पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने अचानक रवैया बदल दिया है। अब वे विपक्षी गठबंधन की बात नहीं कर रही हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल की 42 में से 40 सीट जीतने का लक्ष्य तय किया है और अकेले लड़ने की तैयारी कर रही हैं। कांग्रेस और लेफ्ट मोर्चे के लिए यह अच्छी खबर नहीं है।
दोनों पार्टियां उम्मीद कर रही थीं कि पूर्वोत्तर के राज्यों में ममता को जो झटका लगा है उससे सबक लेकर वे गठबंधन के लिए आगे आएंगी और तब कांग्रेस व सीपीएम कुछ सीटें लेकर गठबंधन कर सकते हैं। लेकिन ममता बनर्जी ने रवैया बदल दिया है।
संसद में भी विपक्ष की साझा रणनीति में उनकी पार्टी शामिल नहीं है। संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण के पहले दिन सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 16 विपक्षी पार्टियों के साथ संसद परिसर से विजय चौक तक मार्च किया। तृणमूल कांग्रेस उसमें शामिल नहीं हुई। राहुल गांधी के दिए बयान को लेकर भाजपा ने जिस तरह से संसद ठप्प किया है उस पर भी तृणमूल ने बाकी विपक्षी पार्टियों की तरह का रुख नहीं लिया है। वह राहुल गांधी का जिक्र नहीं कर रही है।
ममता की यह रणनीति पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट से दूरी दिखाने की है। कहा जा रहा है कि रणनीति के तहत वे नहीं चाहती हैं कि भाजपा और तृणमूल के बीच सीधा मुकाबला हो। कांग्रेस और लेफ्ट के रहने से तृणमूल विरोधी वोट का कुछ हिस्सा उनके साथ भी जा सकता है। इसलिए भी लोकसभा चुनाव में तालमेल करने से बचना चाह रही हैं।