Freebies

  • नीतीश कुमार ने खजाना खोल दिया है

    बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे नहीं थे। वे मुफ्त में वस्तुएं और सेवाएं देने के खिलाफ थे। उन्होंने स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल और पोशाक देने की योजना शुरू कर की थी, जो कि एक लक्षित योजना थी और इसका बड़ा लाभ बहुत बड़े वर्ग को मिला था। लेकिन वे कभी भी मुफ्त बिजली, पानी या अनाज बांटने के पक्ष में नहीं रहे थे। उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाया था और उनको आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया था। अब नीतीश कुमार अपनी आखिरी राजनीतिक पारी खेल रहे हैं और इस बार वे उस रास्ते पर चल रहे हैं,...

  • पार्टियों से लेने का अवसर!

    delhi assembly election: जनता भी मान बैठी है की जो सत्तानीति आज चल रही है उसमें जिस भी दल से जो भी मिलता है, ले लेना चाहिए। क्योंकि पहले तो वह भी नहीं मिलता था। या तो वादे कागज पर ही रहे या फिर कुछ गिने-चुने को ही फायदा मिलता रहा। ऐसे सत्तातंत्र के लिए लोक की जिम्मेदारी व उत्तरदायित्व को भी नकारा जा रहा है। सभी स्वार्थहित को ही समाजहित मानने पर मजबूर हो गए हैं। also read: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महाकुंभ हादसे पर जताया दुख आज जब बनावटी बुद्धिमता पर सारा जोर है तो साधारण सामाजिक समझ का...

  • जनता के मुद्दों पर नहीं, रेवडियों पर चुनाव

    Delhi Election 2025: लोकतंत्र की अनेक परिभाषाओं में एक परिभाषा यह है कि, ‘इसमें जनता को अधिकतम भ्रम दिया जाता है और न्यूनतम अधिकार दिए जाते हैं’। आधुनिक समय में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से सरकारों के गठन में जनता को भ्रम देने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और अधिकार की छोड़िए, उसकी भागीदारी भी लगातार कम होती जा रही है। भागीदारी को सिर्फ मतदान प्रतिशत के नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। मतदान प्रतिशत तो अलग अलग कारणों से बढ़ रहा है लेकिन जनता की भागीदारी घटती जा रही है।(Delhi Election 2025) अब लोग स्वतःस्फूर्त तरीके से राजनीतिक गतिविधियों...

  • क्या न्यायपालिका मोदी सरकार से नाराज है…?

    Freebies:  हमारे संविधान ने भारतीय प्रजातंत्र के चारों अंगों को स्वतंत्रता पूर्वक अपने दायित्व निभाने की सीख दी है और ये चारों अंग पिछले पचहत्तर वर्षों से संविधान की भावना को मूर्तरूप देने का प्रयास भी करते है, किंतु इनके इस पुनीत कार्य में स्वार्थी सत्ता की राजनीति बहुत बड़ी बाधक बनी हुई है, जहां तक कार्यपालिका का सवाल है, उसे तो सत्ता व उसके संरक्षक राजनीतिक दल के इशारों पर चलना ही है, क्योंकि यह ‘जनतंत्र’ है, जनता द्वारा चुने गए राजनेताओं व राजनीतिक दलों के नेतृत्व में कार्यपालिका को काम करना ही है, किंतु आजादी के बाद पिछली...

  • सब कुछ मुफ्त, बम्पर घोषणाएं!

    freebies in elections: चुनाव जीतने के लिए मुफ्त में चीजें और सेवाएं बांटने की राजनीति की जड़ें और गहरी होती जा रही हैं। हर चुनाव के बाद पार्टियां कुछ नई चीज ला रही हैं। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के बाद हो रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने नई नई चीजें और नई नई सेवाएं मुफ्त में देने की घोषणा की है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली चुनाव के लिए पार्टी का घोषणापत्र जारी किया तो कहा गया कि यह पहला पार्ट है। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि...

  • झारखंड ने रेवड़ी के लिए रास्ता दिखाया

    झारखंड में दोबारा बनी हेमंत सोरेन की सरकार ने ‘मुफ्त की रेवड़ी’ के लिए धन के इंतजाम का नया रास्ता दिखाया है। देश के लगभग सारे राज्य, जिन्होंने महिलाओं, युवाओं, किसानों को नकदी बांटनी शुरू की है, वे सब रास्ते की तलाश में थे। कह सकते हैं कि हेमंत सोरेन ने सबको रास्ता दिखाया है। वह रास्ता ये है कि सबको दूसरी योजनाएं स्थगित करके मंत्रालयों से उनका पैसा सरेंडर कराना चाहिए और उससे नकदी बांटनी चाहिए। आखिर नकदी बांटना ही जीवन का सत्य है बाकी मोहमाया है। उनको पता चल गया है कि महिलाओं को नकद रुपए देंगे और...

  • क्या मुफ्त की चीजें जीत की गारंटी होती हैं?

    Freebies election: महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में दोनों मुख्य गठबंधन मतदाताओं को अनेक सेवाएं और वस्तुएं मुफ्त में देने के वादे पर चुनाव लड़े हैं। जो गठबंधन सरकार में है उसने चुनाव से पहले ही मुफ्त की वस्तुएं और सेवाएं देनी शुरू कर दी थीं और जो विपक्ष में है उसने सरकार से ज्यादा देने का वादा किया है। महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति यानी भाजपा, शिव सेना और एनसीपी को उम्मीद है कि ‘माझी लाड़की बहिन’ योजना के तहत महिलाओं को हर महीने डेढ़ हजार रुपए देने की योजना चुनाव जिताएगी तो इसी आधार पर झारखंड की जेएमएम, कांग्रेस...

  • भाषा से भी चुनाव में ठगा जाता है!

    भारत में चुनाव अब विकासवादी नीतियों या विचारधारा के ऊपर नहीं हो रहे हैं, बल्कि लोकलुभावन घोषणाओं और भाषण की जादूगरी पर हो रहे हैं। सारे विचार अब सिमट कर लोकलुभावन घोषणाओं या लच्छेदार लेकिन निरर्थक भाषणों में समाहित हो गए हैं। बड़े से बड़े नेता का करिश्मा भी इतना ही भर रह गया है कि वह कितनी बड़ी लोकलुभावन घोषणा कर सकता है। अगर लोकलुभावन घोषणाओं की केंद्रीयता से अलग कोई एक और चीज चुनाव को परिभाषित करने वाली है तो वह विभाजनकारी भाषण हैं। धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर विभाजन भी भारत में होने वाले चुनावों...

  • खून लेंगे, जूस पैक देंगे!

    महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में मुफ्त की रेवड़ियों की घोषणा देखें तो हैरानी होगी कि इन सरकारों के पास कितना पैसा है, जो इतने खुले दिल से बांट रही हैं! चुनाव से ठीक पहले झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना के तहत महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए देने का ऐलान किया। चुनाव से पहले पहली किश्त उनके खाते में डाल भी दी गई। तभी भाजपा ने गोगो दीदी योजना का ऐलान किया और कहा कि वह महिलाओं को हर महीने 21 सौ रुपए देगी। सोचें, होड़ लगा कर महिलाओं के खाते में पैसा...

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