congress political crisis

  • छत्तीसगढ़ के रास्ते पर कर्नाटक का मामला

    कांग्रेस पार्टी के साथ हाल के दिनों में एक समस्या यह हो गई है कि वहां जिसको सत्ता मिल जा रही है वही आलाकमान हो जा रहा है। पिछले एक दशक में यह कई राज्यों में देखने को मिला है। ताजा मामला कर्नाटक का है। वहां के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया आलाकमान की तरह बरताव कर रहे हैं। वे खुद ही ऐलान कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद पर कोई वैकेंसी नहीं है और वे पूरे पांच साल तक पद पर बने रहेंगे। प्रादेशिक पार्टियों के सुप्रीमो जब मुख्यमंत्री बनते हैं तब वे तो ऐसा दावा कर सकते हैं लेकिन कांग्रेस और...

  • गुजरात में कांग्रेस को महिलाएं नहीं मिल रहीं

    देश की तमाम पार्टियों में से कांग्रेस इकलौती पार्टी है, जो महिला आरक्षण को लेकर सबसे ज्यादा मुखर रही है। जुबानी जमाखर्च करने में कांग्रेस सबसे आगे रही है। हालांकि केंद्र में 2004 से 2014 तक उसकी सरकार थी और उसने महिला आरक्षण पास कराने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। उस समय की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा महिला आरक्षण के पक्ष में थी लेकिन कांग्रेस ने इसे पास नहीं कराया। सोचें, उसने भाजपा और लेफ्ट सबके विरोध के बावजूद अमेरिका के साथ परमाणु संधि का बिल पास करा लिया लेकिन भाजपा और लेफ्ट के समर्थन के बावजूद महिला आरक्षण...

  • जब तक राहुल तब तक कांग्रेस संकट में

    लगता है कि राहुल अपनी पिछली गलतियों से सीखना नहीं चाहते। वे प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते-करते भारतीय सैन्य पराक्रम (ऑपरेशन सिंदूर सहित) के खिलाफ ऐसे शब्दों का प्रयोग करने लग गए है, जो पाकिस्तान को बहुत रास आते है और उन्हें पाकिस्तान अपने नैरेटिव के लिए उपयोग भी करता है। राहुल, मोदी सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों का सकारात्मक विकल्प भी प्रस्तुत नहीं कर पा रहे है। लगता है कि जबतक कांग्रेस राहुल गांधी के आभामंडल में रहेगी, उसका संकट ऐसे ही जारी रहेगा। ‘नाच न जाने, आंगन टेढ़ा’— यह कहावत शीर्ष कांग्रेसी नेता और लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष राहुल गांधी...

  • स्लीपर सेल पहचानने की राहुल की चुनौती

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दो महीने पहले गुजरात में कांग्रेस के अधिवेशन में कहा था कि प्रदेश कांग्रेस में कई नेता ऐसे हैं, जो भाजपा के लिए काम करते हैं। राहुल ने ऐसे 30-40 लोगों को पहचान कर उनको पार्टी से निकालने की बात कही थी। हालांकि अभी तक किसी को पहचाना नहीं गया है और न किसी को पार्टी से निकाला गया है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी की चुनौती बढ़ रही है। वे सिर्फ गुजरात की बात कर रहे थे लेकिन यहां चारों तरफ ऐसे लोगों की भरमार दिख रही है, जो कांग्रेस में...

  • कांग्रेस में बयानबाजी चलती रहेगी

    कांग्रेस पार्टी ने अपने नेताओं को पहलगाम हमले पर बयान देने से रोका है। कांग्रेस महासचिव और संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने सोमवार को अपनी पार्टी के नेताओं से जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर बयान नहीं देने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि जिन नेताओं ने बयान दिया है उनका कोई मतलब नहीं है। सोचें, कांग्रेस में क्या स्थिति है? जयराम रमेश कह रहे हैं कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बयान का कोई मतलब नहीं है! रमेश कह रहे हैं कि शशि थरूर के बयान का कोई मतलब नहीं है!...

  • ईडी की इस चार्जशीट पर कांग्रेस की परीक्षा !

    सवाल अब राहुल का है। मोदी ऐसे मामलों में फंसाकर राहुल को रोकना चाहते हैं। वही एक आदमी है जो बिना डरे 11 साल से लगातार मोदी से लड़ रहा है। दो दर्जन से ज्यादा मामले पहले से चल रहे हैं। एक बार लोकसभा सदस्यता भी छीन ली। अब ईडी लाए हैं। क्या राहुल रूक जाएंगे? राहुल डरने वाले नहीं! हां कांग्रेसियों की परीक्षा हो जाएगी। कौन कितना सड़क पर आकर संघर्ष करता है? नेशनल हेराल्ड मामले में एक पैसा भी इधर से उधर नहीं हुआ है मगर ईडी ने राहुल गांधी, सोनिया गांधी और अन्यों के खिलाफ कोर्ट में...

  • कांग्रेस क्षत्रपों की नई समस्या

    congress rahul gandhi : कांग्रेस पार्टी की समस्याएं खत्म नहीं हो रही हैं। कई राज्यों में चुनाव हारने के बाद अब कांग्रेस के सामने उत्तर से दक्षिण तक अपने क्षत्रपों को संभालने की समस्या खड़ी हो गई है। एक एक करके प्रादेशिक क्षत्रप बागी हो रहे हैं। ऐसे नेता, जिनको कांग्रेस ने पिछले 20 साल में खुद ही बड़ा किया। प्रदेशों में एक से ज्यादा क्षत्रप रखने की बजाय कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में हर राज्य में एक क्षत्रप को आगे बढ़ाने की रणनीति अपनाई। आज समस्या यह है कि वही क्षत्रप कांग्रेस के गले की हड्डी बने...

  • कांग्रेस आलाकमान की मुश्किल

    अगर आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल का जोर अपनी पार्टी के नेताओं पर नहीं चल रहा है तो कांग्रेस आलाकमान का जोर भी अपनी पार्टी के प्रादेशिक क्षत्रपों पर नहीं चल रहा है। छोटे मोटे या बिना आधार वाले नेताओं पर कांग्रेस आलाकमान का जोर चल जा रहा है लेकिन जिस नेता का भी थोड़ा बहुत आधार है वह बागी तेवर दिखाने लग जा रहा है। इससे आलाकमान की मजबूरी हो जा रही है उसके हिसाब से फैसला करने की। इसको दो राज्यों की राजनीति से समझा जा सकता है। एक राज्य है हरियाणा और दूसरा है कर्नाटक।...

  • कांग्रेस हरियाणा नहीं हारती तो 25 की शुरूआत अलग होती

    congress political crisis: अगर हरियाणा नहीं गंवाया होता तो महाराष्ट्र में भी सीन यह नहीं होता। और 2025 कांग्रेस बहुत उत्साह से शुरू करती। लेकिन उत्साह कहीं नहीं है। भाजपा जिसमें होना चाहिए वह अपनी नकारात्मकता से निकल ही नहीं पा रही। गुजर गए मनमोहन सिंह से घबरा गई। उनके खिलाफ व्हट्सएप मुहिम शुरू कर दी। गांधी नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह सब खराब हैं। और इनमें सबसे उपर राहुल। also read: नए साल पर बाबा श्याम का मनमोहक नजारा, सालासर धाम रात ढाई बजे खुला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल है। इस वर्ष वे बतौर प्रधानमंत्री 11 वर्ष पूररे...

  • नसीहत पर गौर करें

    मुमकिन है, इसके पीछे प्रमुख कारण अडानी के खिलाफ राहुल गांधी के लगातार हमले और उनकी कुछ दूसरी नीतियां रही हों। फिर भी वह वक्त अब निर्णायक मोड़ पर है, जब कांग्रेस को बन रहीं विपरीत परिस्थितियों पर गहन विचार-विमर्श करना चाहिए। इंडिया गठबंधन के अंदर कांग्रेस से अलगाव का रुझान और आगे बढ़ा है। अब नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि कांग्रेस गठबंधन का नेता बने रहना चाहती है, तो उसे यह स्थान मेहनत से कमाना पड़ेगा। अब्दुल्ला ने ईवीएम में हेरफेर को लेकर ‘रोने की प्रवृत्ति’ से कांग्रेस को बाहर आने की सलाह भी...

  • कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व पर कहां निर्भर?

    कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी की कार्य समिति की बैठक में कई अहम बातें कहीं। उन्होंने पार्टी नेताओं को आपसी झगड़े और खींचतान से ऊपर उठने की जरुरत बताई। लेकिन सबसे खास बात उन्होंने प्रदेश नेताओं से कही। खड़गे ने उनको फटकार लगाते हुए या एक तरह से नीचा दिखाते हुए कहा कि वे कब तक केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर रहेंगे। उनके कहने का शायद यह मतलब था कि प्रदेश कमेटियां अपने दम पर चुनाव नहीं लड़ पाती हैं और उनको राहुल गांधी के प्रचार पर निर्भर रहना होता है। लेकिन देश के ज्यादातर राज्यों में असली स्थिति इसके...

  • कांग्रेस कोई सबक नहीं सीखती

    एक तरफ देश की बदलती हुई राजनीति है तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी है, जो कुछ भी सीखने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। उसके नेता आज भी इस उम्मीद में हैं कि अंततः लोग भाजपा और नरेंद्र मोदी व अमित शाह से ऊब जाएंगे तो कांग्रेस को वोट करेंगे। इसके लिए कांग्रेस को सिर्फ इतना करना है कि प्रासंगिक बने रहना है। राजनीति करते रहनी है। सो, जीत हार से निरपेक्ष कांग्रेस के नेता राजनीति कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि मुख्य विपक्षी पार्टी बने रहेंगे तो देर सबेर सत्ता आ जाएगी। और इसके लिए जितनी...

  • कांग्रेस कोई लोक लिहाज नहीं दिखाती है

    कांग्रेस के ऊपर किसी प्रादेशिक पार्टी की तरह परिवारवाद करने का आरोप लगता है लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इसकी कोई परवाह नहीं करती है। इसके उलट वह ज्यादा खुल कर परिवारवाद करती है। एक तरह से उसने इस आलोचना का जवाब यह निकाला है कि पहले से ज्यादा परिवारवाद किया जाए तो अपने आप यह मुद्दा खत्म हो जाएगा। इसी सोच में वह परिवारवाद के आरोप में पलटवार करती है तो भाजपा पर भी परिवारवाद करने के आरोप लगाती है और उसके बाद कुछ और नए परिवारों के सदस्यों को राजनीति में आगे बढ़ा देती है। अगर इसी...

  • कांग्रेस (विपक्ष) के मूर्खों जमीन और भावनाओं की राजनीति करो!

    लोगों की नजर में नरेंद्र मोदी की कला उतरती हुई और राहुल गांधी की चढ़ती हुई है। बावजूद इसके हरियाणा में कांग्रेस हारी तो मूर्ख कांग्रेसी, जहां ईवीएम पर वही अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव आदि की पार्टियां कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ रही हैं! ये सभी इस बेवकूफी में जी रहे हैं कि भीड़ अपने आप वोट में कनवर्ट होती है। आप ने अब दिल्ली में अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है तो अखिलेश ने बेवकूफी में उपचुनावों के उम्मीदवारों की एकतरफा घोषणा की। और नोट रखें यूपी उपचुनावों में अखिलेश को झटका लगेगा। वही...

  • कांग्रेस मुख्यालय कितना बिकाऊ?

    यों भारत का राजनैतिक इतिहास हिंदुओं के बिकाऊ माल का सत्य लिए हुए है। फिर पिछले दस सालों से हिंदुओं के राष्ट्रवादी, चरित्रवादी मोदी-शाह ने नेताओं के खरीदफरोख्त की जैसी मंडी लगाई है तो कांग्रेस में भी वहीं होगा जो हिंदुओं में होता है। चाल, चेहरा, चरित्र अब क्या होता है! बहरहाल, मैंने हरियाणा की जानकारी में जब सुना कि हुड्डा ने अपने 72 उम्मीदवारों के टिकट कराए हैं तो खटका हुआ! भला ऐसा कैसे, यह गड़बड़ है। कांग्रेस के खांटी जानकारों से मालूम किया तो राहुल गांधी-मल्लिकार्जुन खड़गे की कांग्रेस में नई दुर्दशा मालूम हुई। कांग्रेस मुख्यालय अब नासमझ,...

  • रोना बिसूरना बंद करे कांग्रेस

    कांग्रेस कमाल की पार्टी हो गई है। चुनाव हारते ही वह इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम और चुनाव आयोग को कोसना शुरू कर देती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि ईवीएम को लेकर सवाल नहीं हैं या चुनाव आयोग की भूमिका पक्षपातपूर्ण नहीं है। चुनाव आयोग की तटस्थता और निष्पक्षता तो काफी पहले तिरोहित हो चुकी है। लेकिन हर बार कांग्रेस के चुनाव हारने का कारण यही नहीं होता है। कांग्रेस हर बार अलग अलग कारणों से हारती है, जिनमें से कुछ कांग्रेस की अपनी राजनीति से जुड़े होते हैं तो कुछ देश की राजनीति और समाज व्यवस्था में आ...

  • क्षत्रपों को काबू में कर पाएंगे राहुल?

    लोकसभा चुनाव, 2024 में कांग्रेस की बढ़ी ताकत का इस्तेमाल क्या राहुल गांधी पार्टी को मजबूत करने और स्वतंत्र व बेलगाम क्षत्रपों को काबू करने के लिए करेंगे? यह लाख टके का सवाल है। हकीकत यह है कि लोकसभा चुनाव, 2024 से पहले तक कांग्रेस के प्रादेशिक क्षत्रप लगभग मनमाना आचरण कर रहे थे। आलाकमान यानी सोनिया और राहुल गांधी के लिए उनको निर्देश देना असंभव सा काम था। क्षत्रप आलाकमान का नाम लेते थे और उनके प्रति सार्वजनिक रूप से सम्मान भी जाहिर करते थे लेकिन करते अपने मन की थे। अगर कभी कांग्रेस आलाकमान को उनके खिलाफ कोई...

  • कांग्रेस में गुटबाजी को कौन रूकवाएगा?

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव नतीजों से मजबूत होकर उभरे हैं। कांग्रेस के अंदर भी उनके नेतृत्व की स्वीकार्यता बढ़ी है। इसलिए वे नतीजों के तुरंत बाद पार्टी के अंदर की गुटबाजी रोकने के काम में लग गए हैं। एक एक करके उन्होंने उन सभी राज्यों के नेताओं से मुलाकात की है, जहां गुटबाजी चरम पर है। इसमें तीन चुनावी राज्य भी हैं। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड तीनों जगह खुल कर गुटबाजी हो रही है तो दूसरी ओर कर्नाटक में भी लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद तलवारें निकल गई हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अभी शांति है। ऐसा...

  • कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की चुनौती

    कांग्रेस कभी भी संगठन और कैडर आधारित पार्टी नहीं रही है। आजादी की लड़ाई के समय से यह एक ढीलाढाला वैचारिक संगठन है, जिसमें नेताओं को बांधे रखने वाली कुछ खास चीजें हैं। पहले महात्मा गांधी थे, फिर नेहरू हुए और उसके बाद नेहरू-गांधी परिवार हो गया। कांग्रेस को बांधे रखने वाली एक गोंद सत्ता यानी सरकार थी या सरकार बनाने की उम्मीदें थीं। कांग्रेस की एक महिला नेता ने कुछ समय पहले पाला बदल कर दूसरी पार्टी में जाने से पहले कहा था कि कांग्रेस या तो सत्ता में रहती है या सत्ता के इंतजार में। यह हकीकत है।...

  • कांग्रेस में प्रभारियों से सवाल नहीं पूछे जाते

    कांग्रेस पार्टी ने यह कमाल की सिस्टम बनाया है। वहां प्रभारियों से सवाल नहीं पूछे जाते हैं और न उन पर कोई कार्रवाई होती है। इसका कारण यह है कि पार्टी के आला नेताओं खास कर परिवार के सदस्यों के आसपास परिक्रमा करने वालों को ही प्रभारी बनाया जाता है। प्रभारी बनने के बाद वे मनमानी शुरू कर देते हैं और अगर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेता उसकी शिकायत करते हैं तो उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। कई बार तो ऐसा होता है कि प्रदेश का कोई नेता प्रभारी के खिलाफ शिकायती चिट्ठी राहुल गांधी को लिखे...

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