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20-07-2025 Vol 19

ढूंढिए ‘क्यों’ का जवाब

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सीडीएस के ताजा बयान से धूल कुछ छंटी है। अब पहलगाम से ऑपरेशन सिंदूर तक की घटनाओं के बारे में उच्चस्तरीय समीक्षा समिति की जरूरत है। विपक्ष की संसद के विशेष सत्र की मांग भी इस सिलसिले में तार्किक लगती है।

बहुचर्चित शांगरी-ला डायलॉग में भाग लेने सिंगापुर गए रक्षा सेनाओं के प्रमुख (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने एक अमेरिकी टीवी चैनल को इंटरव्यू देकर यह पुष्टि की कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान 6-7 मई की रात भारत का लड़ाकू विमान गिरा। मगर सीडीएस ने कहा कि ये महत्त्वपूर्ण नहीं है। अहम यह है कि यह क्यों हुआ? और महत्त्वपूर्ण यह है कि जो टैक्टिकल गलती हुई, उसे सुधार कर दो रोज के बाद भारत ने जबरदस्त हमले किए। वैसे विश्व मीडिया में बनी सुर्खियां यही हैं कि आखिरकार भारत ने अपने फाइटर जेट गिरने की बात मानी, मगर भारत के नजरिए से वो प्रश्न अहम है, जिसका उल्लेख सीडीएस ने किया।

ऑपरेशन सिंदूर पर समिति की मांग बढ़ी

विमान कैसे गिरा, वो टैक्टिकल भूल क्या थी और क्या उसमें चीन में बने हथियारों की भूमिका थी, ये प्रश्न अभी अनुत्तरित हैं। बेशक, इनके बारे में सभी जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जा सकतीं। मगर इस संबंध में कुछ सूचनाएं लोकतांत्रिक जवाबदेही के दायरे में आती हैं। वर्तमान सरकार चाहे, तो इस बारे में अपनी ही पार्टी की एक पूर्व सरकार से सीख ग्रहण कर सकती है।

करगिल की लड़ाई के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने हुई घुसपैठ और लड़ाई के दौरान रहे तजुर्बों की पूरी समीक्षा के लिए उच्चस्तरीय समिति बनाई थी। स्पष्टतः पहलगाम से ऑपरेशन सिंदूर तक की घटनाओं के बारे में ऐसी समिति की जरूरत है। विपक्ष की संसद के विशेष सत्र की मांग भी इस सिलसिले में तार्किक लगती है।

आखिर खुफिया चूक और सुरक्षा भूल की बातें अब सरकारी स्तर पर मानी जा चुकी हैं। उन पर इस इलाके में तेजी से बदले भू-राजनीतिक समीकरणों की रोशनी में समग्र चर्चा की आवश्यकता है, ताकि भविष्य की चुनौतियों के लिए देश बेहतर तैयारी कर सके। वैसे अलग से एक समीक्षा तो भारत की कूटनीतिक विफलताओं की भी होनी चाहिए, जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जग-जाहिर हो गईं। केंद्र को यह अवश्य समझना चाहिए कि यह किसी एक सरकार या दल का मसला नहीं है। इससे सर्वोच्च राष्ट्रीय हित जुड़े हुए हैं। इसलिए हर ‘क्यों’ का जवाब ढूंढा जाना चाहिए और यथासंभव उस पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए।

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Pic Credit: ANI

NI Editorial

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