अधिकांश लोगों के लिए उपभोग और आय के अनुपात में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है। कोरोना काल की तुलना में सिर्फ सबसे ऊपरी दस फीसदी आबादी के मामले में यह अनुपात उल्लेखनीय रूप से बेहतर हुआ है।
सरकार के ताजा आर्थिक आंकड़ों से सामने आई मुख्य सूचना यह है कि खाद्य पदार्थों के दाम अप्रैल में तेजी से बढ़े। लेकिन सरकारी बयान में ये बात कहीं नीचे बताई गई, यह बताने के बाद कि बीते महीने खुदरा महंगाई दर में गिरावट दर्ज हुई। मार्च में खुदरा महंगाई दर 4.85 फीसदी थी, जो अप्रैल में 4.83 प्रतिशत पर आ गई। यह कितनी बड़ी राहत है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
जबकि खाद्य पदार्थों की महंगाई दर 8.7 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो चार महीने का सबसे ऊंचा स्तर है। मार्च में ये दर 8.5 प्रतिशत थी। मुख्य रूप से अनाज, दालें, खाद्य तेल और फल महंगे हुए। जब यह ट्रेंड हो, तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं कि देश में अधिकांश आबादी के लिए उपभोग और आय के अनुपात में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है।
कोरोना काल की तुलना में सिर्फ सबसे ऊपरी दस फीसदी आबादी के मामले में यह अनुपात उल्लेखनीय रूप से सुधरा है। सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे के मुताबिक बाकी 90 फीसदी आबादी का अनुपात लगभग जहां का तहां बना हुआ है। ऐसी स्थिति में यह लाजिमी ही है कि बढ़ती महंगाई के कारण आम परिवारों की बचत में सेंध लगी है। भारत में जीडीपी की तुलना में बचत का स्तर 50 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है।
इसका दूसरा परिणाम आम परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ने के रूप में सामने आया है। जब आय की तुलना में महंगाई अधिक तेजी से बढ़ रही हो, तो लोग या तो बचत में हाथ डाल कर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं, या फिर ऋण लेने को मजबूर हो जाते हैँ। सीएमआईई के सर्वे से यह भी सामने आया कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर और घरेलू आय की औसत वृद्धि दर में गुजरे पांच वर्षों में फासला बढ़ता चला गया है। साफ है, तीव्र आर्थिक वृद्धि दर का लाभ आम घरों तक नहीं पहुंच रहा है। इस स्थिति का सहज परिणाम गैर-बराबरी का बढ़ते जाना होगा। देश की कुल खुशहाली के लिहाज से इन रुझान के गंभीर नतीजे हो सकते हैं।