जब कार्यक्षेत्रों को लेकर भ्रामक स्थितियां नहीं थीं, तब कायदा यह था कि किसी राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में कार्रवाई करनी हो, तो वह पहले उस राज्य की पुलिस से संपर्क करती थी। फिर उसके सहयोग से ही वहां कदम उठाए जाते थे।
दिल्ली पुलिस ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री को नोटिस भेज कर एक मई को उसके सामने पेश होने को कहा है। यह संभवतः भारत में पुलिस जांच का नया अंदाज है। वरना, दिल्ली पुलिस एक अर्ध-राज्य की पुलिस है, जिसे संघीय व्यवस्था के सामान्य कायदों के मुताबिक किसी दूसरे राज्य में सीधी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। जब कार्यक्षेत्रों को लेकर आज जैसी भ्रामक स्थितियां नहीं थीं, तब कायदा यह था कि किसी राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में कार्रवाई करनी हो, तो वह पहले उस राज्य की पुलिस से संपर्क करती थी। फिर उसके सहयोग से ही वहां जरूरी कदम उठाए जाते थे। लेकिन अब संभवतः संघीय मान्यताओं के वे दिन नहीं रहे! मामला यह है कि (जैसाकि आरोप है) किसी ने गृह मंत्री अमित शाह के भाषण के वीडियो में छेड़छाड़ की। शाह ने कहा था कि भाजपा सरकार अनुसूचित जाति-जनजातियों और ओबीसी के आरक्षण को खत्म नहीं करेगी, वह तेलंगाना में मुसलमानों के लिए मौजूद चार फीसदी आरक्षण को समाप्त करेगी।
छेड़छाड़ इस तरह की गई, जिससे शाह को यह कहते सुना गया कि भाजपा सरकार आरक्षण को खत्म कर देगी। आरक्षण आम चुनाव में एक गर्म मुद्दा बन गया है। तो कई एनडीए शासित राज्यों की पुलिस ने तेजी से मुकदमा दर्ज किया। इनमें दिल्ली के अलावा असम और मुंबई पुलिस भी हैं। चूंकि उस वीडियो को तेलंगाना कांग्रेस के ट्विटर हैंडल पर डाला गया था, इसलिए दिल्ली पुलिस ने रेवंत रेड्डी को नोटिस भेजा है। कहा गया है कि नोटिस उन्हें बतौर मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भेजा गया है। असम से आई खबर के मुताबिक इस मामले में किसी एक व्यक्ति की गिरफ्तारी भी हुई है। बेशक, उन शरारती लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने यह कथित जुर्म किया। लेकिन अगर देश में कानून का राज है, तो स्वीकृत प्रक्रियाओं का पालन भी जरूरी माना जाएगा। कई केंद्रीय एजेंसियों पर पहले से यह आरोप है कि उनका विपक्ष के खिलाफ दुरुपयोग हो रहा है। अब राज्यों के पुलिस बलों पर भी मनमानी कार्रवाई के इल्जाम लगे, तो अपेक्षित प्रक्रियाओं पर यह एक और चोट होगी।