unemployment

  • बेरोजगारी दर में कमी आई

    नई दिल्ली। जुलाई 2025 में भारत की बेरोजगारी दर में कमी आई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारी दर घट कर 5.2 फीसदी पर आ गई है। यह पिछले तीन महीनों में सबसे कम है। इससे पहले जून में बेरोजगारी दर 5.6 फीसदी थी। केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सोमवार को बेरोजगारी दर के आंकड़े जारी किए उसके मुताबिक शहरी क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्र में नए उद्योग जैसे आईटी, संचार, विनिर्माण और रिटेल सेक्टर ने रोजगार का ग्राफ ऊपर किया है। हालांकि गांव के मुकाबले शहरों में बेरोजगारी...

  • सरकारी आंकड़ों का सच

    समस्या रोजगार की सरकारी परिभाषा है। भारत में जो परिभाषा अपनाई गई है, वह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। इसलिए भारत में जो आंकड़ा दिया जाता है, उनकी तुलना अन्य देशों के आंकड़ों से नहीं की जा सकती। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने 50 ऐसे अर्थशास्त्रियों के बीच सर्वे किया, जो भारत सरकार से संबंधित किसी पद पर नहीं हैं। सर्वे में इन ‘स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों’ से भारत में बेरोजगारी की स्थिति को समझने का प्रयास किया गया। निष्कर्ष यह निकला कि भारत सरकार का बेरोजगारी संबंधी आंकड़ा सही नहीं है। बल्कि इन आंकड़ों के जरिए बेरोजगारी और अर्ध-रोजगार की गंभीर...

  • बेरोज़गारी का संकट विस्फोटक हो रहा

    आज हालात यह हैं कि जब किसी सरकारी पद के लिए भर्ती निकाली जाती है, तो चाहे वह चपरासी का पद हो या क्लर्क का, लाखों की संख्या में अत्यधिक योग्य युवा आवेदन देते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश और कई अन्य राज्यों में यह स्थिति आम हो चुकी है। यह दृश्य केवल ‘बेरोज़गारी’ नहीं, बल्कि एक सामाजिक विस्फोट का पूर्व संकेत है। मूलधारा का मीडिया इस संकट की अनदेखी करता रहा है, लेकिन सोशल मीडिया के कैमरों में इन युवाओं की हताशा बार-बार कैद होती है। हाल ही में उत्तर प्रदेश से एक ख़बर आई कि महज़ 2,000 सरकारी पदों...

  • लोकसभा में बेरोजगारी का मुद्दा उठा

    unemployment issue in loksabha :  कांग्रेस ने आज लोकसभा में कहा कि एक तरफ बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है और दूसरी तरफ देश से प्रतिभा का पलायन हो रहा है इस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। कांग्रेस के विजय कुमार बसंत ने शून्यकाल के दौरान लोकसभा में बेरोजगारी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि उन्नत प्रौद्योगिकी की वजह से लोगों की तेजी से नौकरियां कम हो रही है और उनके संसदीय क्षेत्र कन्याकुमारी में लाखों युवा बेरोजगार है। also read: 22 मार्च से IPL 2025 का आगाज, जानें ओपनिंग सेरेमनी में कौन मचाएगा धूम…. देश से प्रतिभा...

  • सब चलता है में सब जस का तस!

    Republic day 2025: समाज के मध्यम वर्ग को समाज के हित में सक्रिय होना होगा। मशाल लेकर खड़ा होना होगा। टीवी सीरियलों और उपभोक्तावाद के चंगुल से बाहर निकल कर अपने इर्द-गिर्द की बदहाली पर निगाह डालनी होगी। ताकि हमारा खून खौले और हम बेहतर बदलाव के निमित्त बन सके। विनाश के मूक दृष्टा नहीं। तब ही हम सही मायने में आजाद हो पायेंगे। हमने आज़ादी के नाम पर गोरे साहबों को धक्का देकर काले साहबों को बिठा दिया। पर काले साहब तो लूट के मामले में गोरों के भी बाप निकले। बीते कई दशकों से ऐसा देखने में आया...

  • गुलाबी तस्वीर का सच

    Unemployment poverty: आमदनी वाले आबादी के सर्वोच्च हिस्से के पास धन के संग्रहण और दूसरी ओर सबसे गरीब दस फीसदी आबादी के जारी संघर्ष का संदेश है कि नई नीतियों की जरूरत है। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सुरक्षा के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता है। also read: स्टालिन के काम आ रहे हैं राज्यपाल रवि पिछले हफ्ते जारी दो सरकारी रिपोर्टों में देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर बुनी गई। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में रोजगार की स्थिति बेहतर होने का दावा किया गया। स्पष्टतः ये दावा रोजगार की नई गढ़ी गई परिभाषा पर आधारित है, जिसमें घरेलू कारोबार में...

  • ऐसी शिक्षा किस काम की जिससे रोजगार नहीं!

    पिछले 25 वर्षों में सरकार की उदार नीति के कारण देशभर में तकनीकि शिक्षा व उच्च शिक्षा देने के लाखों संस्थान छोटे-छोटे कस्बों तक में कुकरमुत्ते की तरह उग आए है। जिनकी स्थापना करने वालों में या तो बिल्डर्स थे या भ्रष्ट राजनेता। जिन्होंने शिक्षा को व्यवसाय बनाकर अपने काले धन को इन संस्थानों की स्थापना में निवेश किया। डिग्रियां हासिल करवाई। नाकारा डिग्रियां से रोजगार का संकट बना। आए दिन देश में चपरासी की नौकरी के लिए लाखों ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट, बी.टेक व एमबीए जैसी डिग्री धारकों के आवेदन की खबरें अख़बारों में पढ़ने में मिलती है। ऐसी हृदय...

  • रोजगार की बहस और अहम सवाल

    बुनियादी बात यह है कि समस्या कुदरती कारणों से नहीं, बल्कि सरकारों के वर्गीय चरित्र एवं नजरिए के कारण है। अगर जनशक्ति उन्हें इसे बदलने के लिए मजबूर करे, तो यह स्पष्ट होगा कि मानव इच्छाशक्ति सबके लिए खुशहाली का सूत्र बन सकती है। इस क्रम में सबसे पहले सरकार ही समस्या है कि नव-उदारवादी सोच से उबरना होगा। सवाल है भारत में जो हालात हैं, उनके बीच रोजगार के अधिकतम अवसर पैदा करने की सबसे व्यावहारिक योजना क्या हो सकती है? क्या पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के भीतर सभी लोगों को रोजगार मुहैया कराना संभव है? आज भारत में जो हालात...

  • भारत ‘विकसित’ नहीं चौतरफा लड़खड़ा रहा है!

    नरेंद्र मोदी सरकार में इस विद्रूपता से भारत की इच्छाशक्ति और समझ का सिरे से अभाव है। बेरोजगारी और महंगाई जैसे प्रश्नों पर वह नव-उदारवादी फॉर्मूलों पर पुनर्विचार करने तक को तैयार नहीं है। चूंकि हाल के आम चुनाव में इन दोनों समस्याओं के कारण उसे गंभीर झटके लगे, इसलिए वह इस दिशा में कुछ करते तो दिखना चाहती है, लेकिन सचमुच कुछ करना नहीं चाहती! …महंगाई के सवाल पर तो उसने आत्म-समर्पण कर दिया है। बेरोजगारी का जो समाधान उसने पेश किया है, उसे दिखावटी से ज्यादा कुछ मानने का तर्क नहीं है। तो विचारणीय प्रश्न यह है कि...

  • अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई, महंगाई, बेरोजगारी बड़ी चुनौती : कांग्रेस

    नयी दिल्ली | कांग्रेस ने कहा है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को अपना सातवां बजट पेश करेंगी और इसको लेकर वह उद्योगपतियों, बैंकर्स, किसान संगठनों से बात कर चुकी है, लेकिन देश में सबसे बड़ी चुनौती बेरोजगारी, महंगाई और अमीर गरीब के बीच बढ़ती खाई है जिसे कम करने के लिए उनके इरादे स्पष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। अमीरी-गरीबी की खाई कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने शुक्रवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बड़ा संकट यह है कि देश की एक फीसदी आबादी के पास लगभग आधा संपत्ति है जिसके कारण गरीबी और...

  • गलत दवा से इलाज

    बेरोजगारी जिस हद तक बढ़ गई है, उसके मद्देनजर समझा जा सकता है कि सरकारों पर इस समस्या को हल करते हुए दिखने का भारी दबाव है। मगर दिखावटी कदमों से इस गंभीर समस्या का समाधान संभव नहीं है। कर्नाटक सरकार ने एक विधेयक को मंजूरी दी है, जिसके पारित होने पर राज्य के बाशिंदों के लिए प्रबंधकीय नौकरियों में 50 प्रतिशत और गैर-प्रबंधकीय नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा। बेरोजगारी जिस हद तक बढ़ गई है, उसके मद्देनजर समझा जा सकता है कि सरकारों पर इस समस्या को हल करते हुए दिखने का भारी दबाव है। मगर ऐसे...

  • हताशा का आलम

    जहां युवा बेरोजगारी असामान्य रूप से ऊंची हो और खाद्य मुद्रास्फीति लगातार आठ प्रतिशत से ऊपर हो, वहां कैसी जिंदगी की कल्पना की जा सकती है? अप्रैल के जारी ताजा आंकड़ों में भी खाद्य मुद्रास्फीति 8.7 प्रतिशत दर्ज हुई है। कुवैत में विदेशी मजदूरों के एक रहवास में हुए भयंकर अग्निकांड में मरे 49 लोगों में तकरीबन 40 भारतीय हैं। उधर रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में भाड़े के सैनिक के तौर पर गए दो और भारतीयों की मौत हो गई है। ये भारतीय उन 30 लोगों से अलग हैं, जिनके परिजनों ने भारत सरकार से संपर्क...

  • अब जाकर खुली आंख!

    यह अहसास तब हुआ, जब 2024 कॉरपोरेट्स की प्रिय पार्टी को तगड़ा झटका लगा और वह बहुमत से खासा दूर रह गई। तो अब उन्होंने सलाह दी है कि नई सरकार को रोजगार पैदा करने और महंगाई नियंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिए। सर्वोच्च कॉरपोरेट अधिकारियों की आंख जाकर खुली है। उन्हें अंदाजा हुआ है कि भारत में बेरोजगारी एक दुर्दशा का रूप ले चुकी है। दूसरे अर्थों में यह कहा जा सकता है कि अपने बढ़ते मुनाफे से मस्त कॉरपोरेट सेक्टर को अब महसूस हुआ है कि जीडीपी की जिस ऊंची वृद्धि दर को लेकर उनकी खुशफहमी आसमान में...

  • बेरोजगारों का यही अंजाम!

    जब बेरोजगारी की समस्या गंभीर हो रही हो, तो घोटालेबाजों के लिए अनुकूल स्थितियां सहज ही बन जाती हैं। वे विदेशों में आकर्षक करियर का वादा कर नौजवानों को फंसाते हैं। कंबोडिया गए नौजवानों के साथ भी यही हुआ। बीते सप्ताहांत भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कंबोडिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में नौकरी की तलाश में जा रहे भारतवासियों के लिए एडवाइजरी जारी की। इसके पहले खबर आई थी कि कंबोडिया से उन 250 भारतीयों को वापस लाया गया है, जो नौकरी के लालच में वहां जाकर घोर दुर्दशा में फंस गए थे। इसके साथ ही रोजगार के लिए...

  • मोदी मोदी नहीं क्योंकि नौकरी, नौकरी

    मेट्रो स्टेशन पर बाहर जितनी दुकानें बनाई थीं। बंद पड़ी हैं। कभी इतनीचलती थीं कि वहां ज्योतिषियों ने भी दुकान ले ली थी। मगर अब जूस की शेककी जो गर्मियों में सबसे ज्यादा चलती थीं वे भी बंद पड़ी हैं। हर दुकानपर दो तीन लड़कों को रोजगार मिलता था। मगर अब दुकान वाला खुद ही बेरोजगारहो गया है। यह मोटा आकलन है। बेरोजगारी, काम नहीं, जेब खाली। यही असल मसला है। ...महंगाई इसीलिए दूसरे नंबर पर है। जेब में पैसा ही नहीं है तो क्या महंगा क्या सस्ता। तीसरे चरण के मतदान के साथ ही आधी से ज्यादा सीटों पर...

  • समस्या से आंख मूंदना

    बेरोजगारी के मुद्दे को चुनाव में नजरअंदाज करना बहुत बड़ा जोखिम उठाना है। यह बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि देश चाहे जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए, लेकिन अगर करोड़ों युवा बेरोजगार बने रहते हैं, तो उससे भारत का कोई भला नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समाचार एजेंसी को एक घंटा 17 मिनट का लंबा वीडियो इंटरव्यू दिया। इसमें उन्होंने विभिन्न विषयों की चर्चा की। अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और अगले एजेंडे पर चर्चा की। फिर भी इस इंटरव्यू में कई जरूरी मसले नहीं आए। बेरोजगारी जैसी विकराल होती जा रही समस्या की भी इसमें अनदेखी...

  • महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार भी मुद्दा!

    अब यह सिर्फ राहुल गांधी या विपक्ष के नेता नहीं कह रहे हैं कि महंगाई और बेरोजगारी देश की सबसे बड़ी समस्या है। सीएसडीएस और लोकनीति के सर्वेक्षण में आम लोगों ने स्वीकार किया है कि वे महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से परेशान हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुए इस सर्वेक्षण में देश के 71 फीसदी लोगों ने माना है कि जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ी हैं और इससे परेशानी हो रही है। अगर इस आंकड़े की बारीकी में जाएं तो जो गरीब हैं उनमें से 76 फीसदी ने कहा है कि महंगाई परेशान कर रही है। मुसलमानों और...

  • एक गौरतलब चेतावनी

    आम चुनाव के दौर में अपेक्षा रहती है कि देश की वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अपना कार्यक्रम सामने रखेंगे। यह तो निर्विवाद है कि इस समय बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। लेकिन इसके समाधान पर सियासी दायरे में पूरी चुप्पी है। अब विश्व बैंक ने भारत को आगाह किया है। विषय वही है यानी रोजगार के अवसरों का अभाव- एक ऐसी सूरत जिसमें तेज आर्थिक वृद्धि दर के साथ-साथ उतनी ही तेजी से बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। विश्व बैंक ने दक्षिण एशिया के बारे में जारी अपने आकलन में भारत को चेतावनी दी...

  • चुनाव बेरोजगारी और महंगाई पर होगा

    राहुल ने राजनीतिक बात कही थी। मोदी जी उसे धार्मिक बना रहे हैं।वैसे ही जैसे कर्नाटक चुनाव मेंनरेंद्र मोदी ने बजरंग दल को बजरंग बली के रुप में पेश किया था।नारे लगाए। कहा जय बजरंग बली कहकर वोट डालने जाना। जनता ने जयबजरंग बली बोला और बीजेपी के खिलाफ वोट डाल आई।मोदीजी ने कर्नाटक चुनाव परिणामों सेकोई सबक नहीं लिया।..इस बार लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ मोदी जी ने राहुल के एक शब्द को पकडॉ शक्ति का पहला मुद्दा  बनाया। इसका मतलब क्या दस साल सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्रीमोदी के पास अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ नहीं...

  • विपक्ष क्या भ्रष्टाचार का मुद्दा बना पाएगा?

    भारत में आजादी के बाद से अब तक हुए सत्ता परिवर्तनों में कुछ बातें बहुत कॉमन रही हैं। ऐसा शायद कभी नहीं हुआ है, कम से कम राष्ट्रीय स्तर पर, कि देश के मतदाताओं ने सकारात्मक रूप से सत्ता परिवर्तन के लिए मतदान किया हो। अच्छे की उम्मीद में या ज्यादा विकास की उम्मीद में मतदान करके सत्ता परिवर्तन की मिसाल नहीं है। राज्यों के स्तर पर जरूर ऐसी कुछ मिसालें हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर संभवतः एक बार भी ऐसा नहीं हुआ। (Loksabha election 2024) यह भी पढ़ें: कांग्रेस को कमजोर बताना विपक्ष के लिए भी घातक लगभग हर...

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