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मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -
  • इन नतीजों के अच्छे अर्थ!

    विधानसभा चुनाव 2023 कई कारणों से याद रहेगा। पहली बात कांग्रेस पागल होने से बच गई। पिछले सप्ताह मैंने लिखा था कि यदि कांग्रेस उम्मीद अनुसार जीती तो कहीं पागल न हो जाए। कल्पना करें तेलंगाना के साथ छतीसगढ़, मध्य प्रदेश में कांग्रेस जीत जाती तो क्या कांग्रेसियों का अहंकार नहीं बढ़ता? राहुल गांधी इसका श्रेय क्या अपने ओबीसी राग को नहीं देते?  तब जातीय जनगणना, ओबीसी राजनीति को पंख लगते। कांग्रेस के नेता इंडिया गठबंधन की बाकी पार्टियों को कुछ नहीं समझते। लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं में दस तरह के मनमुटाव बनते। कांग्रेस और विपक्ष भाजपा की...

  • विपक्ष को समझने का मौका!

    कांग्रेस ने ढर्रे पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस मुख्यालय एआईसीसी ने भूपेश बघेल, अशोक गहलोत, कमलनाथ को चुनाव लड़ने का ठेका दिया। इन नेताओं ने फिर सर्वे-मार्केटिंग कंपनियों को ठेका दिया। इन सबने अरविंद केजरीवाल तथा नरेंद्र मोदी की रेवड़ियों की नकल पर गारंटियां बनाईं। राहुल गांधी ने पिछड़ों की राजनीति, जाति जनगणना के एक जुमले से कांग्रेस की आत्मघाती नई आईडेंटिटी बनाई। यह आत्मविश्वास पाला कि इसके बूते कांग्रेस अकेले चुनाव जीत लेगी। अंत में नतीजा?  कांग्रेस चारों खाने चित है। न कांग्रेस को समझ आ रहा है और न इंडिया एलायंस को कि आगे कैसे लोकसभा चुनाव लड़े? उस...

  • लाख टके का सवाल लड़ना कैसे है?

    उत्तर भारत के तीन राज्यों के चुनाव नतीजे विपक्ष के लिए चेतावनी की घंटी है। चाहे बिहार में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार हों या उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव हों। सब यह मान कर बैठे थे कि उनको भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति की काट मिल गई है। सब मान रहे थे कि जाति गणना, सामाजिक न्याय और आरक्षण बढ़ाने का मुद्दा इतना बड़ा है कि अब कुछ और सोचने की जरूरत नहीं है। मई में कर्नाटक के नतीजों की कांग्रेस ने भी इसी अंदाज में व्याख्या की। सिर्फ कांग्रेस नहीं तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके को भी...

  • कांग्रेस में भी जड़ता टूटेगी

    पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों से ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि जिस तरह भाजपा में यथास्थिति खत्म हो रही है या जड़ता टूट रही है उसी तरह कांग्रेस में भी जडता टूटेगी। तेलंगाना में यह देखने को मिला है। कांग्रेस ने बिल्कुल नए नेता रेवंत रेड्डी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। कांग्रेस के कई बड़े नेता उनके भी पीछे पड़े थे और प्रदेश के दूसरे रेड्डी नेताओं के साथ उनकी नहीं बन रही थी। लेकिन पार्टी आलाकमान ने उन पर भरोसा दिखाया। इससे नए नेतृत्व का दौर शुरू हुआ है। माना जा रहा है कि...

  • जनता ने जिंदा रखा है

    एक फिल्मी डायलॉग के हिसाब से भारतीय राजनीति के बारे में कहा जाता है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को नरेंद्र मोदी और अमित शाह जीने नहीं दे रहे हें और जनता मरने नहीं दे रही है। इस बार पांच राज्यों के चुनाव में भी यह दिखा कि जनता ने कांग्रेस को जीत नहीं दिलाई लेकिन मरने भी नहीं दिया। कांग्रेस पांच में चार राज्यों में चुनाव हार गई। वह सिर्फ एक तेलंगाना में चुनाव जीती। नया राज्य बनने के बाद हुए तीसरे चुनाव में पहली बार कांग्रेस जीती और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। कांग्रेस हिंदी पट्टी के...

  • मोदी !

    फिर वही जो 2014 से उत्तर भारत का सत्य है। हां, 2014 से उत्तर भारत में हर हर मोदी, घर घर मोदी है सो, 2023 के मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ के मन में मोदी का प्रमाणित होना अनहोनी नहीं है। तय मानें, और मैं लिखता रहा हूं कि लोकसभा चुनाव में भी गोबर पट्टी में नरेंद्र मोदी के नाम पर ठप्पा लगेगा। ऐसा क्यों? इसलिए क्योंकि उत्तर भारत में नरेंद्र मोदी जहां हिंदू आस्थावानों में अवतार हैं वही चुनावी खेल के ग्रैंडमास्टर होने से दुविधा व अधर के वोटों को बहकाने और विरोधी वोटों को बंटवाने के रणनीतिकार भी। लेकिन...

  • ऐसा चुनावी मैनेजमेंट, इतना अंतर-विरोध!

    क्या संभव है नरेंद्र मोदी का जादू मध्य प्रदेश में चले लेकिन राजस्थान में न चले? मध्य प्रदेश में भाजपा रिकॉर्ड तोड़ 140-162 सीटें पाए वही राजस्थान में वह कांग्रेस से पीछे 80-100 के बीच अटके? और दोनों प्रदेशों में क्या उस इंडिया टुडे-एक्सिस को विश्वसनीय माना जाना चाहिए जिसने पश्चिम बंगाल में भाजपा को जीताते हुए उसकी सीट संख्या 134-160 बताई थी! सोचें,मौजूदा चुनाव के दोनों हिंदी प्रदेशों पर? चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया! बावजूद इसके एक जगह हवा तो दूसरी जगह सूखा? हालांकि मेरा मानना रहा है कि राजस्थान में नरेंद्र मोदी का जादू सर्वीधिक...

  • कांग्रेस आपा खोएगी या भाजपा?

    लाख टके का सवाल है कि कांग्रेस का जीत के बाद गुब्बारा कितना फूलेगा और वह फिर कितनी जल्दी फटेगा तो मोदी-शाह आत्मविश्वासी बनेंगे या घबरा कर हताशा में विपक्ष पर टूट पड़ेंगे? कांग्रेस का मसला अहम है। क्योंकि कांग्रेस की समझदारी पर ही आगे लोकसभा चुनाव के नतीजे आने है। तीन दिसंबर को कांग्रेस की जीत मामूली नहीं होंगी। और इसका मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा और इनके सलाहकारों पर मनोवैज्ञानिक गहरा असर होगा। अति आत्मविश्वास में कांग्रेस नेता पगला सकते हैं। शायद मान बैठें कि राहुल के कारण जीत है। इसलिए लोकसभा चुनाव में हमें...

  • तीन राज्यों में अन्य की भूमिका बढ़ेगी?

    दो-तीन एजेंसियों को छोड़ दें तो एक्जिट पोल के नतीजे सभी राज्यों में नजदीकी मुकाबला बता रहे हैं और त्रिशंकु विधानसभा बनने या किसी पार्टी को मामूली बहुमत मिलने की संभावना जता रहे हैं। ऐसे में कई राज्यों में छोटी पार्टियों यानी अन्य और साथ में निर्दलीय विधायकों की भूमिका अहम हो जाएगी। तभी एक्जिट पोल के नतीजे आने के साथ ही इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि कहां विशेष विमान किराए पर लिया गया है तो कहां रिसॉर्ट की बुकिंग हो रही है। खबर आई है कि कांग्रेस तेलंगाना के अपने विधायकों को कर्नाटक ले जा...

  • एक्जिट पोल वालों की होशियारी

    समय के साथ हर व्यक्ति और संस्थान भी सीखते हैं। सो, एक्जिट पोल करने वाली एजेंसियों और उन्हें दिखाने वाले मीडिया समूहों ने भी बहुत कुछ सीख लिया है। तभी इस बार एक्जिट पोल इस अंदाज में दिखाए गए हैं कि नतीजे कुछ भी आएं उनका श्रेय लिया जा सके। ज्यादातर एजेंसियों ने कंफ्यूजन पैदा किया है। दो चीजें बहुत साफ देखने को मिली हैं। पहली यह कि इस बार न्यूनतम और अधिकतम का दायरा सबने बड़ा दिया है। पहले चार से 10 का दायरा होता था, जिसे इस बार 12 से 22 तक कर दिया गया है। इसके ऊपर...

  • तेलंगाना में अचानक क्या हुआ?

    तेलंगाना में अगस्त के महीने में जब भारत राष्ट्र समिति के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने 119 में से 115 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की तो किसी को अंदाजा नहीं था कि वे मुश्किल लड़ाई में फंसेंगे। इतनी जल्दी उम्मीदवारों की घोषणा को मास्टरस्ट्रोक माना गया। उससे पहले वे अपना राज्य छोड़ कर महाराष्ट्र में प्रचार कर रहे थे और देश भर में राजनीति कर रहे थे। उसी राजनीति के तहत उन्होंने अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदल कर भारत राष्ट्र समिति कर लिया था। दूसरी ओर कांग्रेस, भाजपा और एमआईएम हाशिए की...

  • युद्ध से न अब जीत,न हार!

    सच्चाई है पर अविश्वसनीय! इजराइल लाचार और फेल। पचास दिन हो गए है न हमास को इजराइल खत्म कर पाया और न वह बंधकों का पता लगा पाया। मजबूर हो कर उसने लड़ाई रोकी, और वह हमास से सौदेबाजी के साथ बंधकों व कैदियों की अदला-बदली कर रहा है। सवाल है पचास दिनों में इजराइल को क्या हासिल हुआ? यदि तटस्थता से सोचे तो पहली बार यहूदियों और इजराइल की चौतरफा बदनामी है! सिर्फ बीस किलोमीटर का एक इलाका और 20-22 लाख फिलीस्तीनी आबादी में से वह अपने बंधकों और हमास की लीडरशीप को ढूंढ नहीं पाया है तो इससे...

  • चुनावः पांच साला खरीद-फरोख्त मंडी!

    उफ! आजादी का कथित अमृत काल। और उसमें मतदाताओं की चौड़े-धाड़े खरीद-फरोख्त! सतह और सतह से नीचे दोनों स्तरों पर। जिसे मानना हो माने कि ये रेवड़ियां, ये गारंटियां जनकल्याण हैं, विकास हैं लेकिन  असलियत में यह सब पिछले कुछ वर्षों में विकसित राजनीतिक जंगलीपने के कंपीटिशन में राष्ट्र-राज्य, संस्कृति, लोकतंत्र की बरबादी की रिकॉर्ड छलांग है। मतदाता मानों बिकाऊ सस्ता माल! और रेट क्या? पांच किलो फ्री राशन, साल में दस या बारह हजार रुपए नकदी, दो-तीन सौ यूनिट फ्री बिजली जैसी गारंटियां! जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के विश्व शक्ति होने, दुनिया की तीसरी-चौथी इकोनॉमी बनने जैसे हुंकारे...

  • नेता बेवकूफ हैं या जनता?

    मोदी राज ने 140 करोड़ लोगों में हिंदुओं की उस आबादी को मूर्ख बनाया है जो धर्मपरायण और मूर्ति दर्शन, भजन, सत्संग, कथा-कहानी की पीढ़ीगत आस्था में जिंदगी गुजारती आई है! इन सबके दिल-दिमाग में अपने को पैठा कर वह कंपीटिशन पैदा कराया है, जिससे राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल याकि गैर-भाजपाई पार्टियों की मजबूरी है जो वे भी लोगों को बेवकूफ बनाने, अंधविश्वासी बनाने के काम करें। तभी चुनाव अब बेवकूफ बनाने का उत्सव है। इस सप्ताह ‘पनौती’ जुमले का जैसा देशव्यापी हल्ला बना वह लोगों की समझ और अंधविश्वासों का पीक है। इससे क्या साबित है? नेता और मतदाता...

  • चुनाव मतलब लोगों को मूर्ख बनाना!

    भारत में अब सारे चुनाव आम लोगों को मूर्ख बनाने, उनको बरगलाने, निजी लाभ का लालच देने, उनकी आंखों पर पट्टी बांधने या उनकी आंखों में धूल झोंकने का उपक्रम और मौका है। पार्टियों के घोषणापत्र में भले कुछ भारी-भरकम बातें लिखी जाती हों लेकिन प्रचार में सिर्फ लोक लुभावन घोषणाएं होती हैं, जिन्हें गारंटी का नाम दिया जा रहा है। कहीं मोदी की गारंटी है तो कहीं कांग्रेस और राहुल की गारंटी है। उस गारंटी में यह है कि सरकार बनी तो हर वयस्क महिला को एक हजार से लेकर ढाई हजार रुपए तक महीना दिया जाएगा, स्कूल जाने...

  • पांच खरब डॉलर और पांच किलो अनाज!

    भारतीय राजनीति का यह ‘टके सेर भाजी, टके सेर खाजा’ वाला काल है। इसमें एक सांस में देश को पांच खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का दावा किया जाता है और उसी सांस में 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज देने की घोषणा भी की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि अपने तीसरे कार्यकाल में वे भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बना देंगे। दावा किया गया है कि 2027 तक भारत की अर्थव्यवस्था का आकार पांच ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा। उस समय भारत के आगे सिर्फ अमेरिका और चीन...

  • लाभार्थी मतदाताओं की अकथ कहानी

    भारत में हमेशा मतदाताओं को कई समूह रहे हैं। अलग अलग पार्टियां अलग अलग समूहों को टारगेट करती हैं। अल्पसंख्यक मतदाताओं का एक बड़ा समूह है, जिसके तुष्टिकरण का आरोप लगा कर भाजपा ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया। हिंदुत्व का एक मतदाता समूह है, जो पहले भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी, शिव सेना आदि पार्टियों के साथ रहता है। पिछड़ी जातियों का एक समूह है, जो मंडल की राजनीति के बाद प्रादेशिक समाजवादी पार्टियों के साथ रहता है तो दलित जातियों का एक मतदाता समूह है, जो पहले कांग्रेस के साथ जाता था और फिर...

  • सोचे, क्या यह मनुष्य विकास है?

    इसके अलावा चुनाव के समय जो नकदी बंटती है वह अलग है। अभी तक पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में करीब दो हजार करोड़ रुपए की नकदी, शराब और दूसरी चीजें पकड़ी गई हैं। जब दो हजार करोड़ रुपए नकद और सामान पकड़े गए हैं तो इससे 10 गुना जरूर बंटे होंगे। चुनाव के समय ऐसे लाभार्थियों का एक नया समूह बनता है। कुल मिला कर एक छोटा सा वर्ग है, जो अपनी सामाजिक नैतिकता और महत्वाकांक्षा के लिए काम , परिश्रम, पुरषार्थ करता है या काम करना चाहता है। लोग पूछते हैं कि भारत में महंगाई को लेकर लोगों...

  • ये चुनाव भी 24 बाद की बिसात!

    मैं हैरान हूं। क्या अमित शाह, नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी सभी भारत में राजनीति मिटा कर देंगे? भाजपा और कांग्रेस जैसी कथितपार्टियां पूरी तरह सर्वेयर टीमों की कठपुतलिया होगी? कोई न माने इस बात को लेकिन नोट रखे कि 2024 में नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के साथ भाजपा, संघ परिवार के नेता और कार्यकर्ता हर तरह से निराकार होंगे। इनकी राजनीति हर तरह से सर्वे एजेंसियों से डिक्टेट होगी। नेता केवल पैसा कमाएंगें, प्रधानमंत्री बनने के लिए बीस-तीस हजार करोड रू इकट्ठे करेंगे और फिर सर्वेयर एजेंसियों को ठेके दे कर चुनाव लड़ेगे। सत्ता और पद...

  • स्वीप करने का परस्पेशन!

    राहुल गांधी 23 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस के नए मुख्यालय के शिलान्यास कार्यक्रम में पहुंचे तब उन्होंने एक कार्यक्रम में पांच राज्यों को विधानसभा चुनाव को लेकर भविष्यवाणी की। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सरकर बनाएगी लेकिन राजस्थान में कांग्रेस को कड़ी टक्कर मिलेगी। उनके इस बयान की बहुत चर्चा हुई। माना गया कि खुद राहुल ने राजस्थान में अपनी पार्टी की संभावना को कम कर दिया। इसके बाद राहुल राजस्थान से दूर रहे। नौ अक्टूबर को चुनाव की घोषणा हुई उसके बाद राहुल का एक कार्यक्रम नहीं हुआ। वे 23 सितंबर के...

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