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सिर्फ कहने से कांग्रेस को कमान नहीं मिलेगी

कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बार बार कह रहे हैं कि कांग्रेस के बगैर कोई तीसरा मोर्चा नहीं बन सकता है। रमेश ने तो यहां तक का तीसरे मोर्चे में कोई दम नहीं है। ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की मुलाकात पर तंज करते हुए कहा कि लोग मिलते रहते हैं लेकिन कांग्रेस के बगैर विपक्ष का कोई मोर्चा संभव ही नहीं है। यह सही है कि कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है और इसलिए विपक्षी मोर्चे में उसका होना जरूरी है। लेकिन उस मोर्चे की कमान कांग्रेस को मिले, इसके लिए सिर्फ कहना पर्याप्त नहीं होगा।

कांग्रेस को अपनी ताकत दिखानी होगी तभी प्रादेशिक पार्टियां उसकी कमान स्वीकार करेंगी। कांग्रेस अगर इस साल होने वाले राज्यों के चुनाव में जीतती है तो अपने आप उसकी स्वीकार्यता बनेगी। अभी दो महीने में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हैं। अगर कांग्रेस उसमें जीतती है तो उसे कहना नहीं होगा कि वह विपक्षी एकता का केंद्र बनेगी। तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव नतीजों से विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस की जगह तय होगी। अगर कांग्रेस नहीं जीत पाती है विपक्षी पार्टियां उसे गठबंधन से अलग भी कर सकती हैं। अगर इसके बावजूद उसको गठबंधन में जगह मिलती है तो वह जगह किसी अन्य क्षेत्रीय पार्टी की तरह होगी। कांग्रेस को ध्यान रखना होगा कि अगर इस साल के चुनावों में उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड जैसे राज्य में भी वह प्रादेशिक पार्टियों के रहमोकरम पर ही रहेगी। ध्यान रहे अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और के चंद्रशेखर राव मिल कर मोर्चा बना रहे हैं।

By NI Political Desk

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