सवाल अब राहुल का है। मोदी ऐसे मामलों में फंसाकर राहुल को रोकना चाहते हैं। वही एक आदमी है जो बिना डरे 11 साल से लगातार मोदी से लड़ रहा है। दो दर्जन से ज्यादा मामले पहले से चल रहे हैं। एक बार लोकसभा सदस्यता भी छीन ली। अब ईडी लाए हैं। क्या राहुल रूक जाएंगे? राहुल डरने वाले नहीं! हां कांग्रेसियों की परीक्षा हो जाएगी। कौन कितना सड़क पर आकर संघर्ष करता है?
नेशनल हेराल्ड मामले में एक पैसा भी इधर से उधर नहीं हुआ है मगर ईडी ने राहुल गांधी, सोनिया गांधी और अन्यों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी है। मनी लान्ड्रिंग (धनशोधन) का आरोप। 2 जी में क्या हुआ था? उसमें भी एक पैसा भी इधर से उधर नहीं हुआ था। सरकार चली गई लेकिन 2 जी में कुछ साबित नहीं हो पाया। उस समय जब कपिल सिब्बल ने कहा था कि जीरो लास! बड़ी आलोचना हुई थी। मगर क्या हुआ? मोदी सरकार के समय ही फैसला आया कोई घोटाला नहीं। सारे आरोपी बाइज्जत बरी।
सीएजी विनोद राय ने कोर्ट में हलफनामा देकर बिना शर्त माफी मांगी। एक पूरी झूठी कहानी। मीडिया की मदद से भाजपा केजरीवाल अन्ना हजारे ने चलाई। नेशनल हेराल्ड केस में भी फैसला आएगा। मगर तब तक राहुल गांधी को परेशान किए जाने की कोशिश होगी। ईडी का खुद का रिकार्ड बताता है जो उसे एक सवाल के जवाब में राज्यसभा में पेश करना पड़ा था कि पिछले दस साल में उसने मनी लांड्रिंग के 193 केस दर्ज किए मगर सज़ा वह दो ही मामलों में करवा पाई।
केवल एक प्रतिशथ दोषसिद्धि!
समझ जाइए आप कि ईडी का किस तरह दुरुपयोग हो रहा है। 150 से ज्यादा विपक्षी नेताओं के यहां छापे पड़े हैं। मुख्यमंत्री सहित कितनी ही गिरफ्तारियां हुई हैं। खुद राहुल गांधी से 50 घंटे से ज्यादा पूछताछ हुई। सोनिया गांधी से भी। मगर निकला कुछ नहीं। क्यों? इसलिए कि इसमें कुछ है नहीं। 2 जी की तरह यह भी पूरी तरह खोखला है। इसे संक्षेप में समझिए।
1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक अख़बार शुरू किया। क्यों? यह क्यों बार-बार आएगा! अगर कांग्रेस इन सवालों के जवाब दे देती, कोई किताब निकाल देती छोटी छोटी बुकलेट ही तो इन सारे क्यों का जवाब मिल जाता। मगर कांग्रेस को खुद ही अपने इतिहास के बारे में नहीं मालूम। और न वह जानना चाहती है। वह तो जब इस तरह की मुसीबत पड़ जाती है तो उसे कुछ चीजें याद आती हैं।
अभी अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। देश भर से हजारों लोग आए। बड़ा पंडाल। मगर किताबों की एक छोटी सा स्टाल भी नहीं। अगर अपने इतिहास के बारे में नेशनल हेराल्ड के बारे में कि इसे नेहरू ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए निकाला था पर वहां किताबें, दूसरी प्रचार सामग्री होती तो अधिवेशन में आए एआईसीसी के मेम्बर ( प्रतिनिधी) उन्हें अपने शहर गांव ले जाते। खुद पढ़ते पचास और लोगों को पढ़वाते। अभी 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती थी। संसद भवन परिसर में लगी उनकी प्रतिमा पर बड़ी तादाद में लोग
आते हैं। बाहर पार्लियामेंट स्ट्रीट पर मेले जैसा माहौल होता है। और उसमें किताबों के स्टाल?
पढ़ाई लिखाई ही वह चीज थी जो कांग्रेस को दूसरी पार्टियों से अलग करती थी। दो सबसे बड़े नेता गांधी और नेहरू। दोनों ने कितना लिखा है। इनकी किताबें आज भी दुनिया की हर भाषा में अनुवाद होकर बड़ी तादाद में बिकती हैं। मगर कभी आप कांग्रेस मुख्यालय में इनकी कोई किताब लेने पहुंच जाएं तो मालूम होगा कि बरसों हो गए किताब बेचने का काउंटर और लायब्रेरी भी खतम कर दी।
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नेशनल हेराल्ड केस: राहुल गांधी पर ईडी के फिर सवाल
खैर! यह खैर भी कई बार आएगा। खैर, बहरहाल का मतलब, छोड़िए। इस कहानी को यहीं छोड़िए। यही करना पड़ता है। आजकल सुनना पढ़ना सबने बंद कर रखा है। मगर फिर भी लिखते हैं कि जनता तक तो आम लोगों तक तो कोई बात पहुंचे। तो जनाब नेशनल हेराल्ड नेहरू ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए निकाला था। देश के इंग्लिश अख़बार अंग्रेजों के साथ थे। दुनिया में आजादी के आन्दोलन की गलत तस्वीर पेश कर रहे थे। नेहरू ने दुनिया को सही जानकारी देने के लिए यह अख़बार निकाला। और खूब मजबूती से यह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा।
अंग्रेजी के बड़े संपादक चेलापति राव जैसे यहां रहे। नेहरू खुद लिखते थे। और आजादी के बाद कुछ विषयों को जनता विपक्ष के सामने लाने के लिए खुद को और कांग्रेस के नेताओं का आईना दिखाने के लिए पेन नेम ( उपनाम ) से लिखते थे। नेहरू जिसके लिए गुरुदेवरविन्द्र नाथ टेगोर ने वसंत का राजकुमार कहा था उसके खिलाफ उन दिनों जब कुछ छपता था लोग आश्चर्य करते थे कि यह किसने लिखा। चाणक्य लिखता था।
और यह चाणक्य कौन था? खुद नेहरू। छद्म नाम से अपने ही खिलाफ। यहां तो अब कहते हैं कि उनमें ईश्वर का अंश है। वे जैविक ( बायलोजिकल) नहीं हैं। जैसे पूरी दुनिया है। नान बायलोजिकल ( उपर से अवतरित) हैं। और वह नेहरू था जिसके पीछे आज तक पड़े रहते हैं। उसके उस अख़बार के भी जो उसी की तरह अंग्रेजों से लड़ा। लेकिन सच से लड़ना आसान नहीं है। छापे मारना, संपत्ति जप्त करना, पूछताछ कोर्ट में चार्जशीट पेश करना आसान है। जैसा इस बार अभिषेक सिंघवी ने कहा इस सारे मामले में एक पैसे का भी लेनदेन नहीं हुआ। और यह कोर्ट में साबित होगा उसी तरह जैसे 2 जी में हुआ कि कुछ भी गलत नहीं हुआ।
थोड़ा सा संक्षेप में। हुआ यह कि नेहरू ने अख़बार निकालने के लिए जो कंपनी बनाई थी एसोसिएटेड जनरल लिमिटेड ( एजेएल) बाद में यह घाटे में डूबती चली गई। थोड़ी यह बात भी। जरूरी है। कांग्रेसियों को बहुत बुरी लगेगी। मगर सच है और गलती, स्वभाव उनका है जो अभी भी जारी है। तीन अख़बार निकलते थे। अंग्रेजी में नेशनल हेराल्ड, हिन्दी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज। चलाने वाले सब कांग्रेसी। भारी स्टाफ भर्ती कर लिया। अखबारों के स्तर गिरता चला गया। और सबसे बड़ी बात जो अहमदाबाद अधिवेशन शुरू होने से पहले राहुल गांधी ने उसी शहर में कही थी कि कांग्रेस में आधे भाजपाई हैं तो उससे आगे बढ़कर कांग्रेस के इन अखबारों में आधे से भी ज्यादा संघी भर गए थे।
संघ भाजपा के अख़बार पांचजन्य, आर्गनाइजर में कोई प्रोफेशनल पत्रकार भी नहीं जा सकता है। केवल संघ के जांचे परखे लोग। और यहां कांग्रेस में हर स्तर पर संघी भरे पड़े हैं। खैर बात हो रही थी अखबारों की तो वहां कांग्रेस के लोगों की तो छोड़िए प्रोफेशनल भी नहीं संघ के लोग, भाजपा समर्थित उच्च पदों और उच्च वेतन पर होते हैं।
खैर! बिगड़ती हालत यहां तक पहुंची की कंपनी एजेएल पर 90 करोड़ का कर्जा हो गया। भाजपा के लोग पूछ रहे हैं और उनका सवाल सही है कि सरकार तो अधिकांश समय कांग्रेस की रही। तो इतना घाटा कैसे हो गया। थोड़ा जवाब मिला होगा। ओवर स्टाफ। थोड़ा और बता देते हैं कि जो पैसा आता था वह कंपनी के पास न आकर सीधा जेबों में चला जाता था। भाजपा के लिए आया पैसा पार्टी फंड में। कांग्रेस के लिए आया पैसा नेताओं की जेब में।
तो बात बहुत लंबी हो जाएगी। कहानी यह है कि करे कोई भरे कोई। कांग्रेस के नेता निकल लिए। और मुसीबत सोनिया राहुल पर आ गई। यह 90 करोड़ चुकाने के लिए इन्होंने एक नई कंपनी बनाई यंग इंडिया लिमिटेड। गैर लाभकारी। इसने कांग्रेस से लेकर 2008 में सारा कर्जा चुकाया। 67 करोड़ तो केवल कर्मचारियों पत्रकारों की तनखा और वीआरएस का पैसा दिया। यह अच्छा काम था। पत्रकारों और कर्मचारियों को उनका पूरा ड्यूज ( बकाया) देना। आजकल कोई अख़बार नहीं दे रहा है। तो इस सारे में राहुल सोनिया के नाम कोई एक पैसे की भी लेन देन नहीं है। कर्मचारी पत्रकारों को फायदा हुआ।
बहुत संक्षेप में यह कहानी है नेशनल हेराल्ड की। लिखी जाना तो इस पर एक किताब चाहिए। मगर कांग्रेस करेगी नहीं। किताबें तो बहुत लिखवाईं इसने। खुद छापीं। करोड़ों रुपया खर्च किया। मगर गोदामों में पड़ी सड़ रहीं हैं। किसी मतलब की नहीं हैं। वही संघ भाजपा समर्थक लेखक पत्रकारों को फायदा पहुंचाने के लिए बेमतलब के लोगों विषयों पर वह किताबें छापी हैं।
लेकिन सवाल अब राहुल का है। मोदी ऐसे मामलों में फंसाकर राहुल को रोकना चाहते हैं। वही एक आदमी है जो बिना डरे 11 साल से लगातार मोदी से लड़ रहा है। दो दर्जन से ज्यादा मामले पहले से चल रहे हैं। एक बार लोकसभा सदस्यता भी छीन ली। अब ईडी लाए हैं। क्या राहुल रूक जाएंगे? राहुल डरने वाले नहीं! हां कांग्रेसियों की परीक्षा हो जाएगी। कौन कितना सड़क पर आकर संघर्ष करता है।
Pic Credit: ANI