जिन हस्तियों ने आधुनिक भारत में विज्ञान, शोध एवं वैज्ञानिक चेतना की जमीन तैयार की, उनमें एम.आर. श्रीनिवासन और जयंत नर्लीकर की खास पहचान है। परमाणु क्षेत्र में श्रीनिवासन और खगोल भौतिकी में नर्लीकर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकेगा।
एक ही दिन- मंगलवार को- भारत की दो बड़ी हस्तियों ने दुनिया से महा-प्रस्थान किया। दोनों ने आधुनिक भारत के निर्माण में अपने अप्रतिम योगदान से इतनी गहरी छाप छोड़ी है कि आने वाली कई पीढ़ियां उनसे प्रेरित होती रहेंगी। भारत आज दुनिया की प्रमुख परमाणु शक्ति है, तो उसे यह क्षमता देने में एम.आर. श्रीनिवासन की भूमिका सुनहरे अक्षरों में लिखी हुई है।
सिर्फ 25 वर्ष की उम्र में भारतीय परमाणु कार्यक्रम के पिता कहे जाने वाले होमी जहांगीर भाभा के सानिध्य में आए श्रीनिवासन ने विभिन्न भूमिकाओं में भारत को परमाणु शक्ति से समृद्ध बनाने में योगदान किया। इनमें भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (एनपीसीआईएल) के संस्थापक अध्यक्ष की उनकी भूमिका भी है।
विज्ञान के दो स्तंभों का प्रेरक जीवनवृत्त
इसके अलावा भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर- अप्सरा के निर्माण में वे डॉ. भाभा के प्रमुख सहयोगी रहे। डॉ. श्रीनिवासन ने 95 वर्ष के लंबे जीवन काल के बाद दुनिया से विदाई ली है। जिन दूसरी बड़ी हस्ती ने दुनिया को अलविदा कहा है, वे खगोल भौतिकशास्त्री जयंत नर्लीकर हैं। अपने छात्र जीवन से नर्लीकर ने मौलिक शोध और समझ विकसित करने की राह पकड़ी।
यानी उन्होंने लकीर का फकीर बनने से इनकार किया। नर्लीकर ने बिग बैंग सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया। इस सिद्धांत के तहत मान्यता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति निर्वात में बड़े धमाके से हुई। नर्लीकर ने अपने ढंग से ब्रह्मांड का अध्ययन किया और खलोग भौतिकी में नए सिद्धांत जोड़े।
नर्लीकर का एक अन्य विशेष योगदान विज्ञान में नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना रहा। उन्हें 86 वर्ष का लंबा जीवन मिला, जिसका उपयोग उन्होंने भारत को वैज्ञानिक रूप से सक्षम बनाने में किया। कहा जा सकता है कि आजादी के बाद जिन व्यक्तित्वों ने भारत में विज्ञान, शोध एवं वैज्ञानिक चेतना की जमीन तैयार की, उनमें श्रीनिवासन और नर्लीकर दोनों की खास भूमिका रही है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि आज रोजमर्रा के तुच्छ विवाद सार्वजनिक चर्चाओं पर इस कदर हावी रहते हैं कि श्रीनिवासन और नर्लीकर जैसी शख्सियतों के योगदान पर बात करने की फुरसत लोगों के पास नहीं होती। मगर भावी इतिहास के पन्ने में उनकी कथाओं से भरे पड़े होंगे।
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