संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में इस बात को लेकर बहुत चर्चा हो रही है कि राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त हो सकती है। भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने कहा है कि जिस तरह से पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में एक विशेष कमेटी बना कर जांच कराई गई थी और 11 सांसदों की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी उसी तरह राहुल गांधी के विदेश जाकर देश का अपमान करने वाली घटना की विशेष कमेटी से जांच कराई जानी चाहिए। लेकिन सरकार को पता है कि राहुल गांधी ने विदेश जाकर कोई ऐसा बात नहीं कही है, जो देश के लिए अपमानजनक हो और उस पर कार्रवाई का कोई आधार बनता हो।
इसलिए पोजिशनिंग भले जो की जाए, उनकी सदस्यता छीनने का काम नहीं होगा। अगर उन्होंने कोई ऐसी बात कही होती तो अब तक उनके ऊपर आपराधिक मामला दर्ज होता। ध्यान रहे लंदन में भी राहुल गांधी सांसद तो थे लेकिन वहां कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। संसद से बाहर कही गई किसी बात के लिए उन पर आपराधिक मुकदमा हो सकता है, जो नहीं हुआ है।
उनकी सदस्यता नहीं छीनने का दूसरा कारण राजनीतिक है। इससे पहले दो मौके ऐसे रहे हैं, जब लोकसभा के आम चुनाव से पहले उपचुनाव हुआ और उससे सत्ता विरोध की हवा बनी। शरद यादव 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट पर उपचुनाव में जीते थे और उसके बाद ही तब की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी की सत्ता की उलटी गिनती शुरू हुई थी।
इसी तरह 1987 में उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद का उपचुनाव हुआ था, जिसमें वीपी सिंह जीते थे और उसके बाद भारत के इतिहास की सबसे बड़े बहुमत वाली सरकार की उलटी गिनती शुरू हुई थी। इस इतिहास को भाजपा नेता जानते हैं। इसलिए वे राहुल की सदस्यता समाप्त कर उन्हें कहीं से उपचुनाव लड़ने का मौका नहीं देंगे। उनकी सदस्यता तभी खत्म हो सकती है, जब उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग रही हो।