कुछ भी कहते हैं। विधानसभा में उनकी पार्टी का प्रचंड बहुमत है और स्पीकर उनका है तो वे जो कुछ भी कहते हैं वह कार्यवाही में भी दर्ज होता है और मीडिया में भी खबर बनती है लेकिन उसे लेकर उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है।

विधानसभा का सत्र बलाने के लिए उप राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत होती है लेकिन केजरीवाल ने उसका भी रास्ता निकाल लिया है। कोई भी सत्र जब अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होता है तो उसके बाद स्पीकर की ओर से उसका सत्रावसान करना होता है तभी जरूरत पड़ने पर नया सत्र बुलाया जाता है। लेकिन दिल्ली में सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के बाद लंबे समय तक उसका सत्रावसान नहीं किया जाता है। अगर सत्रावसान नहीं होगा तो स्पीकर किसी भी समय फिर से विधानसभा की बैठक बुला सकता है। दिल्ली का बजट सत्र समाप्त हो चुका है लेकिन अभी तक सत्रावसान नहीं हुआ है इसलिए स्पीकर ने विशेष बैठक बुला ली और उसमें केजरीवाल ने जम कर मोदी पर हमला किया।

तभी यह आशंका जताई जा रही है कि कहीं दिल्ली विधानसभा भंग न कर दी जाए। ध्यान रहे 1993 में दिल्ली विधानसभा बहाल हुई थी और पहला चुनाव भाजपा ने जीता था। पहले पांच साल में भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री बदले और उसके बाद यानी 1998 से लेकर अभी तक एक बार नहीं जीत पाई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद भी केजरीवाल ने दो बार भाजपा को बुरी तरह हराया। इसके अलावा देश की राजधानी में आए दिन राज्य और केंद्र सरकार के बीच टकराव होता रहता है। केंद्र सरकार पहले ही कानून बना कर  कह चुकी है कि उप राज्यपाल ही सरकार है। इसलिए विधानसभा नहीं भी रहे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

By NI Political Desk

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