सर्वजन पेंशन योजना
  • कांग्रेस लौटी धर्मनिरपेक्षता के एजेंडे में!

    कांग्रेस पार्टी धर्मनिरपेक्षता के मसले पर दुविधा में थी। आजादी के बाद से वह जिस किस्म की धर्मनिरपेक्षता की प्रैक्टिस कर रही थी उसे लेकर वह संशय में थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद उसका विश्लेषण करने के लिए एके एंटनी की अध्यक्षता में जो कमेटी बनी थी उसकी रिपोर्ट ने कांग्रेस को बदलने का रास्ता दिखाया था। एंटनी कमेटी ने कहा था कि कांग्रेस का मुस्लिमपरस्त दिखना या उस रूप में ब्रांड होना पार्टी के लिए घातक हो गया। उसके बाद ही राहुल को मोदी और कांग्रेस को भाजपा बनाने का अभियान शुरू हुआ था।...

  • हादसों से सबक नहीं लेतीं सरकारें

    ओडिशा के बालासोर में भयंकर ट्रेन हादसे के बाद घनघोर शोक और निराशा के समय में भी एक समूह ऐसा है, जो यह समझाने में लगा है कि ट्रेन हादसे पहले भी होते थे और अब प्रति लाख किलोमीटर की यात्रा में हादसों की संख्या पहले से बहुत कम हो गई है। इस तरह के किसी भी आंकड़े पर संशय नहीं किया जा सकता है। लेकिन क्या इससे ऐसा नहीं लगता है कि यह जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का एक मजबूत आधार तैयार करने की कोशिश है? यह भी सही है कि किसी का इस्तीफा लेने से मरने वालों का...

  • मोदी को वोट के मूड का आधार क्या?

    केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के मौके पर कई तरह के सर्वेक्षण हुए, जिनसे मोदी सरकार की लोकप्रियता बरकरार रहने का निष्कर्ष जाहिर हुआ। यह भी बताया गया कि प्रधानमंत्री के लिए मोदी सबसे ज्यादा लोगों की पसंद हैं और अगर आज चुनाव हो तो उनको पिछली बार से कुछ ज्यादा वोट मिलेंगे। ध्यान रहे मोदी का लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा होने वाला है। उससे पहले यदि देश में यह राय है तो यह सरकार की बड़ी सफलता है। हालांकि इन सर्वेक्षणों की गुणवत्ता और वस्तुनिष्ठता को लेकर उठने वाले सवाल अपनी जगह हैं। यह...

  • एमपी, एमएलए की ऐसे सदस्यता जाने लगी तो आगे क्या?

    समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान की हेट स्पीच मामले में रिहाई ने विधायकों, सांसदों की आनन-फानन में सदस्यता समाप्त करने, उनकी सीटों को खाली घोषित करने और उपचुनाव कराने की जल्दी पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। इस बारे में विधानमंडल और संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों के साथ साथ चुनाव आयोग को भी गंभीरता से विचार करना चाहिए। निश्चित रूप से देश की सर्वोच्च अदालत को भी अपने 2013 के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। क्योंकि इस पर अमल करने से ऐसी गलतियां होने की संभावना है, जिनका सुधार संभव ही नहीं है। आजम खान...

  • एकता दिखाने की नहीं बनाने की जरूरत

    जदयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के प्रयास के तहत 12 जून को पटना में एक बड़ी बैठक होने वाली है। इसमें डेढ़ दर्जन विपक्षी पार्टियों के नेता जुटेंगे। दिन भर की बैठक होनी है, जिसमें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा होगी। सवाल है कि इस कवायद से क्या हासिल होगा? खुद नीतीश कुमार की पार्टी का बिहार के बाहर कहीं अस्तित्व नहीं है और बिहार से बाहर किसी दूसरे राज्य में उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की स्थिति नहीं है। वे जिन पार्टियों को बैठक के...

  • नया संसद भवन, नई उम्मीदें!

    संसद की नई इमारत के समर्थन और विरोध में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। जिस समय इस इमारत की नींव रखी गई थी उस समय इसकी जरूरत और औचित्य को लेकर सवाल उठे थे। विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि कोरोना महामारी के समय इस तरह का निर्माण धन का दुरुपयोग है। जब इसके ऊपर विशाल अशोक स्तंभ स्थापित किया गया तो शेरों की भाव-मुद्रा को लेकर सवाल उठे। इसके बाद जब उद्घाटन का समय आया तो 28 मई की तारीख पर विवाद हुआ और फिर राष्ट्रपति से उद्घाटन नहीं कराने का मुद्दा बना। विपक्ष ने इसे देश की...

  • संसद इमारत उद्घाटन का कैसा होगा इतिहास?

    देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित 19 पार्टियों ने संसद भवन की नई इमारत के उद्घाटन का बहिष्कार करने का फैसला किया है। विपक्षी पार्टियों ने एक साझा बयान जारी करके 28 मई को होने वाले उद्घाटन में हिस्सा नहीं लेने का ऐलान किया है। विपक्ष की ओर से बहिष्कार के दो मुख्य कारण बताए गए हैं। पहला, ‘संसद से लोकतंत्र की आत्मा को ही छीन लिया गया है, तो हमें एक नई इमारत की कोई कीमत नजर नहीं आती है’। दूसरा, ‘नए संसद भवन का उद्घाटन एक यादगार अवसर है। हमारे इस भरोसे के बावजूद कि यह...

  • आप के लिए आगे मुश्किल ज्यादा!

    आम आदमी पार्टी के विस्तार के रास्ते में एक बार फिर बाधा आती दिख रही है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद आम आदमी पार्टी की मुश्किलें बढ़ेंगी और किसी नए राज्य में उसके विस्तार का रास्ता बंद होगा या कम से कम उसकी रफ्तार धीमी होगी। ऐसा होने के कई कारण हैं। सबसे पहले तो आम आदमी पार्टी के छोटे से राजनीतिक इतिहास को देखें तब भी समझ में आएगा कि पहले चुनाव से ही जिन राज्यों में उसका राजनीतिक असर बना और दिखा था उन्हीं राज्यों में वह आगे बढ़ पाई और नए राज्यों में राजनीतिक जमीन...

  • विपक्ष के पास अब अध्यादेश का मुद्दा

    विपक्षी पार्टियां एक ऐसे मुद्दे की तलाश में थीं, जो राजनीतिक हो, जिसके पीछे कोई वैचारिक आधार हो, जिससे किसी न किसी रूप में न्यायपालिका का जुड़ाव हो और संविधान की मूल भावना भी जुड़ी हुई हो। दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का फैसला केंद्र के हाथ में रहे इसके लिए एक प्राधिकरण का गठन करने वाले केंद्र के अध्यादेश ने विपक्ष को वह मुद्दा दे दिया है। विपक्ष इस मुद्दे पर बड़ी राजनीतिक लड़ाई लड़ सकता है तो विधायी और कानूनी लड़ाई भी लड़ी जा सकती है। ध्यान रहे एकजुट विपक्ष इससे पहले सीबीआई और ईडी जैसी...

  • फिर नोटबंदी जैसे हालात बनेंगे!

    इस बार रिजर्व बैंक ने मिनी नोटबंदी की है। दो हजार के नोट चलन से बाहर करने का फैसला वैसे तो वित्त मंत्रालय और केंद्र सरकार के शीर्ष स्तर की सहमति से हुआ होगा लेकिन चूंकि फैसले की घोषणा करने प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री या सरकार का कोई अन्य मंत्री नहीं आया इसलिए यह कहना सुरक्षित है कि मिनी नोटबंदी रिजर्व बैंक ने की है। नवंबर 2016 की नोटबंदी का ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद किया था। उसके बाद कई भाषणों में वे इस फैसले का बचाव करते रहे और इसके फायदे समझाते रहे। यह संयोग है कि उस...

  • कांग्रेस के काम आएंगे सिद्धरमैया

    आखिरकार कांग्रेस ने तय किया कि सिद्धरमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री होंगे। वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। कांग्रेस में शामिल होने के छह साल बाद ही 2013 में ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे और उसके बाद से प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति की एक महत्वपूर्ण धुरी बने हुए हैं। वे  सरकार के बारे में अच्छी धारणा बनवाने में कामयाब होंगे और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बहुत काम आएंगे। अभी कांग्रेस की पहली जरूरत यह थी कि चुनाव प्रचार के दौरान लोगों के मन में उसने जो धारणा बनवाई है वह और मजबूत हो। ध्यान रहे...

  • विपक्षी फॉर्मूला जीत की गारंटी नहीं

    राष्ट्रीय गठबंधन एक मिथक-2: कर्नाटक के चुनाव नतीजों के बाद विपक्षी पार्टियां ज्यादा जोर-शोर से राष्ट्रीय गठबंधन बनाने की बात करने लगी हैं। ममता बनर्जी ने आगे बढ़ कर बयान दिया कि कांग्रेस जिन राज्यों में मजबूत है वहां वे उसकी मदद करने को तैयार हैं और बदले में कांग्रेस दूसरी पार्टियों को उनकी ताकत वाले राज्यों में मदद करे। यह वही वन ऑन वन फॉर्मूला है, जिसकी चर्चा नीतीश कुमार ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात में की थी। हकीकत यह है कि हर राज्य में यह फॉर्मूला न बन सकता है और...

  • राष्ट्रीय गठजोड़ के फेर में विपक्ष न पड़े!

    राष्ट्रीय गठबंधन एक मिथक-1: लोकतांत्रिक राजनीति की एक सचाई है कि इसमें विपक्ष जीतता नहीं है, बल्कि चुनी हुई सरकारें हारती हैं। इसलिए विपक्ष का एकजुट होना या राष्ट्रीय गठबंधन बना कर चुनाव जीत लेना एक मिथक की तरह है। हर चुनी हुई सरकार अपनी हार की जमीन खुद तैयार करती है और विपक्ष एकजुट हो या न हो सरकार हार जाती है। कर्नाटक का चुनाव मिसाल है, जहां विपक्ष की आधा दर्जन पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ रही थीं और फिर भी भाजपा को हारना था तो वह हार गई। विपक्ष की एकता बनाने के लिए जिन चुनावों की...

  • भाजपा को अपनी रणनीति पर सोचना होगा

    कर्नाटक के चुनाव नतीजों की जैसी व्याख्या भाजपा कर रही है या कम से कम उसके प्रवक्ता टेलीविजन की बहसों और सोशल मीडिया के विमर्श में जिस तरह से इसका बचाव कर रहे हैं वह भाजपा के लिए आत्मघाती हो सकता है। यह सही है कि उसने अपना वोट नहीं गंवाया है। वह अपना पारंपरिक 36 फीसदी वोट बचाए रखने में कामयाब रही है। लेकिन उसे समझना होगा कि यह वोट उसकी जीत की गारंटी नहीं है। त्रिकोणात्मक चुनाव में इतने वोट पर चुनाव जीता जा सकता है लेकिन किसी भी राज्य में आमने सामने के चुनाव में यह आंकड़ा...

  • कर्नाटक के जनादेश का बड़ा मतलब

    कर्नाटक में मतदान के दिन यानी 10 मई को मैंने इसी कॉलम में ‘कर्नाटक का चुनाव रास्ता दिखाएगा’ शीर्षक से लेख लिखा था और सचमुच कर्नाटक की जनता ने रास्ता दिखाने वाला जनादेश दिया है। इस जनादेश ने भाजपा के लिए दक्षिण का दरवाजा बंद किया है तो समूचे विपक्ष के लिए देश का दरवाजा खोल दिया है। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस और अगले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे नेताओं को इस नतीजे से संजीवनी मिली है। यह भरोसा मिला है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडे को हराया जा सकता है। यह...

  • अदालती फैसलों का अच्छा दिन!

    गुरुवार 11, मई का दिन ऐतिहासिक अदालती फैसलों का दिन रहा। देश की सर्वोच्च अदालत ने संविधान की भावना का मान रखने वाले दो अहम फैसले दिए। दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारों को महत्वपूर्ण माना और बेहद अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि ‘यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में न चला जाए’। यह बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी है, जो संविधान से बनाई गई संघीय व्यवस्था को मजबूत करने वाली है। पांच जजों की संविधान पीठ का दो टूक...

  • कोरोना समाप्त हुआ लेकिन आगे क्या?

    विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लुएचओ ने कोविड-19 की महामारी को समाप्त हुआ मान लिया है। उसने ऐलान किया है कि अब कोविड-19 वैश्विक आपातकाल यानी ग्लोबल इमरजेंसी नहीं है। इसका मतलब है कि यह समाप्त हो गया है या इसे एक सामान्य बीमारी की तरह लिया जाए, जो मानवता के लिए खतरा नहीं है। कोई तीन साल पहले 2020 के शुरू में कई महीनों की टालमटोल के बाद डब्लुएचओ ने कोरोना की महामारी को वैश्विक आपातकाल घोषित किया था। उसके बाद पूरी दुनिया इस बीमारी से पार पाने के लिए संघर्ष करती रही। कोरोना को वैश्विक आपातकाल घोषित करने के एक...

  • कर्नाटक का चुनाव रास्ता दिखाएगा

    भारत जैसे विविधता वाले लोकतंत्र में हर चुनाव अलग होता है। उसके मुद्दे अलग होते हैं, नतीजे अलग होते हैं और उनका असर भी अलग अलग होता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि कर्नाटक का विधानसभा चुनाव भी एक राज्य का चुनाव है, जिसे उसके अपने मुद्दों के आधार पर लड़ा गया और उसके नतीजों का असर भी कर्नाटक की सीमा तक रहेगा। यह बात कुछ हद तक सही है क्योंकि अब तक जितनी बार भी किसी राज्य के चुनाव नतीजों का आकलन बड़े कैनवस पर किया गया है और दूसरे राज्यों या राष्ट्रीय चुनाव पर उसके...

  • पवार से पार पाना मुश्किल

    भारतीय राजनीति में इस्तीफा कई बार बेहद प्रभावशाली हथियार के तौर पर इस्तेमाल होता है। प्रधानमंत्री रहते अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार अपने ऊपर बढ़ रहे दबाव को खत्म करने के लिए इस्तीफे का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि न टायर्ड हूं, न रिटायर्ड हूं, आडवाणी जी के नेतृत्व में जीत की ओर से प्रस्थान करें। इसके बाद पूरी पार्टी उनके चरणों में नतमस्तक हो गई थी। बाल ठाकरे ने भी एक बार अपनी पार्टी पर अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए इस्तीफे का ऐलान किया था। 31 साल पहले 1992 में उन्होंने सीधे शिव...

  • राक्षस है भारत में सोशल मीडिया!

    दुनिया में इस समय चौथी औद्योगिक क्रांति के खतरों को लेकर बहस छिड़ी है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी कृत्रिम मेधा को मॉन्सटर मान रहे इलॉन मस्क और युवाल नोवा हरारी सहित एक बड़ी जमात चाहती है कि इस पर हो रहे शोध पर रोक लगाई जाए। ‘गॉडफादर ऑफ एआई’ के नाम से मशहूर ज्योफ्री हिंटन ने गूगल से इस्तीफा दे दिया है। वे दुनिया भर में लोगों को एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के खतरों के प्रति आगाह कर रहे हैं। भारत अभी उस बहस में जाने के योग्य नहीं है क्योंकि हम अभी तीसरी औद्योगिक क्रांति के खतरे से ही जूझ...

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